शनिवार, 11 अगस्त 2012

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भरत गुर्जर

गुरुवार, 9 अगस्त 2012

परिभाषाएं

धारा 1 संक्षिप्त शीर्षक तथा प्रारम्भ
(1) यह अधिनियम राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 कहलायेगा।
(2) इसका विस्तार सम्पूर्ण राजस्थान राज्य में होगा।
(3) यह उस तारीख से प्रभावशील होगा जो राज्य सरकार इस संबंध मंे राजकीय राजपत्र में अधिसूचना के द्वारा नियत करे।

टिप्पणी- यह अधिनियम दिनांक 15 अक्टूबर 1955 से लागू हो गया। आबू, अजमेर और सुनेल क्षेत्र के लिए यह 15 जून 1958 से लागू हुआ।

धारा 5 परिभाषाएं
(1) कृषि वर्ष - कृषि वर्ष से अभिप्राय 1 जुलाई से प्रारम्भ होकर आगामी 30 जून को समाप्त होने वाले वर्ष से होगा।
(2) कृषि - कृषि में उद्यान कार्य, पशुपालन, दुग्धशाला और कुक्कुट पालन तथा वन विकास सम्मिलित होगा।
(3) काश्तकार - काश्तकार से मतलब ऐसे व्यक्ति से होगा जो कृषि से स्वयं अपने आप अथवा नौकरों या आसामियों के द्वारा पूर्णतः अथवा मुख्यतः अपना जीवन निर्वाह करता है।

CASE LAW:-
वी.के. ओ नोलीकोड बनाम एम. के.गोपाल
आर.आर.डी. 1966
यदि किसी व्यक्ति द्वारा अपनी भूमि का विक्रय कर दिया जाता है तो ऐसा व्यक्ति विक्रय के पश्चात् कृषक नहीं रह जाता है।

(4) सहायक कलक्टर - सहायक कलक्टर से मतलब राजस्थान टेरीटोरियल डिवीजन्स आर्डिनेंस, 1949 के अन्तर्गत अथवा तत्समय प्रवृत किसी अन्य कानून के अन्तर्गत नियुक्त किए गए सहायक कलक्टर से होगा।

(5) बिस्वेदार - बिस्वेदार से मतलब ऐसे व्यक्ति से होगा जिसे राज्य के किसी भाग में कोई गाँव अथवा गाँव का कोई बिस्वेदार पृथानुसार दिया जाता है तथा जो अधिकार अभिलेख (मिसल हकीयत) में बिस्वेदार अथवा स्वामी के रूप में दर्ज किया जाता है और उसमें अजमेर क्षेत्र का खेवटदार सम्मिलित होगा।

CASE LAW:-
भौरेलाल बनाम मंगलिया
आर.आर.डी. 1972 पृष्ठ 327
यदि किसी बिस्वेदार का नाम सरकार में बिस्वेदारी आने के दिनांक को वार्षिक रजिस्टरों में खुदकाश्त के रूप में दर्ज नहीं था तो बन्धक मोचन के लिए दावा नहीं लाया जा सकता है।

(6) बोर्ड - बोर्ड से मतलब राजस्थान बोर्ड आॅफ रेवेन्यू आर्डिनेन्स, 1949 के अन्तर्गत या तत्समय प्रवृत किसी अन्य कानून के अन्तर्गत राज्य के लिये स्थापित तथा गठित राजस्व मण्डल से होगा।
(6क) अधिकतम क्षेत्र - अधिकतम क्षेत्र से सम्पूर्ण राज्य में कहीं भी किसी व्यक्ति द्वारा किसी भी हैसियत में धारित भूमि के उस अधिकतम क्षेत्र से होगा जो कि उक्त व्यक्ति के ंप्रसंग में धारा 30-ग के अन्तर्गत नियत किया जा सके।
(7) कलक्टर - कलक्टर से मतलब राजस्थान टेरीटोरियल डिवीजन्स आर्डिनेन्स, 1949 के अन्तर्गत या तत्समय प्रवृत किसी अन्य कानून के अन्तर्गत नियुक्त किये गये कलक्टर या अतिरिक्त कलक्टर से होगा।
(8) आयुक्त - आयुक्त से किसी संभाग का आयुक्त अभिप्रेत है और इसमें अपर आयुक्त सम्मिलित होगा।
(9) फसल- फसलों में छोटे वृक्ष, झाडियों, पौधे तथा बेलें जैसे गुलाब की झाडियाँ, पान की बेलें, मेंहदी की झाडियाँ, केले तथा पपीत सम्मिलित होंगे परन्तु उसमें चारा व प्राकृतिक उपज शामिल नहीं होगा।
म्हाराजा बनाम नाथा
आर.आर.डी. 1958 पृष्ठ 61
फसल के अन्तर्गत चारा व प्राकृतिक पैदावार सम्मिलित नहीं होते हैं।

(10) भू-सम्पत्ति - भू-सम्पत्ति से मतलब जागीरदार प्रथा धारित जागीरदार या जागीर भूमि में हित से होगा और उसमें बिस्वेदार या जमीनदार (अथवा भू-स्वामी) द्वारा धारित भूमि या भूमि में हित सम्मिलित होगा।
(11) भू-सम्पत्ति-धारक - भू-सम्पत्ति-धारक से मतलब इस अधिनियम के प्रारम्भ होने के समय सम्पूर्ण राज्य या उसके किसी भाग में जागीर भूमियों या जागीरदारों के संबंध में प्रवृत किसी अधिनियम, अध्यादेश, विनियम, नियम, आदेश, संकल्प, अधिसूचना या उपनियम से होगा और इसमें-
(ए) इस अधिनियम के पा्ररम्भ के समय सम्पूर्ण राज्य या उसके किसी भाग में उक्त जागीर भूमियों या जागीरों के संबंध में प्रवृत तथा विधि-बल रखने वाली कोई रीति या रिवाज, और
(बी) जागीर भूमियों का अनुदान करने वाले अथवा उनके अनुदान को मान्यता प्रदान करने वाले किसी आदेश अथवा लिखित में अन्तर्विष्ट प्रतिबंध तथा शर्तैं सम्मिलित होंगी।

(11क) उपखण्ड - उपखण्ड से मतलब भूमि के ऐसे टुकड़े से होगा जो विहित न्यूनतम क्षेत्रफल से कम न हो।
(12) अनुदान - अनुदान से मतलब राज्य के किसी भाग में भूमि धारण करने या भूमि में हित रखने के अनुदान अथवा अधिकार से होगा और वह व्यक्ति जिसे उक्त अधिकार दिया जाय उसका अनुदान ग्रहीता कहलायेगा।

(13) अनुकूल लगान दर पर अनुदान - अनुकूल लगान दर पर अनुदान से मतलब राज्य के किसी भी भाग में ऐसे लगान पर किये गये अनुदान से होगा जो स्वीकृत लगान दर के अनुसार संगणित उसके लगान से कम हो तथा जिसमें अनुदान की शर्तों के अनुसार अध्याय 9 के अन्तर्गत हेर फेर न किया जा सके और ऐसे अनुदान ग्रहीता को अनुकूल लगान दर पर अनुदानग्रहीता कहा जाएगा। इस अभिव्यक्ति में सुनेल क्षेत्र का रियायत ग्रहीता भी सम्मिलित  माना जाएगा।

(15) उपवन भूमि - उपवन भूमि से तात्पर्य राज्य के किसी भाग में भूमि के किसी विशिष्ट टुकड़े से होगा जिस पर वृक्ष ऐसी संख्या में लगे हुए हों कि उक्त भूमि को अथवा उसके किसी अधिकांश भाग को किसी अन्य कृषि-प्रयोजन के लिए मुख्यतया काम में लाने से रोकते हों अथवा पूर्णतः बढ़ जाने पर रोकेंगे और तत्रूपेण लगाये गये वृक्ष उपवन के रूप में होंगे।

(16) उच्च न्यायाल - उच्च न्यायालय से मतलब राजस्थान उच्च न्यायालय से होगा।
(17) भूमि-क्षेत्र - भूमि-क्षेत्र से मतलब भूमि के एक या अधिक खण्डों से होगा जो कि एक पट्टे, बंधन या अनुदान के अधीन अथवा ऐसे पट्टे, बन्धन या अनुदान के न होने की दशा में, एक धारणाधिकार के अधीन धृत हो या हों और उसमें, इजारेदार या ठेकेदार के प्रसंग में इजारे अथवा ठेके का क्षेत्र सम्मिलित होगा।

परन्तु किसी व्यक्ति द्वारा सम्पूर्ण राजस्थान में कहीं भी एक पट्टे, बन्धन, अनुदान या धारणा के अधिकार के अधीन धृत भूमि के सभी भाग चाहे उन्हें वह स्वयं जोतता हो या किराए पर या शिकमी किराए पर देता हो, अध्याय 3  ख के प्रयोजनों हेतु, उसे उसका भूमि क्षेत्र माना जावेगा और जहाँ इस प्रकार की भूमि एक से अधिक व्यक्तियों के द्वारा सह-आसामियों सह भागियों की हैसियत से प्रदान की गई हो, ऐसे व्यक्तियों में से प्रत्येक का हिस्सा उसका अलग भूमि क्षेत्र माना जायेगा चाहे उसका बंटवारा हुआ हो या न हुआ हो।
मुरारीलाल बनाम रामरख
किसी भूमि क्षेत्र के अन्तर्गत धीरे धीरे वृद्धि हो तो वह भूमि क्षेत्र का हिस्सा माना जाता है।

(18) इजरा या ठेका - इजारा या ठेका से तात्पर्य लगान की वसूली हेतु दिए गये फार्म अथवा पट्टे से क्षेत्र जिसके बारे में इजारा ठेका है, इजारा या ठेका क्षेत्र कहलाएगा एवं  इजारेदार अथवा ठेकेदार से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से होगा जिसको इजारा या ठेका दे दिया जाय।

(19) सुधार - सुधार से तात्पर्य आसामी के भूमि-क्षेत्र के संबंध में निम्नप्रकार से होगा-
(क) किसी आसामी के द्वारा स्वयं के निवास हेतु भूमि-क्षेत्र में बनाया रहने का भवन अथवा उसके द्वारा अपने भूमि-क्षेत्र में बनाया गया अथवा स्थापित किया हुआ पशुओं का बाड़ा, भण्डार गृह अथवा कृषि प्रयोजनार्थ कोई अन्य प्रकार का निर्माण,
(ख) ऐसा कोई भी कार्य जिससे ऐसी भूमि-क्षेत्र की कीमतों में महत्वपूर्ण वृद्धि हो जाव और जो उस प्रयोजनार्थ सुसंगत होवे जिसके लिए वह भूमि-क्षेत्र किराये पर दिया जावे और इस भाग के पहले के उपबंधों के अध्यधीन रहते हुए, उसमें-
(1) कृषि प्रयोजनार्थ पानी के संग्रह करने प्रदाय या वितरण करने के लिए तालाबों, बंधो, कुआंे, नालों एवं अन्य प्रकार के साधनों का निर्माण,
(2) भूमि स ेजल बाहर आने के लिए बाढ़ों, मिट्टी की कटाई या पानी से हाने वाले अन्य नुकसान से उसकी रक्षा करने हेतु विभिन्न साधनों का निर्माण,
(3) भूमि का विभिन्न तरीकों से सुधार करना, सफाई करना, घेरा बांधना, बराबर करना अथवा ऊँचा करना,
(4) भूमि क्षेत्र के एकदम पास ऐसी किसी भूमि पर जो कि ग्राम की आबादी में न हो, भूमि-क्षेत्र के सुविधा युक्त लाभप्रद उपयोग हेतु निवास हेतु जरूरी भवन,
(5) ऊपर दिये गये कार्यों में से किसी का नवीनीकरण या पुनर्निर्माण अथवा उनमें ऐसे किसी परिवर्तन या परिवर्द्धन जो सिर्फ मरम्मत के ढंग के न हों, शामिल होंगे।

परन्तु इस प्रकार के अस्थायी कुएं, नाले, बंध, बाड़े अथवा अन्य कार्य जो आसामियों के द्वारा साधारणतया खेती के क्रम में बनाये जाते हैं, शामिल नहीं माने जावेंग।
रामप्रताप बनाम भीमसिंह
आर.आर.डी. 1964 पृष्ठ 138
काश्तकार द्वारा अपने क्षेत्र के अन्तर्गत कुए का निर्माण करना सुधार की परिभाषा में आता है।

(20) विलापित।
(21) जागीरदार - जागीरदार से तात्पर्य ऐसे भी किसी व्यक्ति से है जो कि राज्य के किसी स्थान में जागीर-भूमि या जागीर भूमि में हितों का धारण करता हो तथा किसी लागू जागीर कानून के अधीन जागीरदार के रूप में मान्य हो एवं उसमें जागीरदार से जागीर भूमि का अनुदानग्रहीता भी शामिल होगा, जिसमेंया जिसके बारे में जागीरदार को भू-राजस्व अथवा अन्य किसी राजस्व के विषय में अधिकार प्राप्त होते हैं।

(23) खुदकाश्त - खुदकाश्त से तात्पर्य राज्य के किसी भाग में किसी भी भू-सम्पत्तिधारी के द्वारा स्वयं द्वारा काश्त की गई भूमि से है और उसमें-
(1) इस प्रकार की भूमि जो कि इस अधिनियम के लागू होने के समय बन्दोबस्त अभिलेखों में खुदकाश्त ,सीर हवाला, निजी जोत घर खेड़ के रूप में उस समय जबकि उक्त अभिलेख तैयार किये गये हों, उस समय लागू विधि के अनुसार दर्ज की हुइ थी।
(2) ऐसे प्रारम्भ के बाद राज्य के किसी भी भाग में उस समय लागू किसी ऐसी विधि के अधीन, खुदकाश्त के रूप आवंटित की गई भूमि सम्मिलित होगी।

CASE LAW:-
कन्हैयालाल बनाम चिरमाली
आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 529
किसी भूमि को खुदकाश्त तभी माना जावेगा जब उसकी राज्य सरकार में निहित होने से पूर्व की तिथि में वार्षिक अभिलेखों में खुदकाश्त की प्रविष्टि हो।
स्टेट बनाम सोना
आर.आर.डी. 1979 पृष्ठ 577
खुदकाश्त की भूमि तभी मानी जायगी जब ऐसी प्रविष्टि रिकार्ड में हो।

(24) भूमि - भूमि से तात्पर्य ऐसी भूमि से होगा जो कृषि संबंधी कार्यों या तद्धीन ऐसे अन्य कार्यों अथवा उपवन अथवा चारागाह हेतु पट्टे पर दी जाये या धारित की जाये एवं उसमें भूमि क्षेत्र बनाये गये भवनों या बाड़ों की भूमि उस पानी से ढकी भूमि शामिल होगी, जो सिंचाई हेतु सिंघाड़ा अथवा तत्समान अन्य किसी उपज को उगाने हेतु काम में ली जा सके किन्तु उसमें आबादी भूमि शामिल नहीं होगी, उसमें भूमि संलग्न किसी भी चीज से स्थाई रूप में संबंधित वस्तुओं से होने वाले फायदे शामिल माने जायेंगे।

CASE LAW:-
समदकंवर बनाम स्टेट
आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 192
फेकरी के अहाते में आ जाने के बाद भी अहाते में ली गई भूमि खातेदार की जोत का ही अंश माना जायगा जब तक उसका अकृषि भूमि में रूपान्तरण न हो।
ब्रदी बनाम मोड़ा
आर.आर.डी. 1979 पृष्ठ 924
खेती की सिंचाई के निमित बनाया गया कुआं भी कृषि भूमि की परिभाषा में आवेगा।
(25) ऐसी भूमि जिसमें खुदकाश्त न की गई हो- ऐसी भूमि जिसमें खुदकाश्त न की गई हो से तात्पर्य उसके समस्त व्याकरण के संबंध रूपान्तरणों एवं अन्य इस प्रकार अभिव्यक्तियों सहित तात्पर्य उस भूमि से है जो स्वयं किसी व्यक्ति के लिए-
(1) उसके स्वयं के श्रम से अथवा
(2) उसके परिवार के सदस्यों के श्रम से अथवा
(3) उसकी व्यक्तिगत अथवा उसके परिवार के किसी भी सदस्य की देखरेख में किराये के मजदूरों से नौकरी से जिनकी मजदूरी नकद रूप में या जिन्स में दी जानी हो किन्तु फसल के भाग के रूप में नहीं काश्त की गई है।

किन्तु ऐसे व्यक्ति की दशा में जो कि विधवा हो, अथवा अवयस्क हो, अथवा किसी भी तरह की शारीरिक मानसिक रूप से अयोग्य हो अथवा भारतीय सेना, नौ सेना, हवाई सेना का सदस्य हो या राज्य सरकार के द्वारा मान्यता प्राप्त शिक्षण संस्था का विद्यार्थी हो एवं आयु में 25 वर्ष से कम हो, भूमि, उपरोक्त प्रकार व्यक्तिगत देखरेख के अभाव में भी स्वयं के लिये काश्त की हुई मानी जावेगी।

(25क) भू-स्वामी - भू-स्वामी से तात्पर्य राजस्थान लैण्ड एक्वीजीशन आॅफ लैण्ड ओनर्स एस्टेट्स एक्ट, 1963 की धारा 2 के खण्ड (ख) में परिभाषित भू-सम्पत्ति को, अपनी स्वयं की या निजी सम्पत्तियों के बारे में प्रसंविदा के अनुसार किये गये और केन्द्रीय सरकार द्वारा आखरी रूप से अनुमोदित समझौते के अध्याधीन और उसके अनुसार, धारित करने वाले, राजस्थान की प्रसंविदाओं के अन्तर्गत रियासतों के राजा से है।

(26) भूमि धारी - भूमि धारी से तात्पर्य राज्य के किसी ऐसे भाग में, उस व्यक्ति से है जो चाहे जिस भी नाम से जाना जावे जो लगान देता है अथवा जिसे व्यक्त या गर्भित करार के अभाव में, लगान देना होगा और उसमें निम्न शामिल हैं:-
(1) भू-सम्पत्तिधारी,
(2) उचित लगान दर पर अनुदान-ग्रहीता,
(3) उप-पट्टे की दशा में, मुख्य आसामी जिसने भूमि शिकवी-किराये पर उठाई हो अथवा उसका बंधकग्रहीता,
(4) अध्याय 9 तथा 10 के प्रयोजनार्थ इजारेदार या ठेकेदार, और
(5) साधारणतया प्रत्येक व्यक्ति जो प्रकृष्टधारी (सपुीरियर होल्डर) है, उन व्यक्तियों के प्रसंग में जो भूमि सीधे उससे लेकर या उसके अधीन धारण करते हों।
(26क) भूमिहीन व्यक्ति - भूमिहीन व्यक्ति से तात्पर्य एक व्यवसायह करने वाले कृषक से है जो खुद भूमि काश्त करता है या जिससे उचित रीति से काश्त करने की आशा की जा सकती है परन्तु जो अपने खुद के नाम से या अपने सम्मिलित परिवार के किसी सदस्य के नाम से भूमि धारण नहीं करता है या एक टुकड़ा (फ्रेगमेंट) रखता है।

CASE LAW:-
अन्तरबाई बनाम बाधासिंह
आर.आर.डी. 1979 पृष्ठ 257
ऐसे काश्तकार की जिसने सीलिंग से अधिक भूमि राज्य सरकार को समर्पित कर दी और अपनी शेष भूमि बेच दी भूमि आवंटन हेतु भूमिहीन नहीं माना जाएगा।

सलीम बनाम राज्य
आर.आर.डी. 1982 पृष्ठ 520
राजस्थान काश्तकारी अधिनियम के प्रावधान किसी भी धर्म से संबंधित व्यक्ति पर लागू होते हैं।
नारायन बनाम राज्य
आर.आर.डी. 1982 पृष्ठ 522
पिता से अलग रहने पर उसे संयुक्त परिवार का सदस्य नहीं माना जा सकता है।

(26 क क)  मालिक - मालिक से तात्पर्य किसी जमीनदार अथवा बिस्वेदार से है जो, राजस्थान जमीनदारी एवं बिस्वेदारी एबोलीशन एक्ट, 1959 के अन्तर्गत अपनी भू-सम्पत्ति के राज्य सरकार में निहित हो जाने पर, अपने द्वारा धारण स्वयं काश्त भूमि का उक्त अधियिम की धारा 29 के अन्तर्गत स्वामी बन जाता है।

(26ख) भारत की सेना, नौ-सेना अथवा हवाई सेना सदस्य - भारत की सेना, नौ-सेना अथवा हवाई सेना सदस्य या संघ की सशस्त्र सैन्य बल का सदस्य में राजस्थान आर्म्ड कांस्टेबुलरी का सदस्य सम्मिलित है।

(27) अधिवासित भूमि - अधिवासित भूमि से तात्पर्य ऐसी भूमि से होगा जो किसी आसामी को कुछ समय के लिए किराये पर दी गई हो एवं उनक कब्जे में हो। उसके अन्तर्गत खुदकाश्त भूमि भी सम्मिलित होगी तथा अनधिवासित भूमि से तात्पर्य उस भूमि से होगा जो कब्जे में नहीं है।

CASE LAW:-
नरजी बनाम अमोलकसिंह
आर.आर.डी. 1982 पृष्ठ 237
अतिक्रमी के कब्जे की भूमि अधिवासित भूमि नहीं है।
हरपाल बनाम काना
आर.आर.डी. 1982 पृष्ठ 584
आवंटन के द्वारा अतिक्रमी के अधिकार पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं होगा।

(28) गोचर भूमि - गोचर भूमि से तात्पर्य ऐसी भूमि से होगा जो गाँव या गाँवों के पशुओं को चराने के काम में आती हो या जो इस अधिनियम के प्रभाव में  आने के समय बन्दोबस्त अभिलेख में ऐसी भूमि दर्ज हो अथवा उसके पश्चात् राज्य सरकार द्वारा निर्मित नियमों के अनुसार ऐसी भूमि दर्ज हो अथवा उसके पश्चात् राज्य सरकार द्वारा निर्मित नियमों के अनुसार ऐसी भूमि  के रूप में सुरक्षित रखी गई हो,

(29) भुगतान - भुगतान जिसमें व्याकरण के अनुसार उसके समस्त रूपान्तर तथा संबंधित अभिव्यक्तियाँ समाविष्ट हैं, में जब लगान के संबंध में प्रयोग में लाया जाय, ‘‘दे देना’’ जिसमें व्याकरण के अनुसार समस्त रूपान्तर तथा संबंधित अभिव्यक्तियाँ समाविष्ट हैं, सम्मिलित होगा।

(30) निर्धारित - निर्धारित से तात्पर्य इस अधिनियम के अन्तर्गत निर्मित नियमों के द्वारा निर्धारित से होगा।

(31) पंजीयित - पंजीयित से तात्पर्य इण्डियन रजिस्ट्रेशन एक्ट, 1908 के अन्तर्गत पंजीयित से होगा और उसमें इस अधियिम की धारा 33 के अन्तर्गत ’’प्रमाणीकृत’’ सम्मिलित होगा।

(32) लगान - लगान से तात्पर्य उससे होगा जो कुछ भी भूमि के उपयोग या अधिवास या भूमि में किसी अधिकार के लिये नकद या जिंस अंशतः नकद और अंशतः जिन्स के रूप में देय और जब तक कोई विपरीत तात्पर्य प्रकट न हो इसमें ’’सायर’’ सम्मिलित होगा।

CASE LAW:-
गुमानसिंह बनाम परवतसिंह
आर.आर.डी. 1956 पृष्ठ 77
सेवा को लगान नहीं माना जा सकता है।

(33) विलोपित।
(34) राजस्व - राजस्व से तात्पर्य भू-राजस्व से होगा अर्थात् भूमि को या उसमें से किसी हित या भूमि के उपयोग के संबंध में किसी भी कारण से सीधा राज्य सरकार को भुगतान किये जाने योग्य वार्षिक योग और उसमें अभिहस्तांकित भू-राजस्व सम्मिलित होगा।

(34क) राजस्व अपील प्राधिकारी - राजस्व अपील प्राधिकारी से तात्पर्य राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम,1956 की धारा 20 क के अन्तर्गत ऐसे अधिकारी के रूप में नियुक्त किये गये अधिकारी से होगा।

(35) राजस्व न्यायालय - राजस्व न्यायालय से तात्पर्य ऐसे न्यायालय या पदाधिकार से होगा जो कृषक किरायेदारियों, लाभों तथा भूमि संबंधी अन्य मामलों अथवा भूमि में किसी अधिकार या अनिहित हित के विषय में ऐसे दावों या अन्य कार्यवाहियों को जिसमें उक्त न्यायाल या पदाधिकारी से न्यायपूर्वक कार्य करना अपेक्षित हो, स्वीकार करने की अधिकारिता रखता हो, उसमें बोर्ड तथा उसका प्रत्येक सदस्य राजस्व अपील अधिकारी, कलक्टर, सब डिवीजनल आफसिर, सहायक कलक्टर, तहसीलदार या कोई अन्य राजस्व पदाधिकारी जब कि वह इस प्रकार कार्य कर रहा हो, सम्मिलित होगा।

(36) राजस्व पदाधिकारी - राजस्व पदाधिकारी से तात्पर्य ऐसे पदाधिकारी से होगा जो राजस्व और लगान संबंधी कार्य करता हो या कार्य में राजस्व संबंधी रेकार्ड रखता हो।

(37) सायर - सायर में वह सब सम्मिलित है जो कुछ अनुज्ञाधारी या पट्टेधारी द्वारा अनधिवासित भूमि से ऐसी उपज जैसे घास,फूस, लकड़ी, ईंधन, फल, लाख , गोंद, लूंग, पाला, पन्नी, सिंघाड़ा या ऐसी कोई वस्तु या ऐसा कूड़ा कर्कट जैसे भूमि पर फैली हड्डियाँ या गोबर उठाने के अधिकार के कारण या मछली पकड़ने के अधिकार के कारण या वन अधिकारों या अप्राकृतिक साधनों से सिंचाई के प्रयोजनार्थ पानी लेने के कारण भुगतान किया जाना हो। भूमिधारी की भूमि से होने वाली आय से जो भुगतान किया जाता है, वह सायर होता है।

(37क) अनुसूचित जाति - अनुसूचित जाति से तात्पर्य संविधान (अनुसूचित जातियाँ) आदेश 1950 के भाग 14 के अन्तर्गत कोई भी जाति, प्रजाति या जन जाति से जातियों या जन जातियों के सदस्यों या उनमें समूहों से होगा।

(37ख) अनुसूचित जनजाति - अनुसूचित जनजाति से तात्पर्य संविधान (अनुसूचित जनजातियाँ) आदेश 1950 के भाग 12 के अन्तर्गत कोई भी जनजाति, जनजाति समुदायों से या जनजातियों या जनजाति समुदायों के भाग से या उनके समूहों से होगा।

(38) बन्दोबस्त - बन्दोबस्त से तात्पर्य लगान या राजस्व या दोनों के बन्दोबस्त या पुनः बन्दोबस्त से होगा और उसमें राजस्थान लैण्डस् समरी सैटिलमैण्ट एक्ट, 1953 के अन्तर्गत संक्षिप्त बन्दोबस्त भी सम्मिलित होगा।

(39) राज्य - राज्य से तात्पर्य राजस्थान राज्य जैसा कि स्टेट्स री-आर्गेनाइजेशन एक्ट, 1956 की धारा 10 द्वारा गठित है, से होगा।

(40) उपखण्ड अधिकारी - उपखण्ड अधिकारी से तात्पर्य राजस्थान टेरिटोरियल डिवीजन आर्डिनेन्स, 1949 के या उस समय प्रभावशील अन्य किसी कानून के अन्तर्गत एक या अधिक सब-डिवीजनों के प्रभारी सहायक कलक्टर से होगा और उसमें अध्याय 3ख के प्रयोजन के लिये, जिस जिले में वह उस समय पदस्थापित हो, उसके सारे सब डिवीजनों के लिए सहायक कलक्टर सम्मिलित होगा।

(41) शिकमी आसामी - शिकमी आसामी से तात्पर्य राज्य के किसी भाग में चाहे किसी भी नाम से जानने वाले ऐसे व्यक्ति से होगा जो भूमि के आसामी से लेकर भूमि धारण करता है और जिसके द्वारा लगान, व्यक्त या विवक्षित संविदा के अभाव में दिया जाता है। जिसमें मालिक अथवा भू स्वामी  से भूमि धारण करने वाला आसामी सम्मिलित है ।

(42) तहसीलदार - तहसीलदार से तात्पर्य राजस्थान टेरिटोरियल डिवीजन आर्डिनेन्स, 1949 के या उस समय प्रभावशील अन्य किसी कानून के अन्तर्गत नियुक्त किये गये तहसीलदार होगा।

(43) आसामी - आसामी से तात्पर्य उस व्यक्ति से होगा जो लगान देता है या किसी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष संविदा के अभाव में देगा।
और उसमें सिवाय उस अवस्था के जबकि विपरीत आशय प्रकट हो, निम्न भी शामिल होते हैं:-
(क) आबू क्षेत्र में स्थायी आसामी या संरक्षित आसामी।
(ख) अजमेर क्षेत्र में, भूतपूर्व स्थायी आसामी या अधिवासी आसामी या वंश परम्परागत आसामी या अनधिवासी आसामी या भू-स्वामी या काश्तकार।
(ग) भूतपूर्व स्वामी, आसामी या एक पक्का आसामी या एक साधारण आसामी, सुनेल क्षेत्र में,
(घ) एक सह आसामी,
(ङ) एक उपवनधारी,
(च) एक ग्राम सेवक,
(चच) एक भू-स्वामी से धारण करने वाला आसामी,
(छ) एक खुदकाश्त का आसामी,
(ज) एक काश्तकारी के अधिकारों का बंधक ग्रहीता और
(झ) एक शिकमी आसामी,

परन्तु अनुकूल लगार दर पर अनुदानग्रहीता या इजारेदार या ठेकेदार या अतिक्रमी सम्मिलित नहीं होंगे।

CASE LAW:-
सोहनसिंह बनाम लाला
आर.आर.डी. 1981 पृष्ठ 560
काश्तकारी के अधिकारों का बन्धकगृहीता एक आसामी है न कि अतिक्रमी। बिना कानूनी प्रक्रिया के उसे बेदखल करने पर वह प्रतिरक्षा पाने का अधिकारी है।

(44) अतिक्रमी - अतिक्रमी से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से होगा जो भूमि का कब्जा बिना अधिकार प्राप्त किये बनाए रखता है अथवा भूमि पर अन्य व्यक्ति को जिसे ऐसी भूमि विधि अनुसार पट्टे पर दी गई है, कब्जा करने से रोकता है।

CASE LAW:-
यादराम बनाम बिट्टी बाई
आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 147
खातेदार की इच्छा के विरूद्ध उपकृषक यदि पांच साल बाद भूमि पर बना रहता है तो उस भूमि पर उपकृषक का कब्जा साधिकार नहीं है।

आर.आर.डी. 1979 एन.ओ.सी. 37
उपकृषक जो अवधि समाप्त होने पर भी खातेदार की भूमि पर बना रहता है, तो वह अतिक्रमी नहीं है।

आर.आर.डी. 1979 पृष्ठ 221
जहाँ भूमि मैनेजिंग आफीसर पुर्नवास द्वारा वितरित की है उस पर काबिज कृषक अतिक्रमी नहीं है।



(45) ग्राम सेवा अनुदान - ग्राम सेवा अनुदान से तात्पर्य राज्य के किसी हिस्से में चाहे किसी भी नाम से जानने वाले ऐसे अनुदान से होगा जो ग्राम समुदाय के लिये या ग्राम प्रशासन के संबंध में किसी विनिर्दिष्ट सेवा के एवज में अथवा उसके परिश्रम के रूप में या तो लगान मुक्त या अनुकूल लगान दर पर अथवा अन्य शर्तों पर दिया जावे और ऐसे अनुदान का गृहीता ‘‘ग्राम सेवक’’ कहलायेगा।

(46) जमींदार - जमींदार से तात्पर्य ऐसे व्यक्ति से होगा जिसे राज्य के किसी हिस्से में कोई गाँव या किसी गाँव का हिस्सा, जमींदारी प्रथा के अनुसार बन्दोबस्त में दिया जाय और ऐसा जमींदारों के रूप में अधिकार अभिलेख में दर्ज किया जाये और उसमें सुनेल क्षेत्र के संबंध में, यदि कोई हो, मध्य भारत जमींदारी एबोलिशन अधिनियम संख्या 2008 की धारा 2 के खण्ड (क) में परिभाषित स्वामी सम्मिलित होगा।

(47) नालबट - नालबट से तात्पर्य किसी व्यक्ति द्वारा किसी कुए के स्वामी को, उस कुए को सिंचाई के प्रयोजनार्थ प्रयोग करने के लिए नकदी या जिन्सों के रूप में भुगतान करने से होगा।

आसामियों के वर्ग

आसामियों की श्रेणियां
धारा 14

इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये आसामियों की निम्नलिखित श्रेणियां होंगी अर्थात
(क) खातेदार आसामी,
(कक) मालिक,
(ख) खुदकाश्त के आसामी, और
(ग) गैर-खातेदार आसामी।

CASE LAW:-
देवालाल बनाम लक्ष्मीनारायण (आर.आर.डी. 1968 पृष्ठ 485)
आसामी में राहिन भी शामिल है किन्तु उसके सीमित अधिकार उसे आसामी के पूर्ण स्वामित्व के अधिकार प्रदान नहीं कर सकते।
चेतनराम बनाम भंवरसिंह (आर.आर.डी. 1969 पृष्ठ 294)
धारा 14 में शिकमी काश्तकार नामक कोई वर्गीकरण नहीं है।

खातेदार आसामी
धारा 15
धारा 15 (1)
- धारा 16 तथा धारा 180 की उपधारा (1) के खण्ड (घ) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए प्रत्येक व्यक्ति जो, इस अधिनियम के ंप्रारम्भ के समय भूमि के शिकमी आसामी या खुदकाश्त के आसामी के अलावा अन्य प्रकार का आसामी हो या जो, इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् शिकमी आसामी या खुदकाश्त के आसामी या (राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 101 के अन्तर्गत बनाये गये नियमों के अधीन तथा उनके अनुसरण में भूमि का आवंटिती) के अतिरिक्त आसामी की हैसियत से प्रविष्टि कर लिया जाय अथवा जो इस अधिनियम के या राजस्थान लैण्ड रिफाम्र्स एण्ड रिजम्पशन आफ जागीर्स एक्ट, 1952 के अथवा तत्समय प्रवृत अन्य किसी विधि के उपबन्धों के अनुसरण में भूमि में खातेदारी अधिकार अर्जित करता है, खातेदार आसामी  होगा और इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए इस अधिनियम द्वारा खातेदार आसामी को प्रदत्त समस्त अधिकारों का हकदार होगा तथा अरोपित समस्त दायित्वों के अधीन रहेगा।
परन्तु कोई खातेदारी अधिकार इस धारा के अन्तर्गत ऐसे किसी आसामी को अर्जित  नहीं होंगे जिसे गंग कनेाल, भाकरा, चम्बल अथवा जवाई प्रोजेक्ट क्षेत्र या इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किसी अन्य क्षेत्र में अस्थायी तौर पर भूमि पट्टे पर दी जाय या दे दी गई है।

धारा 15 (2) - उपधारा (1) में किसी बात के अन्तर्वििष्ट होते हुए, तदन्तर्गत खातेदारी अधिकार ऐसे किसी व्यक्ति को प्रादभूत नहीं होंगे जिसे राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व ‘‘अधिक अन्न उपजाओ आन्दोलन’’ को अग्रसर करते हुए या किसी विशेष आदेश के अन्तर्गत या किन्हीं निर्दिष्ट शर्तों के अधीन या किन्हीं वैधानिक या गैर वैधानिक नियमों के अनुसरण में भूमि किराये पर दी गई थी और जिसने उक्त प्रारम्भ के पूर्व, उक्त आन्दोलन के उद्देश्य की प्राप्ति में भूल की हो अथवा उक्त किसी अदेश, शर्त या नियम को भंग किया हो।

धारा 15 (3) - उपधारा (2) में उल्लिखित कोई व्यक्ति, इस अधिनियम के प्रारम्भ होने से तीन वर्ष के अन्दर और पच्चीस पैसा न्यायालय शुल्क भुगतान करने पर, अधिकारिता रखने वाले सहायक कलक्टर को यह घोषणा की जाने की प्रार्थना करते हुए आवेदन कर सकेगा कि उसने अपने द्वारा संघृत भूमि में उपधारा (1) के अधीन खातेदारी अधिकार अर्जित कर लिये हैं।

धारा 15 (4) - उक्त आवेदन पत्र निम्नलिखित किसी एक आधार पर प्रस्तुत किया जा सकता है, अर्थात् -
(क) कि उसके द्वारा संघृत भूमि उसे इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् किराये पर दी गई थी,
(ख) कि उक्त भूमि उसे उपधारा (2) में निर्दिष्ट परिस्थितियों में से किसी के आधार पर नहीं दी गई थी,
(ग) कि उक्त भूमि जब उसे किराये पर दी गई थी तब उसे इन परिस्थितियों से अवगत नहीं कराया गया था,
(घ) कि उसने, उक्त प्रारम्भ के पूर्व, कोई भूल या भंग इस प्रकार की जैसी कि उपधारा (2) में निर्दिष्ट है, नहीं की थी।

धारा 15 (5) - सहायक कलक्टर, उपधारा (3) के अन्तर्गत आवेदन पत्र प्रस्तुत किया जाने पर, विहित रीति से जाँच करेगा और आवेदक को सुनवाई का युक्ति संगत अवसर प्रदान करेगा तथा, यदि वह आवेदन पत्र को अस्वीकार नहीं करता है तो, यह घोषणा करेगा कि आवेदक अपनी भूमि का, उपधारा (1) के उपबन्धों के अनुसरण में तथा उनके अधीन रहते हुए, खातेदार आसामी हो गया।

CASE LAW:-
रामसिंह बनाम ठाकरिया (आर.आर.डी. 1958 पृष्ठ 17)
यह धारा फौज में सेवारत कर्मचारियों की भूमि पर भी लागू होती है।

यादी बनाम मोहनलाल (आर.आर.डी. 1959 पृष्ठ 68)
टासामी धार 89 के अन्तर्गत वह जिस वर्ग का आसामी है उस हेतु घोषणात्मक वाद प्रस्तुत कर सकता है।

प्रभू बनाम रामदेव (ए.आई.आर. 1966 एस.सी. 1721)
जागीरदार की जो भूमि खुदकाश्त दर्ज नहीं है। उस पर आसामी खातेदारी अधिकार प्राप्त कर सकता है।
 
ठाकुर गजेन्द्रसिंह बनाम तहसीलदार बैर (आर.एल. डब्ल्यू. 1960 पृष्ठ 17)
धारा  15 के अन्तर्गत जिसे खातेदारी अधिकार प्राप्त हो जाते हैं उसे केवल राजस्थान काश्तकारी अधिनियम के अध्याय 11 के अन्तर्गत बेदखल किया जा सकता है।

हीरा बनाम फकरूद्दीन (आर.आर.डी. 1965 पृष्ठ 91)
जयपुर काश्तकारी अधिनियम के द्वारा जिसे गैर खातेदारी अधिकार प्रदत्त है, वह आसामी इस धारा के अन्तर्गत खातेदार हो सकता है।

किशनलाल बनाम राजस्थान सरकार (आर.आर.डी. 1963 पृष्ठ 71)
चम्बल क्षेत्र में अंकित ‘‘मुस्त्तकिल शिकमी, आसामी धारा 15 के तहत खातेदार है।

शंकरलाल बनाम किशना (आर.आर.डी. 1967 पृष्ठ 110)
खातेदारी अधिकार माफी के अधिकारों से भिन्न हैं।

कालवा बनाम राजस्व मण्डल (आर.आर.डी. 1962 एच.सी. 36)
धारा 15 उप आसामी को खातेदार अधिकार प्रदान नहीं करती है।

रामभूलसिंह बनाम राजस्थान सरकार (आर.आर.डी. 1962 पृष्ठ 254)
यदि कोई व्यक्ति 15-10-1955 को आसामी दर्ज नहीं है तो उसे धारा 15 के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार नहीं मिल सकते।

टेका बनाम दुलेसिंह (आर.आर.डी. 1964 पृष्ठ 220)
जो व्यक्ति किसी मसविदा के अन्तर्गत भूमि धारण करता है तथा दीवानी न्यायालय ने बेदखली की डिग्री के निस्पादन के आदेश पारित कर दिया है वह धारा 15 के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं कर सकता क्योंकि वह आसामी की परिभाषा मंे नहीं आता।

उमिया बनाम दुलेसिंह (आर.आर.डी. 1966 पृष्ठ 109)
उपकृषक को धारा 19 के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार मिल सकते हैं, धारा 15 के अन्तर्गत नहीं।

रतना बनाम राजस्थान सरकार (आर.आर.डी. 1963 पृष्ठ 65)
आराजी कमबूजा ठिकाना पर जागीरदार के काश्तकारों को धारा 15 के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं होते।

(आर.आर.डी. 1966 पृष्ठ 318)
यदि उपकृषक खातेदार की तरफ से लगान अदा करता है तो वह खातेदार नहीं बन सकता।

सुखराम बनाम राजस्थान राज्य (आर.आर.डी. 1961 पृष्ठ 248)
धारा 15 का परन्तुक उन परिस्थितियों का वर्णन करता है जिनसे खातेदारी अधिकार प्रदान नहीं होते।

दुल्ला बनाम राज्य (आर.आर.डी. 1967 पृष्ठ 44)
खातेदारी अधिकार भारतीय संविधान की धारा 31 के अन्तर्गत सम्पत्ति की परिभाषा में आते हैं तथा इनको बिना मुआवजा समाप्त नहीं किया जा सकता है।

मंगला बनाम भंवरलाल (आर.आर.डी. 1972 पृष्ठ 202)
यदि किसी काश्तकार को परियोजना क्षेत्रों में जिनका धारा 15 के परन्तुक में अंकन है, अस्थाई रूप से भूमि दी गई है तो उसे खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं होते।

राज्य बनाम पूर्णमल गुप्ता (आर.आर.डी. 1970 पृष्ठ 138)
धारा 15 के परन्तुक के प्रभावशील होने के लिए आवंटन का अस्थाई होना आवश्यक है।

सुरज मल बनाम श्रीहजारी (आर.आर.डी. 1972 पृष्ठ 334)
राजस्व मण्डल की विस्तृत पीठ ने राज्य सरकार की विज्ञप्ति दिनांक 11-9-1957 के द्वारा नामान्तकरण के अधिकार ग्राम पंचायतों को प्रदत्त किए जाने के फलस्वरूप पंचायत को धारा 19 के नामान्तकरण के लिए अधिकृत माना है।

राज्य बनाम घनश्यामदास (आर.आर.डी. 1972 पृष्ठ 334)
जब भूमि ‘‘अधिक अन्न उपजाओ’’ आन्दोलन के अन्तर्गत् दी गई तो ऐसी भूमि में धारा 156 के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार प्रदान करने का सहायक जिलाधीश का क्षेत्राधिकार है। ऐसे अधिकार संचालक उपनिवेशन को नहीं हैं।

सुगनाराम बनाम सांवतसिंह (आर.आर.डी. 1975 पृष्ठ 302)
धारा 15 के अन्तर्गत खुदकाश्त कृषक व उपकृषक को खातेदारी अधिकार प्रदान नहीं किये जा सकते।

श्रीकजोड बनाम श्रीगणेश (आर.आर.डी. 1976 पृष्ठ 317)
15-10-1955 को या इससे पूर्व मान्य कृषक न तो उपकृषक है न ही अतिक्रमी तथा उसे धारा 15 के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार प्राप्त होते हैं एवं ऐसा खातेदार धारा 183 के अन्तर्गत बेदखल वाद प्रस्तुत कर सकता है।

राज्य बनाम केदारदास व अन्य (आर.आर.डी. 1976 पृष्ठ 436)
सम्वत् 2012 के केवल कब्जा मात्र से धारा 15 के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं होते।

रामखलादी बनाम मिश्रीलाल (आर.आर.डी. 1976 पृष्ठ 439)
खसरा गिरदावरी में अंकन मात्र से कोई अधिकार नहीं मिलते। वादी को यह प्रमाणित करना पड़ता है कि वह खातेदार है।

राज्य बनाम बाबूलाल (आर.आर.डी. 1976 पृष्ठ 551)
धारा 15 के अन्तर्गत भू प्रबन्ध विभाग के द्वारा खातेदारी अधिकार का दिया जाना गौण है।

परमसुख बनाम स्टेट (आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 482)
पुराना कब्जा होने के आधार पर ही धारा 15 के अन्तर्गत खातेदारी नहीं मिल सकती है।

फूलसिंह बनाम मोतीलाल (आर.आर.डी. 1979 पृष्ठ 40)
वार्षिक अभिलेख सम्वत् 2012 में जिस व्यक्ति का नाम अंकित न हो वह खातेदार नहीं बन सकता है।

(आर.आर.डी. 1980 पृष्ठ 464)
कब्जे के आधार पर घोषणात्मक दावा लाया जा सकता है।

किसनराम बनाम गंगाराम (आर.आर.डी. 1981 पृष्ठ 714)
विधवा और नाबालिग की खुदकाश्त की भूमि में खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं।

चुन्नीराम बनाम राज्य (आर.आर.डी. 1982 पृष्ठ 123)
जहाँ कानून राज्य से संबंध रखता है वहाँ राज्य को पक्षकार बनाना आवश्यक है।

मालचन्द बनाम स्टेट (आर.आर.डी. 1983 पृष्ठ 240)
बन्धककत्र्ता को खातेदारी अधिकार प्राप्त होंगे।


श्रीमति नाथी बनाम रामसहाय (आर.आर.डी. 1985 पृष्ठ 190)
बन्धक अवधि समाप्त हो जाने के पाँच साल बाद भी काश्तकार के रूप में कब्जा बनाया रखने पर निर्धारित किया गया है कि ऐसा व्यक्ति धारा 5(43) (एच.) के अन्तर्गत अधिनियम के प्रभाव में आने के समय ऐसा व्यक्ति खातेदारी अधिकार प्राप्त करने का हकदार होता है।

नन्दसिंह बनाम जागीरसिंह (आर.आर.डी. 1987 पृष्ठ 373)
अधिनियम के प्रभाव में आने के समय केवल मात्र बन्धक ग्रहिता का भूमि पर कब्जा होने मात्र से उसे खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते।

राज्य बनाम जीवा (आर.आर.डी. 1988 पृष्ठ 14)
केवल मात्र कब्जा के आधार पर खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं।

कजोड अलीयास बनाम मु. पन्नी (आर.आर.डी. 1989 पृष्ठ 56)
वादी काश्तकारी अधिनियम प्रभाव में आने के समय संवत् 2012 में अपनी खातेदारी स्थापित करने में असफल रहा है, उसे कानून के द्वारा खातेदार घोषित नहीं किया जा सकता है।

श्यामसिंह बनाम राजस्थान राज्य (आर.आर.डी. 1989 पृष्ठ 445)
अवैध नियमितिकरण के आधार पर धारा 15 के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार प्रदत्त नहीं किये जा सकते।

मंदिर मूर्ति ठाकुरजी महाराज बनाम बोर्ड आफ रेवेन्यू (आर.आर.डी. 1991 पृष्ठ
6 )
क्या मंदिर की भूमि पर खातेदारी अधिकार मिलते हैं? उत्तर-हाँ,, यदि भूमि सम्वत् 2009 में मंदिर की खुदकाश्त लिखी हुई नहीं हो।

इन्दिरा गाँधी नहर क्षेत्र में खातेदारी अधिकारों को प्रोद्भूत न  होना
धारा 15क (1)
- इस अधिनियम धारा 13 में या धारा 15 की उपधारा (1) में या तत्समय प्रवृत अन्य किसी विधि में , या किसी लीज, पट्टा, अन्य दस्तावेज में , किसी बात के अन्तर्विष्ट होते हुए इन्दिार गाँधी नहर क्षेत्र में भूमि, जो चाहे किन्हीं निर्बन्धनों पर लीज पर दी गई हो, इस अधिनियम की उपरोक्त धारा 15 की उपरोक्त उपधारा के परन्तुक अर्थ में अस्थायी रूप से लीज पर दी गई समझी जायेगी और किसी भी उक्त भूमि, जो उपरोक्त रीति से लीज दी गई हो, कोई खातेदारी अधिकार प्रोद्भूत नहीं होंगे अथवा कभी प्रोद्भूत हुए नहीं समझे जायेंगे।

परन्तु उपधारा (1) में कोई बात ऐसे व्यक्ति पर कोई प्रभाव डालेगी अथवा लागू नहीं होगी जिसे खातेदारी अधिकार, राजस्थान कोलोनाइजेशन एक्ट, 1954 की धारा 7 द्वारा प्रदत्त शक्ति के प्रयोग में निर्मित राजस्थान कोलोनाइजेशन (जनरल कालोनी) केण्डीशंस 1955, या किसी अन्य स्टेटमेण्ट आफ कण्डीशंस अथवा रूल्स आफ एलाटमेण्ट एण्ड सेल आफ गवर्नमेण्ट लैण्ड्स अथवा राजस्थान लैण्ड रिफाम्र्स एण्ड रिजम्पशन आफ जागीर्स एक्ट, 1952 के अन्तर्गत इन्दिरा गाँधी नहर क्षेत्र में काश्त के आवंटन के लिये निर्मित नियमों के उपबन्धों के अनुसार प्रोदभूत होंगे।

धारा 15क (2) - कोई व्यक्ति जो यह दावा करता हो कि वह उपधारा (1) में उल्लिखित किसी भूमि में खातेदारी अधिकार रखता है तथा उनका उपभोग करता है क्यांेकि वह भूमि उसे इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व स्थायी रूप में किराये पर दी गई थी, उक्त प्रारम्भ के चार वर्ष के भीतर तथा पचास नया पैसा न्यायालय शुल्क अदा करने  पर अधिकारिता रखने वाले सहायक कलक्टर को इस प्रकार की घोषणा की जाने की प्रार्थना करते हुए, आवेदन पत्र प्रस्तुत कर सकेगा और इस आवेदन पत्र के संबंध में धारा 15 की उपधारा (5) के उपबन्ध लागू होंगे।

चम्बल प्रोजेक्ट क्षेत्र में खातेदारी अधिकारों का कुछ मामलों में प्रोद्भूत न होना
धारा 15 कक (1)
- किसी लीज, कर-निर्धारण परचा, पट्टा या अन्य दस्तावेज में किसी बात के अन्तर्विष्ट होते हुए, चम्बल सिंचाई प्रोजेक्ट क्षेत्र में किसी व्यक्ति को जो कि भूमि धारण करता है, कभी भी खातेदारी अधिकार प्रोद्भूत नहीं समझे जायेंगे।

धारा 15 कक (2) - उपधारा (1) की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को प्रभावित नहीं करेगी अथवा उस पर लागू नहीं होगी जिसे, इस अधिनियम के प्रारम्भ होने के पहले से ही, भूतपूर्व कोटा स्टेट या भूतपूर्व बूंदी स्टेट के टिनेंसी कानूनों के अन्तर्गत वंशानुगत तथा हस्तांतरणीय अधिकार प्राप्त थे अथवा जिसे इस अधिनियम की धारा 13 या धारा 19 के अन्तर्गत, अथवा राजस्थान कोलोनाइजेशन (चम्बल प्रोजेक्ट गवर्नमेण्ट लैण्ड्स अलाटमेण्ट एण्ड सेल) रूल्स, 1957 के अन्तर्गत तथा उनके अनुसरण में अथवा राजस्थान लैण्ड रिफाम्र्स एण्ड रिजम्पशन आफ जागीर्स एक्ट, 1952 या राजस्थान जमीनदारी तथा बिस्वेदारी उन्मूलन अधिनियम, 1959 के किसी उपबंध के अन्तर्गत तथा तदनुसरण में, खातेदारी अधिकार प्रोद्भूत हो गये हों।

इन्दिरा गाँधी नहर क्षेत्र में खातेदारी अधिकारों का प्राप्त होना
धारा 15ककक (1)
- धारा 15क में किसी बात के अन्तर्विष्ट होते हुए भी, कोई भी व्यक्ति जो, इस अधिनियम के प्रभाव में आने पर,
(क) खुद काश्तकार या अधिभोगी काश्तकार या मोरुसीदार या खातेदार काश्तकार या अन्तरणीय तथा दाय-योग्य अधिकारों सहित काश्तकार था और जिसे उस समय प्रचलित वार्षिक रजिस्टर में इस प्रकार दर्ज किया गया था, या
(ख) इस प्रकार दर्ज नहीं किया था किन्तु खुद काश्तकार या अधिभोगी काश्तकार या मोरुसीदार या खातेदार काश्तकार या अन्तरणीय तथा दाय-योग्य अधिकारों सहित काश्तकार था।

इस अधिनियम के प्रभाव में आने की तारीख से इस अधिनियम के अधीन खातेदार काश्तकार के सम्पूर्ण अधिकारों का हकदार और समस्त दायित्वों के अध्यधीन होगा।

धारा 15ककक (2) -  ऐसा दावा करने वाला प्रत्येक व्यक्ति कि उसे उपधारा (1) के खण्ड (ख) में उल्लिखित अधिकार प्राप्त हुए हैं, राजस्थान काश्तकारी (संशोधन) अधिनियम, 1979 के लागू होने से एक वर्ष के भीतर और पचास पैसे न्यायालय फीस का भुगतान करने पर क्षेत्राधिकार रखने वाले सहायक कलक्टर या समय समय पर राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किसी भी अन्य प्राधिकारी को इस घोषणा के लिए आवेदन कर सकेगा कि उसने उसके द्वारा धारित भूमि में उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अधीन खातेदारी अधिकार प्राप्त किये हैं और ऐसे आवेदन पर धारा 15 की उपधारा (5) के उपबन्ध लागू होंगे।

धारा 15ककक (2क) -  धारा 15क में किसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्ति जो इन्दिरा गाँधी नहर क्षेत्र के भीतर खुदकाश्त के उप अधिकारी या अभिधारी के रूप में भिन्न भूमि के खुदकाश्त का धारक था या भूमि का अभिधारी था, चाहे वह ऐसा इस अधिनियम के प्रारम्भ पर अभिलिखित था या राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 106 और धारा 107 के अधीन संचालित सर्वेक्षण या पुनर्सर्वेक्षण और अभिलेख संक्रियाओं के दौरान तैयार किए गए अधिकारों के अभिलेख में बाद में दर्ज किया गया हो, समस्त अधिकारों का हकदार होगा और इस अधिनियम के अधीन उसके द्वारा धारित भूमि के ऐसे सम्पूर्ण भाग या अंश के संबंध में जो भूमि के उस अधिकतम क्षेत्र से अधिक न हो जिसका वह राजस्थान कृषि जोतों पर अधिकतम सीमा अधिरोपण अधिनियम, 1973 के उपबंधों के अनुसार धारित करने का हकदार होता, खातेदार अभिधारी के रूप में समस्त दायित्वों के अध्यधीन होगा।

धारा 15ककक (3) - धारा 15 क उपधारा (1) में कुछ भी समाविष्ट होने के बावजूद एवं उपधारा (1) में प्रावधित हुए को छोड़कर इस अधिनियम के प्रारम्भ पर एक व्यक्ति जो-
(क) किसी भूमि का एक आसामी या खुदकाश्त का आसामी नहीं होकर और तत्समय चालू वार्षिक पंजिकाओं में तदनुसार अभिलिखित किया गया था, या
(ख) तदनुसार अभिलिखित नहीं किया गया, परन्तु वह भूमि का आसामी था, उप आसामी या खुदकाश्त आसामी नहीं होकर और राजस्थान टीनेन्सी (संशोधित) अधिनियम, 1983 के प्रारम्भ होने की तारीख तक इस प्रकार के आसामी के रूप में भूमि पर लगातार काबिज या वहाँ क्षेत्राधिकार रखने वाले सहायक जिलाधीश या राज्य सरकार द्वारा इस हेतु अधिकृत प्राधिकारी या अधिकृति को एवं इस प्रकार से जैसा कि विहित किया जावे बनाते हुए राजस्थन टीनेन्सी (संशोधित) अधिनियम, 1983 के प्रभावी होने की तारीख से एक माह के अन्दर पेश करने पर उसे उनकी टीनेन्सी के संबंध में खातेदारी अधिकार इतने क्षेत्रफल की सीमा पर जो कृषि जोत क्षेत्र अधिकतम सीमा आरोपण अधिनियम, 1973 के प्रावधानों के अनुसार वह रख सकता है बशर्ते कि उसके द्वारा सिंचित क्षेत्र के लिये 25 बीघा से अधिक या असिंचित के लिये 50 बीघा से अधिक भूमि रखने पर और उपरोक्त सीमा तक धारा 7, राजस्थान उपनिवेशन अधिनियम, 1954 के साथ पठित करते हुए, में विहित या राजस्थान टीनेन्सी (संशोधित) अधिनियम, 1983 के प्रारम्भ होने की तारीख को प्रभावी दर से रक्षित मूल्य राज्य सरकार को भुगतान कर देता है।

धारा 15ककक (4) - राज्य सरकार द्वारा बनाये जाने वाले नियमों के अध्यधीन उप धारा (3) के अन्तर्गत देय रक्षित मूल्य आसामी द्वारा 16 समान किस्तों में भुगतान किया जा सकता है, जिसकी प्रथम किश्त कथित उप धारा के अन्तर्गत प्रार्थना पत्र के साथ दी जावेगी और शेष किश्तें तत्पश्चात् प्रत्येक परवर्ती वर्ष की जनवरी के प्रथम दिन एंव जुलाई के प्रथम दिन को जब तक रक्षित मूल्य की पूर्ण राशि चुकती नहीं हो जावे भुगतान की जा सकेगी।

परन्तु यह कि जहाँ इस राजस्थान टीनेन्सी (संशोधित) अधिनियम, 1984 के आरम्भ होने के पश्चात् राजस्थान नहर से ऐसी भूमि जहाँ उप खण्ड (3) के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार मंजूर किये गये हैं की सिंचाई हेतु प्रथम बार जल छोड़ा जाता है, वहाँ इस उप खण्ड के अन्तर्गत प्रार्थना पत्र के साथ रूपये 500 की प्रथम किश्त का भुगतान किया जावेगा और शेष राशि का भुगतान उस भूमि की सिंचाई के लिये छोड़े गये जल की तारीख से दो वर्षों के पश्चात् प्र्रत्येक परवर्ती वर्ष की जनवरी के प्रथम दिन और जुलाई के प्रथम दिन को 16 समान किश्तों में भुगतान किया जावेगा।

परन्तु आगे और यह  है कि इस उप धारा में कुछ भी उस आसामी को रक्षित मूल्य का पूर्ण या आंशिक भुगतान इस उप धारा में प्रावधित किये गये के पहले करने को रोका जा सकेगा।

धारा 15ककक (5) - इस उपधारा (3) में कुछ भी समाविष्ट होने के बावजूद जहाँ एक आसामी राज्य सरकार को रक्षित मूल्य की पूर्ण राशि एक मुश्त इस उपधारा के अन्तर्गत प्रार्थना पत्र के साथ अनुज्ञेय अवधि में भुगतान करता है वहाँ उसके द्वारा दये रक्षित मूल्य यहाँ प्रावधित राशि का 25 प्रतिशत कम माना जावेगा।

धारा 15ककक (6) - एक आसामी जो इस उपधारा (4) या उप धारा (5) के अनुसार रक्षित मूल्य का भुगतान करने में असफल होता है, वह उप धारा (3) के अन्तर्गत स्वीकृत खातेदारी हक प्राप्त करने का अधिकारी नहीं होगा।

धारा 15ककक (7) - उपधारा (2) में संदर्भित व्यक्ति को छोड़कर अन्य व्यक्तियों द्वारा राजस्थान टीनेन्सी (संशोधन) अधिनियम, 1983 प्रभावी होने के पूर्व दिये गये प्रार्थना पत्र परन्तु जो उप धारा (3) के क्षेत्र में आते हैं के संबंध में इस अधिनियम के प्रारम्भ होते समय एवं सहायक जिलाधीश या राज्य सरकार द्वारा उपधारा (2) के अन्तर्गत विहित अन्य अधिकृति के समक्ष विचाराधीन उसके द्वारा रखी गई भूमि पर खातेदारी अधिकार उत्पन्न होने या खातेदारी  अधिकार  मंजूर करने की घोषणा के लिये दिये गये प्रार्थना पत्र समझा जावेगा और उन्हें उप धारा (3) के अन्तर्गत दिये गये माना जावेगा और उप धारा (3) एवं उप धारा (8) में दिये गये प्रावधानों के अनुसार उस उपधारा में उल्लिखित अधिकारी द्वारा निर्णय किये जावेंगे।

धारा 15ककक (8) - जहाँ एक व्यक्ति स्वयं उप धारा (3) में संदर्भित एक आसामी होने का दावा पेश करता है, परन्तु जिसे इस अधिनियम के प्रारम्भ होते समय चालू पंजिकाओं में ऐसा अभिलिखित नहीं किया गया तो वह ऐसा आसामी था या नहीं यह प्रश्न उपलब्ध साक्ष्य जिसमें उस गाँव में निवास करने वाले बालिग व्यक्ति हों, जहाँ वह भूमि स्थित है से बनी ग्राम सभा के मतैक्य से तय किया जावेगा। यह साक्ष्य सहायक जिलाधीश या अधिकारी जो उक्त उप धारा के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार मंजूर करने हेतु सक्षमह ै, द्वारा लिखित में की जावेगी।


आबू, अजमेर तथा सुनेल क्षेत्रों में खातेदार आसामी
धारा 15 ख
- प्रत्येक व्यक्ति जो राजस्थान राजस्व विधियाँ (विस्तार) अधिनियम, 1957 के प्रारम्भ से पूर्व आबू, अजमेर तथा सुनेल क्षेत्रों में शिकमी आसामी या खुदकाश्त के आसामी को छोड़कर अन्यथा भूमि का आसामी है, उप धारा (1) के परन्तुक में तथा धारा 15 की उपधारा (2) से (5) तक में तथा धारा 15 क में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अधीन रहते हुए और धारा 16 में  तथा धारा 180 की उपधारा (1) के खण्ड (ख) में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के भी अधीन रहते हुए, खातेदार आसामी होगा तथा इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, इस अधिनियम द्वारा खातेदार आसामी को प्रदत्त समस्त अधिकारों का हकदार होगा तथा उस पर आरोपित समस्त दायित्वों के अधीन रहेगा।

परन्तु यदि किसी उक्त व्यक्ति ने, इस अधिनियम द्वारा खातेदार आसामी को प्रदत्त अधिकारों से अधिक कोई मान (स्टेटस) या सम्पत्ति अथवा तदुपरि आरोपित दायित्व से अधिक कोई दायित्व उक्त प्रारम्भ के पूर्व विधिवत् उसे प्रदत्त अधिकार के अनुसरण में अथवा विधि के अनुसरण में अर्जित कर लिया हो तो वह इस अधिनियम में तत्विरूद्ध किसी बात के होते हुए भी उक्तरूपेण अर्जित मान (स्टेटस) या सम्पत्ति का धारण एवं उपभोग करता रहेगा और उक्तरूपेण आरोपित दायित्व के अधीन बना रहेगा।



भूमियाँ जिनमें खातेदारी अधिकार प्रोद्भूत नहीं होंगे
धारा 16
- इस अधिनियम में अथवा राज्य के किसी भाग में तत्समय प्रवृत किसी अन्य विधि या अधिनियमिति में किसी बात के होते हुए, खातेदारी अधिकार निम्नलिखित में प्रोद्भूत नहीं होंगे-
(1) गोचर भूमि,
(2) नदी तल अथवा तालाब की भूमि जो आकस्मिक या कभी कभी कृषि के लिए प्रयुक्त हो,
(3) सिंघाड़ा अथवा तत्सद्दश उपज पैदा करने के लिये प्रयुक्त जल-मग्न भूमि,
(4) भूमि जो, बदल बदल कर  की जाने वाली कृषि या अस्थायी कृषि के लिये प्रयोग में आती हो,
(5) भूमि जिसमें ऐसे बाग लगे हों जिनकी स्वामी सरकार हो तथा जिनकी देखभाल राज्य सरकार द्वारा की जाती हो,
(6) किसी सार्वजनिक अभिप्राय या सार्वजनिक हित के कार्य के लिये प्राप्त की गई या धारण की गई भूमि,
(7) भूमि जो इस अधिनियम के प्रारम्भ होने के समय या तत्पश्चात् किसी समय सैनिक पड़ाव स्थलों के लिये नियत कर दी जावे,
(8) किसी छावनीकी सीमाओं के भीतर स्थित भूमि,
(9) रेलवे अथवा नहर की सीमा-बंधों के भीतर स्थित भूमि,
(10) किसी सरकारी वन की सीमा-बंधों के भीतर स्थित भूमि,
(11) म्युनिसिपल खाइयों के स्थल,
(12) शिक्षण संस्थाओं द्वारा कृषि में शिक्षण के लिये तथा खेल के मैदानों के लिये धारण अथवा प्राप्त की गई भूमि,
(13) सरकार के किसी कृषि फार्म या घास के फार्म की सीमाओं के भीतर  स्थित भूमि,
(14) भूमि जो, किसी गाँव या आस पास के गाँवों के लिये पीने के पानी के जलाशय से या टांके में पानी जाने के लिए अलग रखी गई हो या कलक्टर की राय में तदर्थ आवश्यक है।

परन्तु राज्य सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना के द्वारा यह घोषणा कर सकती है कि ऐसी कोई भूमि जिसमें बदल बदल कर अथवा अस्थायी रूप से कृषि की जाती है उक्त कृषि के लिए उपलब्ध नहीं रहेगी और तदुपरान्त उक्त भूमि खातेदारी अधिकार प्रदान किये जाने के निमित्त उपलब्ध होगी और राज्य सरकार ऐसी ही अधिसूचना के द्वारा यह घोषणा कर सकती है कि किसी भूमि में जिसमें इस अधिनियम के प्रारम्भ के समय स्थान बदल बदल कर या अस्थासी रूप से कृषि नहीं की जाती थी, उक्त प्रारम्भ के पश्चात् किसी भ समय ऐसी तारीख से जो उक्त अधिसूचना में निर्दिष्ट की जाय, स्थान बदल बदल कर या अस्थायी कृषि के लिये रहेगी तदुपरान्त वह भूमि उक्त कृषि के लिये उपलब्ध होगी।

CASE LAW:-
लछमण बनाम पोकर (आर.आर.डी. 1970 पृष्ठ 168)
जो भूमि पानी के बहाव के प्रयोग में आती है उस पर खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते।
गोचर भूमि को ग्राम पंचायत अन्य कार्य के लिए प्रयोग नहीं कर सकती । इस प्रकार की भूमि को अन्य प्रयोग में लाने की अनुमति के लिए जिलाधीश सक्षम अधिकारी है।

राज्य बनाम अमरसिंह (आर.आर.डी. 1965 पृष्ठ 261)
यदि कोई भूमि भू-प्रबन्ध विभाग के अभिलेख में गोचर दर्ज नहीं की गई है तो उसे इस धारा के प्रयोजनार्थ गोचर भूमि नहीं माना जा सकता।

बन्सीलाल बनाम नाभानदास (आर.आर.डी. 1969 पृष्ठ 199)
जागीर पुर्नग्रहण के पश्चात् तालाब पेटे पर जागीरदार कब्जा अतिचारी की तरह नहीं माना जा सकता किन्तु उसे इस धारा के तहत खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते।

राज्य सरकार बनाम सोहन (आर.आर.डी. 1973 पृष्ठ 27)
यदि तालाब व नदी पेटे की भूमि का काश्त हेत आकस्मिक प्रयोग किया जाता है तो ऐसी भूमि पर धारा 16 के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते।

भूरा बनाम भीमसिंह (आर.आर.डी. 1973 पृष्ठ 395)
यदि 13-1-1958 से पूर्व किसी को तालाब के पेटे में खातेदारी अधिकार मिल गए हैं तो वे अधिकार उक्त दिनांक को धारा 16 में ‘‘तालाब’’ शब्द के प्रतिस्थापन से समाप्त नहीं होते।

महबूब अली खान बनाम सरकार (आर.आर.डी. 1961 पृष्ठ 271)
जब किसी व्यक्ति ने बागान की भूमि को राज्य सरकार से ठेका पर लिया तो वह आसामी की परिभाषा में नहीं आता तथा उसे खातेदार आसामी नहीं माना जा सकता।

राज्य बनाम गोवर्धन (आर.आर.डी. 1975 पृष्ठ 271)
धारा 16 (1) के फलस्वरूप चारागाह भूमि पर कई वर्षों तक काश्त करते रहने के आधार पर खातेदारी अधिकार नहीं मिल सकते।

भागीरथ बनाम सरपंच मादरिया (आर.आर.डी. 1978 एन.ओ.सी. 136)
गोचर तथा जंगलात की भूमि पर किसी को खातेदारी अधिकार नहीं मिल सकता।

नगजीराम बनाम स्टेट (आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 259)
गोचर भूमि पर किया गया अतिक्रमण और ऐसा कब्जा नियमित नहीं मिल सकते।

कुंभाराम बनाम स्टेट (आर.आर.डी. 1979 एन.ओ.सी. 18)
जोहड़ पायतन भूमि में खातेदारी नहीं मिल सकती।

स्टेट बनाम अब्दुल करीम  (आर.आर.डी. 1979 पृष्ठ 475)
नगरपालिका की सीमा में आने वाली भूमि आवंटित नहीं की जा सकती।

श्रीलाल बनाम हनुमान (आर.आर.डी. 1982 पृष्ठ 479)
चारागाह भूमि आवंटन के काबिल नहीं होती।

श्री शिवराज चेला बनाम श्री मिसरू (आर.आर.डी. 1986 पृष्ठ 238)
सार्वजनिक उपयोग में आने वाली भूमि पर काश्तकार द्वारा खेती करने पर भी खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते।

शिवराज बनाम श्रीमिसरू (आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 261)
यह प्रश्न कि क्या हिन्दु मूर्ति द्वारा धारित भूमि सार्वजनिक उपयोग के लिये है या व्यक्तिगत उपयोग के लिये है। यह प्रत्येक केस के तथ्यों पर निर्भर करता है।

रामचन्द्र बनाम रामेत (आर.आर.डी. 1988 पृष्ठ 476)
नदी और तालाब पेटे की भूमि पर कभी-कभी या आकस्मिक खेती करने पर उसमें खातेदारी अधिकार प्रदत्त नहीं किये जा सकते।

राजस्थान राज्य बनाम ईशाक मोहम्मद (आर.आर.डी. 1988 पृष्ठ 662)
राजस्थान भू-राजस्व (कृषि प्रयोजनार्थ भूमि का आवंटन) नियम 1970 के नियम 4 के अन्तर्गत भूमि का भू अभिलेख में गैर मुमकिन रास्ते के रूप में दर्ज होना तथा उसका सार्वजनिक प्रयोग में आना व सार्वजनिक उपयोग का कार्य होना तथा भूमि की किस्म का वर्गीकरण करने के पश्चात् ही ऐसी भूमि का आवंटन न होने से ऐसी भूमि के संबंध में अतिक्रमी के नियमन करने की कार्यवाही वैध नहीं है।

तिलोक चन्द बनाम स्टेट (आर.आर.डी. 1976 पृष्ठ 586)
धारा 16 में प्रमाणित भूमियों पर दिया गया कब्जा विनियमित नहीं किया जा सकता है।

खुदकाश्त के आसामी
धारा 16क
- प्रत्येक व्यक्ति जिसे इस अधिनियम के शुरू होने के समय या बा में किसी समय राज्य के किसी भाग में भू-सम्पत्ति धारक द्वारा खुदकाश्त विधिवत् पट्टे पर दे दी गई होया दे दी जाय उक्त व्यक्ति खुदकाश्त का आसामी होगा।

परन्तु भू-सम्पत्ति धारक के अपनी खुदकाश्त का धारा 13 के अन्तर्गत खातेदार आसामी बन जाने पर उपरोक्त खुदकाश्त का आसामी हो जायेगा जो उपरोक्त खातेदार आसामी के अन्तर्गत या उससे लेकर भूमि धारण  करेगा।

गैर खातेदार आसामी
धारा 17
- राज्य के किसी भाग में भूमि का प्रत्येक ऐसा आसामी जो खातेदार आसामी, खुदकाश्त आसामी अथवा शिकमी आसामी से अलग हो, गैर खातेदार आसामी होगा।

मालिक
धारा 17क
- प्रत्येक ऐसा जमींदार अथवा बिस्वेदार जिसकी भू-सम्पत्ति राजस्थान जमींदारी तथा बिस्वेदारी उन्मूलन अधिनियम, 1959 के अधीन राज्य सरकार में अन्र्तनिहित है, उस अधिनियम की धारा 29 के अर्थान्तर्गत उक्त निहित की तिथि को उसके अधिवास की खुदकाश्त भूमि के संबंध में मालिक होगा।

अवतरण, अन्तरण, विनिमय तथा विभाजन

आसामियों का हित
धारा 38
- आसामी का अपने भूमि-क्षेत्र में हित सिवाय उसके जैसा कि इस अधिनियम में विहित है, हित दाय योग्य (विरासत में जाने योग्य) है किन्तु अन्तरणीय नहीं है।

आसामी अधिकारों का अवतरण
वसीयत
धारा 39
- खातेदार आसामी अपने भूमि क्षेत्र में हित को या हित के भाग को उसके व्यक्तिगत कानून के अनुसार जो उस पर लागू होता है, वसीयतनामा के द्वारा वसीयत में दे सकता है।

लक्ष्मीनारायण बनाम बंशीलाल (आर.आर.डी. 1988 पृष्ठ 23)
केवल मात्र खातेदार काश्तकार अपनी भूमि के संबंध में उसके व्यक्तिगत कानून के अनुसार वसीयत कर सकता है।

आसामियों का उत्तराधिकार
धारा 40
- जब आसामी वसीयतनामा किये बिना मृत्यु को प्राप्त हो जाय, तो उसके भूमि क्षेत्र में निहित उसके हित उसके उस व्यक्तिगत कानून के अनुसार अवतरण होंगे जिसके कि वह मृत्यु के समय अधीन था।

CASE LAW:-
रामदीन बनाम नूरा (आर.आर.डी. 1961 पृष्ठ 57)
जो काश्तकार 15-10-55 से पूर्व गुजर गया है उसके मामले में विरासतन अधिकारों पर भूतपूर्व रियासतों में प्रचलित विधि व कानून लागू होंगे।

तेजसिंह बनाम प्रभु (आर.आर.डी. 1960 पृष्ठ 169)
हिन्दु उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 8 कृषि आसामियों पर लागू नहीं होती।

तेजसिंह बनाम प्रभु (आर.आर.डी. 1960 पृष्ठ 169)
प्रहलाद बनाम हुक्मा (आर.आर.डी. 1963 पृष्ठ 170)
कृषि आसामियों पर उत्तराधिकार में व्यक्तिगत कानून लागू होता है। हिन्दु उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के प्रावधान लागू नहीं होते।

भौंरा बनाम गणेश (आर.आर.डी. 1969 )
जब स्थानीय कानून में कोई कृषि आसामियों के उत्तराधिकार का कोई प्रावधान नहीं होता तब इन मामलों में हिन्दु उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के प्रावधान लागू होते हैं।

कालू बनाम नरबदा (आर.आर.डी. 1971)
मृतक खातेदार की विधवा की मोजदूगी में कृषि भूमि पर मृतक के भतीजे का कोई अधिकार नहीं बनता।

रामजीलाल बनाम श्योकोरी (आर.आर.डी. 1987 पृष्ठ 71)
हिन्दुओं के व्यक्तिगत कानून धारा 40 के प्रावधान के अनुसार लागू होते है। इसके द्वारा किसी रिवाज को नहीं बचाया गया है।

बंशीधर व अन्य बनाम राज्य (आर.आर.डी. 1971 पृष्ठ 15)
अध्याय 4 के अन्तर्गत जो पुराने अनिर्णित मामलें हैं उन पर नए अधिनियम 1973 का पूर्वगामी प्रभाव नहीं है। ऐसे अनिर्णित मामले पुराने कानून के अन्तर्गत ही निर्णित होंगे।

मुसम्मात अमेरी बनाम करीमा (आर.आर.डी. 1984 पृष्ठ 4)
बजिउल-अर्ज में उल्लिखित गाँव की परिपाटी या .........लागू नहीं मानी गई परन्तु मुस्लिम व्यक्तिगत कानून प्रभावी माना गया। निर्णय हुआ कि मृतक मेव (मुस्लिम) की पुत्रियों का आवेदन पत्र अस्वीकार किया गया।

खातेदार के हित का हस्तान्तरण (अन्तरण)
धारा 41
- धारा 42 तथा धारा 43 में उल्लिखित शर्तों के अधीन खातेदार आसामी का हित उप पट्टे के अलावा अन्य तरीके से हस्तान्तरणीय नही होगा।

आर.आर.डी. 1992 पृष्ठ 532
कृषि प्रयोजनों हेतु भूमि का आवंटिती आवंटन की तारीख से 10 वर्ष की कालावधि हेतु गैर खातेदार अभिधारी है और उस पर इस कालावधि के दौरान ऐसी भूमि का कोई दान करने का अधिकार नहीं है।

बलवन्तसिंह बनाम चन्दा (आर.आर.डी. 1979 पृष्ठ 539)
पुनः विवाह करने पर विधवा का अधिकार नष्ट नहीं होता वह अपना हिस्सा अंतरित करने में सक्षमह ै।

विक्रय, दान (गिफ्ट या भंेट) तथा वसीयत पर सामान्य प्रतिबन्ध
धारा 42
- खातेदार आसामी के द्वारा अपने पूर्ण भूमि क्षेत्र में या उसके भाग में हित की बिक्री दान (गिफ्ट) या वसीयत शून्य होगी यदि
(क) विलोपित - दिनांक 11-121-1992 से (फ्रेगमेण्ट से संबंधित था)
(ख) उक्त विक्रय, भेंट या वसीयत अनुसूचित जाति के सदस्य द्वारा ऐसे व्यक्ति के पक्ष में की गई हो जो अनुसूचित जाति का नहीं हो अथवा अनुसूचित जनजाति के किसी सदस्य द्वारा ऐसे व्यक्ति के पक्ष में की गई हो जो अनुसूचित जनजाति का नहीं हो।

बालू बनाम बिरदा (आर.आर.डी. 1983 पृष्ठ 159)
यदि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की भूमि न्यायालय की डिक्री से क्रमशः गैर अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति की घोषित की जावे तो वह धारा 42 के अन्तर्गत निषिद्ध स्थानान्तरण के अन्तर्गत आ जावेगी।
इस में निर्णय दिया गया कि हस्तान्तरण शब्द का अर्थ विस्तृत है। अतः राजीनामे की डिक्री को भी राजस्थान टीनेन्सी एक्ट की धारा 42 के प्रावधानों के अनुसार हस्तान्तरण ही माना जावेगा।

CASE LAW:-
प्रकरण 1994 आर.बी.जे. 270
अनुसूचित जाति या जनजाति के व्यक्ति की भूमि को स्वर्ण जाति के व्यक्ति को हस्तान्तरित नहीं किया जा सकता । चाहे वह दुरभि संधि डिक्री से ही हो वह शून्य है।

राजस्थान राज्य बनाम राम बक्स (आर.आर.डी. 1983)
इसमें प्रश्न उठा कि क्या अनुसूचित जाति द्वारा अनुसूचित जन जाति के सदस्य को बेची गई भूमि के आधार पर भू-राजस्व नियमों में कोई रोक नहीं है, जो कि धारा 42 के विरूद्ध होती है। इस पर निर्णय हुआ कि इस प्रकार का स्थानान्तरण स्वीकृत नहीं किया जा सकता है जो कि गैर कानूनी है। इस बिन्दु पर विचार नहीं किया गया। अतः चुंकि यह कानून की नजरों में स्थानान्तरण नहीं है। अतः इसकी प्रविष्टि वार्षिक पंजीकाओं में नहीं की जानी चाहिये - जो व्याख्या कानून के प्रावधानों को समाप्त करे उसे स्वीकार नहीं किया जा सकता है। अतः निर्णय हुआ  िकइस प्रकार का स्थानान्तरण का प्रमाणीकरण नहीं किया जा सकता चाहे कोई निषेध नहीं भी हो और किसी प्रकार के गैर कानूनी स्थानान्तरण की प्रविष्टि वार्षिक पंजीकाओं में नहीं की जा सकती है। इसी निर्णय का 1979 आर.आर.डी. 9 (हाईकोर्ट) ने भी समर्थन किया।

मिल्खासिंह बनाम राज्य सरकार
महेन्द्रसिंह बनाम राज्य सरकार (आर.आर.डी. 1983)
खूमा बनाम मन्दिर पारसनाथ (आर.आर.डी. 1983 पृष्ठ 563)
अनुसूचित जाति एवं अनुसूचित जनजाति का कोई भी आसामी अतिक्रमी को बेदखल करने के लिए धारा 175 के अन्तर्गत कार्यवाही आवश्यक है।

देवीलाल बनाम कमला (आर.आर.डी. 1981 पृष्ठ 55)
अनुसूचित जाति की भूमि के संबंध में सिविल प्रक्रिया संहिता की धारा 151 के अन्तर्गत रिसीवर की नियुक्ति की जा सकती है।

राजस्थान राज्य बनाम कन्हैयालाल (आर.आर.डी. 1983)
इसमें प्रश्न उठा कि क्या धारा 42 के अन्तर्गत किया गया स्थानान्तरण रद्द किया जा सकता है। निर्णय हुआ कि धारा 175 के प्रावधानों के तहत ऐसा किया जा सकता है।

विक्रय, दान और वसीयत के विधिमान्य होने की घोषणा
धारा 42 ख
- जहाँ राजस्थान अभिधृति (द्वितीय संशोधन) अधिनियम, 1992 के प्रारम्भ से पूर्व किसी खातेदार अभिधारी द्वारा अपनी जोत या उसके किसी भाग में से अपने हित का किया गया कोई विक्रय, दान या वसीयत 1992 के उक्त संशोधन अधिनियम के पूर्व यथा-विद्यमान धारा 42 के खण्ड (क) के उपबन्धों में से किसी के भी उल्लंघन के कारण शून्य थी, वहाँ ऐसा विक्रय, दान या वसीयत कलक्टर या राज्य सरकार द्वारा इस निमित्त सशक्त किसी भी अधिकारी या प्राधिकारी द्वारा उसे ऐसे समय के भीतर भीतर और ऐसी रीति से किये गये आवेदन पर और ऐसी फीस तथा शास्ति के संदाय पर जो विहित की जाये विधिमान्य घोषित की जा सकेगी।

परन्तु यह तब जबकि
(क) ऐसा विक्रय, दान या वसीयत अन्यथा विधिमान्य हो और यथापूर्वोक्त धारा 42 के खण्ड (क) में अन्तर्विष्ट उपबंधों को छोड़कर तत्समय प्रवृत विधियों के उपबन्धों के अनुरूप हो,
(ख) उक्त विक्रय, दान या वसीयत के पक्षकार उन सभी निबन्धनों और शर्तों का अनुपालन करते हों जो नियमों या किसी विशेष या सामान्य आदेश द्वारा विहित की जाये,
(ग) ऐसे प्रीमियम या शास्ति का, जो विहित की जायें, संदाय कर दिया जाये,
(घ) आवेदक ऐसी दर से और ऐसी रीति के अनुसार जो विहित की जाये, उद्गृहीत नगरीय निर्धारण के संदाय की जिम्मेदारी ले लेता है।

बन्धक
धारा 43 (1)
- कोई खातेदार आसामी अथवा राज्य सरकार या उसके द्वारा इस हेतु प्राधिकृत किसी अधिकारी की साधारण या विशेष अनुमति से कोई गैर खातेदार आसामी राज्य सरकार से या राजस्थान सहकारी संस्था अधिनियम, 1965 में यथा परिभाषित किसी भूमि विकास बैंक से या किसी अनुसूचित बैंक से अथवा इस बारे राज्य सरकार द्वारा अधिकृत किसी अन्य संस्था से उधार प्राप्त करने के प्रयोजन हेतु अपने पूर्ण भूमि क्षेत्र या उसके किसी भाग में अपने हित का आड़मान कर सकेगा या उसे बन्धक रख सकेगा।

धारा 43 (2) - कोई खातेदार आसामी अपने सम्पूर्ण भूमि क्षेत्र इसके किसी अंश में से अपने हित का भोग-बन्धक के रूप में किसी व्यक्ति को हस्तान्तरण कर सकेगा परन्तु ऐसे बन्धक में यह उप बन्धक होगा कि बन्धक राशि उक्त सम्पत्ति को भोग द्वारा विनिर्दिष्ट अवधि के भीतर जो पाँच वर्ष से अधिक न हो, संदत्त कर दी गई समझी जायेगी और ऐसी अवधि विनिर्दिष्ट न होने की दशा में उक्त बन्धक पाँच वर्ष के लिए होना समझा जायगा।

परन्तु राजस्थान टीनेन्सी एक्ट, 1970 के राजकीय राजपत्र में प्रकाशन पर या उसके बाद कोई खातेदार आसामी जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जनजाति का सदस्य है, अपने सम्पूर्ण भूमि क्षेत्र या उसके किसी भाग में के अपने हित को किसी ऐसे व्यक्ति को इस प्रकार अन्तरित नहीं करेगा जो किसी अनुसूचित जाति या किसी अनुसूचित जनजाति का सदस्य नहीं है।

धारा 43 (3) - उप धारा (2) के अधीन कोई भोग बन्धक एतत्पूर्व वर्णित अवधि के  अवसान पर बंधककत्र्ता द्वारा किसी प्रकार कोई भी संदाय किये बिना पूर्णतः चुकाया जा चुका समझा जावेगा तथा बन्धक ऋण निर्वापित हो चुका समझा जायगा और बन्धनकाधीन को समस्त विल्लंगमों से मुक्त रूप मं परिदत्त कर दिया जायगा।

धारा 43 (4) - किसी भूमि का भोग बन्धक जो इस अधिनियम से पहले किया गया हो, उक्त बन्धक विलेख में उल्लिखित अवधि खत्म होने पर या उसके निष्पादन की तारीख से बीस वर्ष बाद जो भी अवधि कम हो, बन्धककत्र्ता द्वारा किसी भी प्रकार का कोई संदाय किये बिना पूर्ण रूप से चुकाया जा चुका समझा जायगा और तदनुसार बन्धक ऋण निर्वापित हो चुका समझा जायगा और तदुपरान्त बन्धकाधीन भूमि का मोचन कर दिया जायगा और बन्धककत्र्ता को सभी विल्लंगमों (भार बोझ) से मुक्त रूप में उसका कब्जा परिदत्त कर दिया जायगा।

धारा 43 (4क) - किसी भूमि का भोग बन्धक जो इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् किया गया हो और राजस्थान टीनेन्सी (संशोधन) अध्यादेश,1974 के शुरू होने की तारीख को प्रभाव में हो, उक्त बन्धक विलेाख में वर्णित समय की समाप्ति पर या उसके निष्पादन की तारीख से पाँच वर्ष बाद जो भी समयावधि पहले समाप्त होती हो, बन्धककत्ता द्वारा किसी भी प्रकार की कोई भरपाई किए बिना पूर्ण रूप से भरपाई किया हुआ समझा जायगा और उसके बाद बन्धक की गई भूमि का मोचन कर दिया जावेगा और बन्धककत्र्ता  को समस्त ऋण भारों से मुक्त रूप में उसका कब्जा सौंप दिया जायगा।

धारा 43 (4ख) - जहाँ उप धारा (2) या उपधारा (4) के अधीन किसी भी अवधि के लिए एक बार भोग बन्धक कर दिया गया है तो प्रथम उल्लिखित बन्धक की समाप्ति के दो वर्ष के अन्दर उसी भूमि का भोगबंधक नहीं किया जायगा।

धारा 43 (4ग) - जहाँ कोई भोग बन्धक राजस्थान टीनेन्सी (संशोधन) अध्यादेश, 1975 के प्रभाव में आने के दिनांक से पहले की दिनांक को ही मोचित हो चुका है तो ऐसी मोचन के कारण बंधकदार बंधककर्ता को ऐसे मोचन की दिनांक तथा ऐसे लागू होने की दिनांक के बीच की अवधि के लिए किसी प्रकार का जुर्माना अथवा अन्तःकालीन लाभ देने का उत्तरदायी नहीं समझा जायगा।

धारा 43 (4घ) - उपधारा (2) या उपधारा (4क) के अन्तर्गत बंधक मोचन हो जाने पर बंधकदार बंधकालीन सम्पत्ति से समस्त अभिलेख जो उसके कब्जे या अधिकार में हों सौंप देगा और सम्पत्ति को बंधककर्ता को पुनः हस्तान्तरित कर देगा और अपने खर्चें पर बंधक मोचन की दिनांक से तीन माह के अन्दर बंधक तथा उसके स्वयं के द्वारा या उसके अधीन दावा करने वालों के द्वारा प्राप्त समस्त ऋण भारों से मुक्त, सम्पत्ति पर बन्धककर्ता को कब्जा करा देगा।

परन्तु उन मामलों मंे जहाँ उपधारा (4क) के अन्तर्गत भोगबंधक का मोचन राजस्थान टीनेन्सी (संशोधन) अध्यादेश, 1975 के प्रभाव में आने की दिनांक से पहले की किसी दिनांक को हो चुका है, उनमें उपरोक्त अभिलेखों का देना, सम्पत्ति का पुनः हस्तान्तरण तथा कब्जा दिया जाना, जब तक कि पहले से समापन नहीं हो गया हो, राजस्थान टीनेन्सी (संशोधन) अधिनियम, 1976 के लागू होने की दिनांक से तीन माह में कर दिया जायगा।

धारा 43 (4ङ) - कोई बन्धकदार जो बिना समुचित कारण के उपधारा (3घ) में उल्लिखित तीन माह की अवधि में बंधककर्ता को सम्पत्ति पर कब्जा कराने में असफल रहता ह, सिद्ध दोष होने पर कारावास से जिसकी अवधि एक वर्ष तक हो सकती है, जुर्माने से जो एक हजार रूपयों तक हो सकता है या दोनों से दण्डनीय होगा। यह अपराध संज्ञैय जमानती और बंधककर्ता द्वारा क्षमनीय होगा।

धारा 43 (5) - उपधारा धारा 43 (4ङ) के उपबन्धों पर विपरीत प्रभाव डाले बिना यदि बंधकदार बंधक की हुई भूमि का कब्जा इस प्रकार पुनः नहीं सौंपता तो वह धारा 183 (क) के अनुसार बेदखल किया जाने के लिये दायी होगा।

CASE LAW:-
भवरीया बनाम छीतर ( आर.आर.डी. 1987 पृष्ठ 468)
बन्धक की अवधि समाप्त हो जाने के बाद बन्धककर्ता बन्धकग्रहीत से बिना किसी भुगतान के कब्जा पाने का अधिकारी होता है।

दुर्गालाल बनाम मु. गुलाब बाई ( आर.आर.डी. 1988 पृष्ठ 52)
दिनांक 5-4-61 को 20 साल से ऊपर की अवधि का बन्धक प्रभाव में ऐसे मामले में दिनांक 5-4-61 को बन्धकग्रहीता अतिक्रमी हो जाता है। ऐसे मामले में धारा 183 के अन्तर्गत 12 साल की अवधि तक दावा लाया जा सकता है।

अधिनियम के लागू होने से पूर्व किये गये कृषि भूमि के बन्धकों के संबंध में उपबन्ध
धारा 43क (1)
- धारा 43 में उल्लिखित किसी बात के होते हुए, अधिनियम के प्रभाव में आने से पूर्व किसी आसामी के भूमि क्षेत्र के बंधक भोग-बंधक से अन्य और ऐसे बंधक के पक्षकारों के अधिकार एवं  देयतायें इस अधिनियम में उल्लिखित किसी बात के होते हुए भी उसकी शर्तों से तथा उक्त प्रभाव आने से प्रचलित तत्संबंधी कानून से शासित होती रहेंगी।

धारा 43क (2) - ऐसा कोई अधिकारिता या देयता, अधिकारिता रखने वाले सहायक कलक्टर के न्यायालय में निश्चित समयावधि यदि कोई हो, के भीतर, परिवेदित व्यक्ति द्वारा निर्धारित न्यायालय शुल्क देने पर, पेश किये गये वाद के द्वारा प्रभावशील कराया जा सकता है।

CASE LAW:-
गफ्फारन अली बनाम बिसमिल्ला (आर.आर.डी. 1958 पृष्ठ 300)
नत्थु बनाम चूमा, महरान बनाम राजू (आर.आर.डी. 1960 पृष्ठ 141)
यह धारा उन रहन पर लागू नहीं होती जो धारा के प्रभाव से पूर्व सम्पादित हुए हैं।

रूपचन्द बनाम श्रीमति रूपा (आर.आर.डी. 1969 पृष्ठ 141)
इस धारा का प्रमुख उद्देश्य काश्तकारों के हितों की रक्षा करना है तथा उसी प्रकार इसकी व्याख्या वांछित है।

बालमुकुनन्द बनाम माँगीलाल (आर.आर.डी. 1961 पृष्ठ 258)
यदि राहिन का कब्जा रहनकर्ता को वापिस नहीं देता तो उसे कानून को अपने हाथ में नहीं लेना चाहिए बल्कि दावा बेदखली करना चाहिए।

सुमेरमल राजमल बनाम रामचन्द्र (आर.आर.डी. 1965 पृष्ठ 258)
जब 20 वर्ष बाद रहन पत्र की अवधि समाप्त हो जाती है तो रहिन को बिना किसी भार के कब्जा रहनकर्ता को देना चाहिए।

मगंला बनाम पारा (आर.आर.डी. 1968)
आसामी को 20 वर्ष पूर्व रहननामा की भूमि की बेदखली का दावा लाने का अधिकार नहीं है।

गोपाल बनाम मदनलाल (आर.आर.डी. 1972 पृष्ठ 29)
जब रहन का कर्जा अदा कर दिया जाता है तथा रहन का समय समाप्त हो जाता है, राहिन फिर भी भूमि पर कब्जा रखता है तो वह अतिक्रमी है और बेदखल किया जा सकता है।

आंकार बनाम तोलीराम (आर.आर.डी. 1972 पृष्ठ 258)
रहन की अवधि से पूर्व दावा दायर नहीं किया जा सकता है।

जगदम्बा बनाम नाहरमल (आर.आर.डी. 1973 पृष्ठ 502)
इस धारा के अन्तर्गत राहिन को किसी विकास व्यय की प्राप्ति का अधिकार नहीं है क्योंकि रहन का धारा (1) के अन्तर्गत पूर्ण भुगतान माने जाने का प्रावधान है। 

खेमा बनाम खेमा (आर.आर.डी. 1964 पृष्ठ 94)
खेमा बनाम पीथा (आर.आर.डी. 1965)
नत्थू बनाम चूना (आर.एल.डब्ल्यू. 1958 पृष्ठ 300)
रहन के संबंध में दावा सुनने का अधिकार इस धारा के अन्तर्गत राजस्व न्यायालय को है।

गोपीलाल बनाम रामकल्याण (आर.आर.डी. 1975 पृष्ठ 76)
यदि रहन नामा पंजीबद्ध नहीं है तो वह शहादत में अमान्य है। अमान्य दस्तावेज के तथ्य अन्य शहादत से प्रमाणित नहीं किये जा सकते।

सरया बनाम नारायण (आर.आर.डी. 1976 पृष्ठ 281)
रहन की केवल जमाबन्दी में प्रविष्टि पर्याप्त नहीं है। वादी को यह प्रमाणित करना आवश्यक है कि रहन संशोधनीय ;तमकममउंइसम द्ध है।

मिर्जा नसीर बेग बनाम बक्शा (आर.आर.डी. 1960 पृष्ठ 35)
रहननामा को जो इस धारा के पूर्व निष्पादित किया गया है यह धारा प्रभावित नहीं करती।

देवला बनाम विजयसिंह (आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 428)
धारा 43 बंधकदार का उपकृषक खातेदारी प्राप्त कर सकता है।

भैरूलाल बनाम श्यामसुन्दर (आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 446)
धारा 43 यदि बंधकता बात किसी कार्यवाही से अंगीकृत कर ली गई है तो बंधक विलेख सिद्ध होता है।

उगमकंवर बनाम पोकरसिंह (आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 439)
धारा 43 (1) बन्धक दिनांक 7-12-1956 को निष्पादित किया गया बंधक मोचन के लिये कोई अवधि नहीं होने पर 10 वर्ष पश्चात् बंधक स्वतः ही बंधक मोचन के लिये दावा करने योग्य होगा।

नानालाल बनाम हरचन्द (आर.आर.डी. 1981 पृष्ठ 204)
ंबधक पंजीकृत लेख के द्वारा दिनांक 5-6-38 को किया गया। 20 वर्ष की समयावधि 5-6-38 से ही गिनी जायेगी।

पूरनमल बनाम चन्दा (आर.आर.डी. 1981 पृष्ठ 226)
मूल बंधक के दिनांक के संबंध में जाँच करना अनावश्यक है। बंधक मोचन कानून के प्रवर्तन द्वारा है।

दानसिंह बनाम हरली (आर.आर.डी. 1982 पृष्ठ 3)
कब्जे के लिये दावा के लिए बंधक मोचन के अधिकार पर कोई रोक नहीं है।

काश्त या शिकमी काश्त पर देने का अधिकार
धारा 44
- खुदकाश्तधारी काश्त पर तथा आसामी शिकमी काश्त पर अपने सम्पूर्ण भूमि क्षेत्र या उसके किसी अंश को ऐसे प्रतिबन्धों के अधीन रहते हुए जो कि इस अधिनियम द्वारा लगाये गये हैं, दे सकता है।
परन्तु उक्त प्रकार शिकमी-काश्त पर देने से आसामी अपने भूमिधारी के प्रति अपनी जिम्मेदारी से किसी भी भांति मुक्त नहीं हो जायगा।

काश्त तथा शिकमी काश्त पर दिये जाने पर प्रतिबन्ध
धारा 45 (1)
- कोई खुदकाश्तधारी (या भू-स्वामी) काश्त पर और कोई खातेदार आसामी अथवा उसका बंधकग्रहीता शिकमी-काश्त पर अपने पूरे भूमि क्षेत्र को या उसके किसी भाग को, किसी एक समय पर पाँच वर्ष से अधिक समय के लिए नहीं देगा।

धारा 45 (2) - जहाँ कोई पट्टा (लीज) या शिकमी पट्टा (सब लीज) किसी भी अवधि के लिए उप धारा (1) के अन्तर्गत एक बार स्वीकृत कर दिया गया हो तो, उसी भूमि के संबंध में कोई अग्रेतर (अग्रिम) पट्टा या शिकमी-पट्टा, यथास्थिति, प्रथमतः वर्णित पट्टे या शिकमी-पट्टे की समाप्ति के पश्चात् दो वर्ष के अन्दर नहीं दिया जायगा।

धारा 45 (3) - कोई गैर खातेदार आसामी अपने पूूरे भूमि क्षेत्र या उसके किसी भाग को एक वर्ष से अधिक समय के लिये शिकमी काश्त के लिये नहीं देगा।

धारा 45 (4) - कोई शिकमी-आसामी या खुदकाश्त का आसामी अपने पूरे भूमि क्षेत्र या उसके किसी भाग को, धारा 46 में उल्लिखित परिस्थितियों के अलावा अन्यथा शिकमी काश्त पर नहीं देगा।

CASE LAW:-
खींवा बनाम भूराराम (आर.आर.डी. 1961 पृष्ठ 253)
काश्तकार व उपकाश्तकार एवं अन्य किसी व्यक्ति को बिना भूमिधारी की अनुमति के उप कृषक को भूमि देने का अधिकार नहीं है।

शंकरलाल बनाम श्रीकिशन  (आर.आर.डी. 1962 पृष्ठ 326)
इस धारा में जो प्रावधान है उसके लिए धारा 183 के अन्तर्गत दावा बेदखली दायर किया जा सकता है।

यादराम बनाम विटोबाई (आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 147)
पाँच वर्ष बीत जाने पर उपकृषक को विधवा की भूमि पर  बने रहने के कोई अधिकार नहीं है।

खेमचन्द बनाम कौशल (आर.आर.डी. 1981 पृष्ठ 647)
सम्वत् 2014 में प्रतिवादी को उपकाश्तकार स्वीकार किया है। पट्टा धारा 45 के विपरीत है व अतिक्रमण है।

अपवाद स्थिति में भूमि का काश्त पर या शिकमी-काश्त पर दिया जाना
धारा 46 (1)
- धारा 45 में, खुदकाश्तधारी या भू-स्वामी द्वारा काश्त पर दिये जाने तथा आसामी द्वारा शिकमी-काश्त पर दिये जाने पर लगाये गये  प्रतिबन्ध निम्नलिखित पर लागू नहंी होंगेः-
(क) अवयस्क् या
(ख) पागल या
(ग) मूर्ख याा
(घ) ऐसी स्त्री जो अविवाहिता है या जिससे विवाह-विच्छेद कर दिया गया है या जो पति से पृथक हो गई है या विधवा है या
(ङ) ऐसा व्यक्ति जो, नेत्रहीन या अन्य शारीरिक निर्योग्यता या अशक्ति के कारण अपनी भूमि में कृषि करने में समर्थ नहीं है, या
(च) ऐसा व्यक्ति जो संघ की सशस्त्र सेना का सदस्य है, या
(छ) ऐसा व्यक्ति जो कारागृह में अवरूद्ध या बन्दी है, या
(ज) ऐसा व्यक्ति जिसकी आयु 25 वर्ष से अधिक नहीं है तथा किसी मान्यता प्राप्त संस्था में अध्ययन करने वाला विद्यार्थी है।
परन्तु जहाँ किसी भूमि को एक से अधिक व्यक्ति मिलकर धारण करते हैं, उस अवस्था में इस धारा के प्रावधान तब तक ंलागू नहीं होंगे जब तक वे सब व्यक्ति इसमें निर्दिष्ट प्रकारों में से किसी एक या अधिक प्रकार के न हों।

धारा 46 (2) - कोई पट्टा या शिकमी-पट्टा जो उपधारा (1) के उपबन्धों की अनुपस्थिति में अमान्य होना पट्टाधारी की मृत्यु हो जाने या उसके तदन्र्गत निर्दिष्ट  प्रकारों में से किसी के अन्तर्गत न रहने के पश्चात् दो वर्ष से अधिक समय के लिये प्रभावशील नहीं रहेगा।

CASE LAW:-
भूराराम बनाम दौलतसिंह (आर.आर.डी. 1968 पृष्ठ 537)
यदि भूमि फौजमें सेवारत कर्मचारी की है तो उस पर इस धारा के प्रावधान लागू नहीं हैं।

दीनदयाल बनाम मेरा (आर.आर.डी. 1970 पृष्ठ 298)
राज्य बनाम जेठमल व्यास (आर.आर.डी. 1973 पृष्ठ 702)
राज्य बनाम मांगीलाल (के. एस. 1973)
सचिव शांति वर्द्धमान पेढी बनाम घीसालाल (आर.आर.डी. 1971 पृष्ठ 1)
मन्दिर की भूमि पर पुजारी को खातेदारी अधिकार नहीं दिए जा सकते क्योंकि मन्दिर धारा 46 में वर्णित अयोग्यता रखता है तथा ऐसी भूमि पर कोई कृषक व उपकृषक खातेदारी अधिकार पाने का अधिकारी नहीं है।

रामकृष्णदास बनाम देवीलाल (आर.आर.डी. 1974 पृष्ठ 290)
नाबालिग की खातेदारी भूमि पर कृषक या उपकृषक को खातेदारी अधिकार नहीं दिये जा सकते।

मूर्ति श्रीनाथ बनाम शम्भू (आर.आर.डी. 1987 पृष्ठ 336)
धारा 180 के अन्तर्गत मन्दिर मूर्ति की भूमि के संबंध में प्रस्तुत किया गये प्रार्थना पत्र के लिये किसी प्रकार की कोई सीमा नहीं है।

अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जन जातियों के सदस्यों द्वारा काश्त या शिकमी-काश्त पर दिये जाने के लिये विशेष प्रावधान
धारा 46क
- धारा 44, 45 तथा 46 में उल्लिखित किसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्ति जो किसी अनुसूचित जाति या अनुसूचित जन जाति का सदस्य है, अपने सम्पूर्ण भूमि क्षेत्र या उसके किसी भाग को काश्त, शिकमी काश्त के लिये उक्त धाराओं के तहत किसी ऐसे व्यक्ति को नहीं देगा जो अनुसूचित जाति या अनुसूचित जन जाति का सदस्य नहीं है।

मोहम्मद जमनखां बनाम मनजी (आर.आर.डी. 1968 पृष्ठ 219)
उमा बनाम कजोड (आर.आर.डी. 1970 पृष्ठ 387)
यह धारा पूर्वगामी प्रभाव नहीं रखती।

राज्य बनाम रामजीलाल व अन्य (आर.आर.डी. 1977 पृष्ठ 57)
यदि किसी अनुसूचित जाति व जन जाति की भूमि पर 15-10-55 को अनुसूचित जाति व जनजाति के सदस्य का वार्षिक अभिलेख में उपकृषक का इन्द्राज है तो उसे धारा 19 के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार प्राप्त होंगे।

स्टेट बनाम भोला (आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 666)
यह धारा 22-9-56 को प्रभाव में आई है इससे पूर्व के उपकृषक को खातेदारी मिल सकती है।

माधो बनाम नन्दलाल (आर.आर.डी. 1979 पृष्ठ 7)
मन्दिर की मूर्ति साश्वत किशोर होती है। इस अवयस्कता के कारण मन्दिर की भूमि पर उपकृषक को खातेदारी नहीं मिल सकती।


शिकमी पट्टे से उत्तराधिकारी का पाबन्द होना
धारा 47
- किसी आसामी जिसने भूमि शिकमी काश्त पर दी हो, के हित का उत्तराधिकारी शिकमी पट्टे की शर्तों से उस सीमा तक जहाँ तक कि वे इस अधिनियम के प्रावधानों के प्रतिकूल न हो, पाबन्द होगा।


आबू,अजमेर तथा सुनेल क्षेत्र में कतिपय हस्तान्तरणों के संबंध में प्रावधान
धारा 47क (1)
- इस अधिनियम के पूर्वोक्त प्रावधानों में कृषि अधिकारों के हस्तान्तरण के विषय में उल्लिखित कोई बात आबू, अजमेर या सुनेल क्षेत्रों में राजस्थान राजस्व विधियाँ (विस्तार) अधिनियम, 1957 के प्रारम्भ से पूर्व विधि अनुकूल सम्पन्न किये गये या किसी आसामी के भूमि क्षेत्र के विक्रय, बंधक, पट्टे या अन्य हस्तान्तरण पर लागू नहीं होगी और ऐसे प्रत्येक अन्तरण के पक्षकारों के अधिकार तथा दायित्व इस अधिनियम में उल्लिखित किसी बात के होते हुए उक्त हस्तान्तरण की शर्तों तथा उक्त प्रारम्भ से ठीक पूर्व प्रवर्तनशील तत्संबंधी कानून से शासित होती रहेंगी।

धारा 47क (2) - धारा 43 क की उपधारा (2) के प्रावधान ऐसे प्रत्येक अधिकार अथवा दायित्व की क्रियान्विति पर यथोचित परिवर्तनों के साथ लागू होंगे।

भूमि का विनिमय
धारा 48 (1)
- एक ही वर्ग के आसामी, ऐसी भूमियों का जो उन्होंने एक ही भूमिधारी से प्राप्त की हों, उस भूमिधारी की सहमति से विनिमय कर सकते हैं और ऐसी भूमियों को जो उन्होंने भिन्न-भिन्न भूमिधारियों से प्राप्त की हों ऐसे सभी भूमिधारियों की लिखित सहमति से विनिमय कर सकते हैं।

धारा 48 (2) - भूमिधारी, आसामी की सहमति से, उसके भूमिक्षेत्र में शामिल भूमि के विनिमय में उसे उस भूमि से भिन्न भूमि दे सकता है जो उसे पट्टे पर दी गई है।

व्याख्या - एक काश्तकार एवं भूमिधारी के मध्य भूमि का विनिमय हो सकता है। मुख्य कृषक एवं शिकमी काश्तकार के मध्य भी भूमि का विनिमय सम्भव है। भूमि का विनिमय तब ही पूरा माना जावेगा जब कि वह भूमिधारी द्वारा स्वीकृत हो जवे।

CASE LAW:-
जैसाराम बनाम प्रेमाराम (आर.आर.डी.  1958 पृष्ठ 178)
बीकानेर राज्य के विनिमय नियम दिनांक 11-12-1944 राजस्थान काश्तकारी अधिनियम, 1955 के प्रभावशील होने की तिथि से निरस्त माने जायेंगे।

पारवी बनाम नाथी (आर.आर.डी. 1980 पृष्ठ 243)
भूमि विनिमय के अधिकार केवल सहायक जिलाधीश को हैं। तहसीलदार विनिमय नहीं कर सकता।

विशम्भरसिंह बनाम राज्य (आर.आर.डी. 1981 पृष्ठ 62)
राजकीय भूमि के विनिमय के लिये तहसीलदार भूमिधारी नहीं है। केवल राज्य सरकार ही इसके लिए सक्षम है।

मिर्चू बनाम राजस्थान राज्य (आर.आर.डी. 1981 पृष्ठ 558)
धारा 48 आपसी सहमति से किये गये विनिमय के मामलों में लागू होता है। अधिकार के रूप में भूमि का विनिमय नहीं किया जा सकता है।

शंकरलाल बनाम मुख्तारसिंह (आर.आर.डी. 1982 पृष्ठ 503)
सम्पत्ति के दो विभिन्न जगहों पर स्थित होने पर धारा 48 लागू नहीं होगी।

गोपालराम बनाम बनेसिंह (आर.आर.डी. 1989 पृष्ठ 364)
राजकीय भूमि के विनिमय की स्वीकृति राज्य सरकार द्वारा ही दी जा सकती है।

रामदेव बनाम शिशुपाल (आर.आर.डी. 1989 पृष्ठ 7)
मौखिक रूप से किया गया भूमि का विनिमय कोई प्रभाव नहीं रखता है।

चकबन्दी के लिए विनिमय
धारा 49 (1)
- कोई खातेदार आसामी जो अपने क्षेत्र की चकबंदी कराना चाहता है जिसमें वह कृषि करता है, अपनी भूमि के किसी भाग जिसमें वह कृषि करता है, के बदले में किसी अन्य खातेदार आसामी द्वारा कृषि भूमि लेने के लिए सहायक कलक्टर को प्रार्थना पत्र दे सकता है।

धारा 49 (2) - उपधारा (1) के अधीन प्रार्थना पत्र की प्राप्ति पर, यदि सहायक कलक्टर को निर्धारित तरीके से जाँच करने के बाद समाधान हो जाय कि उचित कारण विद्यमान है तो वह प्रार्थना को पूर्णतः या अंशतः स्वीकार कर सकता है तथा दूसरे आसामी को आवेदक द्वारा काश्त की गई ऐसी भूमि दे सकता है जो मूल्य में लगभग उस भूमि के बराबर तथा उसी प्रकार की हो जो कि आवेदक को मिली हो।

अनुसूचित जातियों अथवा अनुसूचित जनजातियों द्वारा विनिमय के लिए विशेष प्रावधान
धारा 49क
- घारा 48 तथा धारा 49 में अन्तविषर््िट किसी प्रावधान के होते हुए भी किसी काश्तकार को जो कि अनुसूचित जाति या अनुसूचित जन जाति का सदस्य है अपने भूमि क्षेत्र का विनिमय उक्त धाराओं में से किसी के अधीन ऐसी भूमि से करने का अधिकार नहीं होगा जो कि ऐसे व्यक्ति को भूमि में शामिल है जो अनुसूचित जाति अथवा अनुसूचित जन जाति का सदस्य नहीं है और जो धारा 49 के अन्तर्गत कोई आवेदन पत्र जो इस धारा के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, अस्वीकृत किया जायेगा।

विनिमय हो जाने पर आसामियों के अधिकार
धारा 50
- धारा 48 तथा धारा 49 के अन्तर्गत भूमि का विनिमय हो जाने पर काश्तकार को उस भूमि में जो उसे विनिमय में मिली है वे ही अधिकार प्राप्त होंगे जो कि उसे उस भूमि में प्राप्त थे जो उसने विनिमय में दी है।

अन्य भूमियों के विनिमय में आवंटित भूमियों में अधिकार
धारा 51
- तत्समय प्रभावशील किसी कानून में किसी प्रावधान के होते हुए भी यदि अन्य भूमि के बदले में दी गई भूमि किसी लीज, बंधक या अन्य ऋणभार से बोझित है तो उक्त लीज, बंधक या अधि-भार का हस्तान्तरण कर दिया जायेगा और उसे उक्त अन्य भूमि के साथ या उसके ऐसे भाग जिसे सहायक कलक्टर विनिर्दिष्ट करे, के साथ संलग्न कर दिया जायेगा और उसके बाद पट्टाधारी, बंधकग्रहीता या अन्य ऋणभारधारी का उस भूमि में या उसके विरूद्ध कोई अधिकार नहीं रहेगा जिससे उक्त पट्टा, बंधक या अन्य ऋणभार हस्तान्तरित किया गया हो।

परन्तु इस धारा के अन्तर्गत कोई आदेश संबंधित पक्षकारों को सुनवाई का उचित अवसर प्रदान किये बिना पारित नहीं किया जायेगा।

अधिकार अभिलेख में विनिमय की प्रविष्टि
धारा 52
- धारा 48 या धारा 49 के अन्तर्गत भूमि के विनिमय पर उसके संबंध में अधिकार अभिलेख में समुचित प्रविष्टि की जायेगी।

काश्तकारी अधिकारों का विभाजन
धारा 53 (1)
विलोपित (दिनांक 11-11-92 से-इसमें न्यूनतम क्षेत्रफल से कम में भूमि के बंट जाने के प्रकरणों में विभाजन नहीं किया जा सकता था-फ्रेगमेण्ट जैसी स्थिति)

धारा 53 (2) किसी भूमि क्षेत्र का विभाजन निम्नलिखित प्रकार से किया जायेगा-
(1) सह आसामियों के बीच
(क) भूमि क्षेत्र के वैसे विभाजन, और
(ख) उन कई भागों, जिनमें भूमि क्षेत्र इस प्रकार विभाजित किया गया है पर लगान के बंटवारे के संबंध में इकरारनामा द्वारा, अथवा
(2) भूमि क्षेत्र के विभाजन तथा कई भागों में वह विभाजित की जाए उन पर कई भागों पर उस भूमि क्षेत्र के लगान के बंटवारे किये जाने के हेतु सह-आसामियों में से एक या अधिक सह-आसामियों द्वारा दायर किये गये दावे में सक्षम न्यायालय द्वारा पारित डिक्री अथवा आदेश के द्वारा

धारा 53 (3) विलोपित दिनांक 11-11-92 से

धारा 53 (4) एक या एक से अधिक भूमि-क्षेत्र के विभाजन हेतु प्रत्येक दावे में सभी सह-आसामी तथा भूमिधारी पक्षकार बनाये जायेंगे।

धारा 53 (5) एक से अधिक भूमि-क्षेत्रों में बंटवारे हेतु एक ही दावा किया जा सकता है बशर्ते कि उसमें पक्षकार वे ही हों।

CASE LAW:-
रामप्रताप बनाम गुलाब देवी (आर.आर.डी. 1971 पृष्ठ 129)
इस धारा के अन्तर्गत पुत्री द्वारा मृतक की भूमि पर विभाजन का दावा प्रस्तुत किया जा सकता है क्योंकि उसे विरासतन हक प्राप्त होते हैं।

श्री कृष्ण चन्द्र बनाम तहसीलदार उपनिवेशन (आर.आर.डी. 1974 पृष्ठ 271)
श्री लालाराम बनाम श्रीमति मुकन्दी (1974 के.एस. 123)
धन्नालाल बनाम श्रीमति बद्री (आर.आर.डी. 1975 पृष्ठ 429)
धारा 53 के अन्तर्गत प्रस्तुत विभाजन वाद में राज्य सरकार आवश्यक पक्ष है, किन्तु राज्य सरकार को दीवानी प्रक्रिया संहिता की धारा 80 के तहत नोटिस दिया जाना आवश्यक नहंी है।

कैसा बनाम दाना (आर.आर.डी. 1964 पृष्ठ 290)
राज्य सरकार को इस कारण पक्षकार बनाया जाता है ताकि विभाजन के न्यूनतम क्षेत्रफल से कम क्षेत्रफल तक विभाजन न हो सके।

मदनसिंह बनाम श्रीमति गुमानी (आर.आर.डी. 1973 पृष्ठ 724)
इस धारा के अन्तर्गत विभाजन पर राजस्थान काश्तकारी (राजस्व मण्डल) नियम, 1955 तथा दीवानी प्रक्रिया संहिता की धारा 54 व 97 के प्रावधान लागू होंगे।

सोहनलाल बनाम पुरूषोत्तमलाल (आर.आर.डी. 1973 पृष्ठ 319)
विभाजन के वाद पर भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1956 के प्रावधान लागू नहीं होते।

सुरजा बनाम जीवन व अन्य (आर.आर.डी. 1975 पृष्ठ 52)
धारा 53 के अन्तर्गत प्रत्येक हित रखने वाले व्यक्ति को पक्षकार बनाया जाना आवश्यक है चाहे उसका नाम भू-अभिलेख में दर्ज हो अथवा नहीं।

राज्य बनाम छितर एवं अन्य (आर.आर.डी. 1976 पृष्ठ 421)
ऐसे व्यक्तियों के मध्य जिसका नाम भू-अभिलेख में बतौर सहभागी अंकित नहीं है भू-विभाजन नहीं किया जा सकता। उनके द्वारा वाद प्रस्तुत किया जाना आवश्यक है।

खेतसिंह बनाम सोहनकंवर (आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 664)
प्राईवेट विभाजन को धारा 53 के अन्तर्गत विभाजन का एक मात्र आधार नहीं माना जा सकता।

केसरबाई बनाम नाथूलाल (आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 317)
विभाजन के लिए वाद लाने हेतु धारा 80 सी.पी.सी. का नोटिस आवश्यक नहीं।

रामली बनाम हरमुख (आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 576)
विभाजन का वाद लाने हेतु एवं डिक्री प्राप्त करने हेतु भूमिधारी की स्वीकृति आवश्यक है।

मुन्नी बनाम हरा (आर.आर.डी. 1979 पृष्ठ 98)
भूमिधारी को पक्षकार न बनाना गम्भीर त्रुटि है। यह अभाव वाद को क्षति पहुँचाता है। वाद नहीं चल सकता।

धेली बनाम गोपाल (आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 628)
बिना विभाजन सहकृषक अपने भाग को बेच सकता है। अन्य भागीदारों की सहमति आवश्यक नहीं।

परमानन्द बनाम बेरूलाल (आर.आर.डी. 1981 पृष्ठ 523)
बंटवारे के दावे के अन्तर्गत अनुतोष एक उपकाश्तकार की प्रार्थना पर ही दिया जा सकता है हालांकि प्रतिवादी को पूछा नहीं गया हो।

जीवा बनाम नारा (आर.आर.डी. 1982 पृष्ठ 158)
जहाँ वादी उपकाश्तकार दर्ज नहीं है मामला स्वीकार योग्य धारण किया।

राजस्थान राज्य बनाम नारायण (आर.आर.डी. 1985 पृष्ठ 694)
यदि धारा 53 के अन्तर्गत विभाजन पूर्व में ही कर दिया गया है और उसके अनुसार भूमि पर कब्जा कर लिया है तो पुनः विभाजन या खातेदारी की आवश्यकता नहीं है।

सेक्रेट्री मेयोकालेज बनाम भारतीय संघ (आर.आर.डी. 1986 पृष्ठ 283)
धारा 53 के अन्तर्गत केवल मात्र सहकाश्तकार के द्वारा ही वाद लाया जा सकता है।

जगन्नाथ बनाम भंवरलाल (आर.आर.डी. 1987 पृष्ठ 348)
पंच फैसला प्रभाव में होते हुए समायोजन या करार महत्वपूर्ण नहीं है, जब तक कि उसे तहसीलदार के समक्ष लिखित में प्रस्तुत नहीं किया गया हो।

श्रीमति रामचन्द्री बनाम मु. तुलसी (आर.आर.डी. 1987 पृष्ठ 473)
विभाजन के समय राजस्व न्यायालय गोद के तथ्यों को ध्यान में रख सकता है।

श्रीमति कंचन बनाम श्रीमति केसरदेवी (आर.आर.डी. 1988 पृष्ठ 661)
विभाजन के दावे में प्रत्येक व्यक्ति अपने हिस्से के लिये वाद ला सकता है तथा वाद में आवश्यक पार्टी बन सकता है तथा आदेश 1 नियम 10 के अन्तर्गत प्रस्तुत किये गये पक्षकार संबंधी प्रार्थना पत्र को खारित नहीं किया  जा सकता है।

राजस्थान राज्य बनाम लक्ष्मीनारायण (आर.आर.डी. 1989 पृष्ठ 121)
विभाजन सहकाश्तकार के मध्य ही हो सकता है और ऐसे विभाजन लिखित में तथा भूमिधारी तहसीलदार की परमिशन से ही हो सकता है।

रामनारायण व अन्य बनाम बिरधा व अन्य (आर.आर.डी. 1984)
समस्त सह आसामियों का कब्जा भूमि के प्रत्येक इंच पर माना जाता है इसलिये एक सहआसामी के कब्जे को अन्य सहआसामियों के विरूद्ध नहीं माना जा सकता है।

समर्पण, परित्याग तथा अवसान

समर्पण
धारा 55
- किसी पट्टे या इकारानामें द्वारा आगामी वर्ष में अपने भूमि-क्षेत्र पर अधिपत्य बनाये रहने के लिये पाबन्द आसामी के अतिरिक्त अन्य कोई आसामी जो एक मई को या उससे पहले अपने भूमि-क्षेत्र को, चाहे वह शिकमी काश्त पर दिया हुआ अथवा बन्धक ग्रस्त हो या नहीं, कब्जा छोड़ते हुए एक लेख पत्र जो अधिकारिता रखने वाले तहसीलदार द्वारा या म्यूनिसिपल बोर्ड के सभापति द्वारा प्रमाणीकृत हो- के द्वारा समर्पित कर सकता है।

CASE LAW:-
हरनारायण बनाम राजस्व मण्डल (आर.आर.डी. 1966 पृष्ठ 31)
दुली बनाम थावरा (आर.आर.डी. 1966 पृष्ठ 198)
यह निर्णित किया गया कि भूमि को भूमिधारी को सौंप दिया जावे तो परित्याग कानूनन होगा चाहे धारा 55 के अनुसार लिखित दस्तावेज तैयार न किया गया हो।

(आर.आर.डी. 1966 पृष्ठ 37),(आर.आर.डी. 1969 पृष्ठ 133), (आर.आर.डी. 1971 पृष्ठ 161),(आर.आर.डी. 1972 पृष्ठ 116)
लिखित दस्तावेज का कानूनी प्रभाव होने के लिए उसका विधिवत प्रमाणीकरण आवश्यक है, प्रमाणीकरण तहसीलदार द्वारा जिसके क्षेत्राधिकार में भूमि स्थित है किया जा सकता है।

दुली बनाम थावर (आर.आर.डी. 1966 पृष्ठ 198)
जब किसी आसामी को खातेदारी अधिकार प्राप्त हो जाते हैं तो भूमि का परित्याग केवल राज्य सरकार के हक में ही किया जा सकता है।

गाँधीलाल बनाम भूरा (आर.आर.डी. 1979 पृष्ठ 373)
भूमि का परित्याग जब ही माना जायेगा जब परित्याग तहसीलदार द्वारा प्रमाणित हो तथा कब्जा दे दिया हो। भूमिधारी को बिना कब्जा दिए परित्याग नहीं हो सकता है।

गेन्दीलाल बनाम स्टेट (आर.आर.डी. 1979 पृष्ठ 332)
परित्याग का प्रमाणीकरण उपखण्ड अधिकारी भी कर सकता है। धारा 218 (11) द्वारा वह सक्षम है।

फूलसिंह बनाम मोतीलाल (आर.आर.डी. 1979 पृष्ठ 401)
परित्याग केवल भूमिधारी के पक्ष में हो सकताहै। किसी अन्य के पक्ष मे नहीं तथा परित्याग विलेख तहसीलदार द्वार प्रमाणित हो।

खूमा बनाम मन्दिर पारस नाथजी (आर.आर.डी. 1983 पृष्ठ 539)
समर्पण साबित होने के लिये कब्जा सम्भलाना ही काफी है।


भूमिधारी को नोटिस
धारा 56 (1)
- धारा 55 के अन्तर्गत कोई भी समर्पण किये जाने के पहले इस प्रकार समर्पण करने वाला आसामी अपने इस आशय कि वह समर्पण करेगा, एक रजिस्टर्ड नोटिस अपने भूमिधारी को एक मई से कम से कम तीस दिन पहले देगा और जब तक कि नोटिस भेज नहीं दिया जाय वह आसामी समर्पण की तारीख से आसामी कृषि-वर्ष  का लगान अपने भूमि-क्षेत्र के विषय में, अपने भूमिधारी को देने का भागी होगा।

परन्तु शर्त यह है कि आसामी इस प्रकार उस अवधि का लगान देन का  भागी नहीं होगा जिसमें भूमि-क्षेत्र किसी अन्य आसामी को पट्टे पर दे दिया गया हो या भूमि-धारी द्वारा स्वयं अपने निजी प्रयोग में या कृषि के लिये काम में लिया गया हो।

धारा 56 (2) - इस धारा की कोई बात किसी ऐसी अवस्था पर प्रभाव नहीं डालेगी जिसमें कोई आसामी और उसका भूमिधारी सम्पूर्ण भूमि-क्षेत्र या उसके किसी भाग के समर्पण के लिये सहमत हों।

परन्तु शर्त यह है कि उक्त सहमति धारा 55 में उल्लिखित रीति से प्रमाणीकृत की जाय।

CASE LAW:-
रामेश्वर लाल बनाम झूंथा (आर.आर.डी. 1959 पृष्ठ 177)
सह उपकृषकों में से किसी एक सह कृषक द्वारा भूमिधारी को परित्याग का नोटिस जानी नहीं किया जा सकता।

प्रकरण (आर.आर.डी. 1992 पृष्ठ 648)
धारा 55 व धारा 56 के अन्तर्गत खातेदार सम्पत्ति में अपने अधिकार भूमि धारी अर्थात राज्य को सपर्पित कर सकता है, खातेदार द्वारा किसी व्यक्ति के पक्ष में समर्पण नहीं किया जा सकता है।

समर्पण रद्द करने के लिये दावा
धारा 58 (1)
- कोई भूमिधारी जिसे धारा 56 या 57 के अन्तर्गत नोटिस दिया गया हो, ऐसे नोटिस को अमान्य घोषित किये जाने के लिए दावा दायर कर सकता है।

धारा 58 (2) - यदि ऐसा कोई दावा दायर नहीं किया जाय तो समर्पण के लिए भूमिधारी की स्वीकृति समझली जायगी।

समर्पित भूमि-क्षेत्र का कब्जा लेना
धारा 59
- भूमिधारी इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसरण में समर्पित किये गये भूमि-क्षेत्र में प्रवेश करके उसे अपने कब्जे में ले सकता है।

काश्तकारी अधिकारों का परित्याग

धारा 60 (1) - उपधारा (2) तथा (3) के प्रावधानों के अधीन रहते हुए, कोई आसामी जो कृषि करना बन्द कर दे और पड़ौस को छोड़ देता है अपने भूमि-क्षेत्र मंे अपना हित उस अवस्था में नहीं खोयेगा जबकि वह अपने भूमि-क्षेत्र को ऐसे व्यक्ति को सुपुर्द करता है जो लगान के देय होने पर उसके भुगतान  का जिम्मेदार हो तथा इस प्रबन्ध की भूमिधारी को लिखित सूचना दे दी गई हो।

धारा 60 (2) - यदि वह व्यक्ति जिसे ऐसी सुपुर्दगी की गई हो, ऐसा व्यक्ति हो -
(क) जिसको, आसामी की मृत्य हो जाने की दशा में आसामी के हित प्राप्त होते हो, या
(ख) जिसे भूमि-क्षेत्र का प्रबन्ध उस व्यक्ति के लाभ के लिय करना है जिसको,  आसामी की मृत्यु हो जाने की अवस्था में आसामी का हित प्राप्त हो जायेगा।

तो आसामी, सात वर्ष की अवधि समाप्त हो जाने पर, अपने भूमि-क्षेत्र में अपना हित खो बैठेगा जब तक कि वह, उक्त समय के अन्दर अपने भूमि-क्षेत्र में दुबारा कृषि करना शुरू न कर दे, और उस हित, उस व्यक्ति को प्राप्त हो जायेगा जिसे आसामी का हित, आसामी की मृत्यु हो जाने की अवस्था में प्रापत होता।

धारा 60 (3) - यदि वह व्यक्ति जिसे उक्त प्रकार सुपुर्दगी की गई हो,उप धारा (2) में उल्लिखित व्यक्ति नहंी है तो उस अवधि के समाप्त होने पर जिसके लिये आसामी शिकमी-काश्त पर दे सकता था, यह अनुमान लगाया जायेगा कि आसामी ने अपना भूमि-क्षेत्र, परित्याग कर दिया है जब तक कि वह उक्त अवधि के अन्दर अपने भूमि-क्षेत्र में दुबारा कृषि करना शुरू न कर दे।

धारा 60 (4) - वह आसामी जो कृषि करना बन्द कर पड़ौस का त्याग उपधारा (2) के प्रावधानों का अनुसरण न करते हुए अन्य प्रकार से करता है, उसके बारे में यह अनुमान लगाया जायेगा कि उसने अपने भूमि-क्षेत्र का परित्याग कर दिया है।

व्याख्या -
यह धारा काश्तकार द्वारा जोत के छोड़े जाने से संबंध रखती है। किसी भूमि का परित्याग करने के लिये यह जरूरी है कि निम्न बातें साबित हो जायें-
(1) यह कि काश्तकार या आसामी ने जोत पर खेती करना बन्द कर दिया है।
(2) यह कि काश्तकार या आसामी अपना भूमि-क्षेत्र छोड़कर अन्यत्र चला गया है एवं किसी ऐसे व्यक्ति को चार्ज में नहीं छोड़ा गया है जो लगान की अदायगी के लिए जिम्मेदार हो, एवं
(3) यह कि जोत अनाधिवासित है यानि आसामी बिना भूमि धारी को लिखित नोटिस दिये चला गया है एवं उक्त भूमि के लिये लगान दिये जाने का कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति नहीं है।

प्रक्रिया - परित्याग की घोषणा करने के लिये आसामी या काश्तकार को आवेदन पत्र अनुसूची तृतीय के द्वितीय भाग के मद संख्या 40 के तहत देना पड़ेगा जिस पर 15 पैसे न्यायालय शुल्क लगेगा।

परित्यक्त समझी गई भूमि का अधिपत्य लेने के पहले की कार्य प्रणाली
धारा 61 (1)
- जब आसामी के बारे में यह समझ लिया जाये कि उसने अपनी भूमि का पत्यिाग कर दिया है वह तहसीलदार स्वतः ही या भूमिधारी द्वारा आवेदन पत्र प्रस्तुत किये जाने पर यथास्थिति एक घोषणा निर्धारित तरीके से जारी एवं तामली कराने की या प्रकाशित कराने की व्यवस्था करेगा जिसमें यह उल्लिखित होगा कि उक्त आसामी के भूमि-़क्षेत्र को परित्यक्त माने जाने तथा उसमें प्रवेश किये जाने एवं उसके अनुसार उसे कब्जे में लिये जाने का विचार है जब तक कि इसके विपरीत कारण न बताये जायें।

धारा 61 (2) - तहसीलदार या भूमिधारी जैसी भी स्थिति  में भूमि-क्षेत्र में प्रवेश पा सकता है तथा उसका कब्जा ले सकता है यदि घोषणा के जवाब में-
(1) घोषणा की तामील या प्रकाशन की तारीख से साठ दिन के अन्दर या तो वह आसामी जिसके बारे में यह माना गया है कि उसने अपना भूमि-क्षेत्र परित्याग कर दिया है या उस आसामी की ओर से या स्वयं अपनी ओर से कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं होता है, या
(2) ऐसी प्रविष्टि और कब्जे के बारे में उक्त अवधि के भीतर आपत्ति दायर की जाती है और वह अस्वीकार कर दी जाती है।

धारा 61 (3) - यदि इस धारा के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए किसी भूमि क्षेत्र का प्रवेश किया जाय तथा उसे कब्जे में लिया जाय तो उसका आसामी धारा 186 के अर्थ में कानून की रीति के अतिरिक्त अन्य प्रकार से अथवा इस अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन में बेदखल किया गया समझा जायगा।

धारा 61 (4) - जब किसी भूमि-क्षेत्र में उपधारा (2) के अन्तर्गत प्रवेश एवं उस पर कब्जा किया जाय तो वह भूमि-क्षेत्र धारा 62 के प्रावधानों के अधीन रहते हुए किसी अन्य आसामी को काश्त पर उठायी जा सकती है या भूमिधारी द्वारा व्यक्तिगत रूप से उसमें काश्त की जा सकती है।

CASE LAW:-
राज्य बनाम मोतीबाई (आर.आर.डी. 1982 पृष्ठ 519)
पुनः कब्जा प्राप्त करने के लिये उचित उपाय धारा 175 के अन्तर्गत है न कि धारा 61 में।

उन आसामियों के अधिकार जिनके बारे में यह अनुमान कर लिया गया कि उन्होने अपने भूमि-क्षेत्र का परित्याग कर दिये हैं
धारा 62 (1)
- किसी व्यापक विपत्ति जैसे अनावृष्टि, अकाल, व्यापक रोग या उन्हीं के सदृश्य अन्य आपाल तथा किसी अन्य युक्तियुक्त कारण से जो आसामी कृषि करना बन्द कर दे तथा पड़ौस छोड़ दे तो धारा 60 तथा 61 में उल्लिखित कोई बात उप धारा (2) में उल्लिखित रीति उसमें दिये गये समय तथा निर्दिष्ट शर्तों के अधीन रहते हुए, अपने भूमि-क्षेत्र का कब्जा दुबारा प्राप्त करने के अधिकार पर कोई भी प्रभाव नहीं डालेगी।

धारा 62 (2) - धारा 60 की उपधारा (1) के तहत ाजरी की गई घोषणा  की तामील या प्रकाशन की तारीख से एक वर्ष के अन्दर कोई ऐसा आसामी अपनी बहाली के लिए एवं अपना भूमि-क्षेत्र पुनः दिलाये जाने के लिए प्रार्थना पत्र निर्धारित रीति से तहसीलदार को पेश कर सकता है, और यदि वह तहसीलदार का इस बात से समाधान कर देता है कि उसने उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी आधार पर या कारण से पड़ौस को छोड़ा था तो उस भूमि-क्षेत्र का कब्जा जिस पर धारा 61 की उपधारा (2) के अन्तर्गत प्रवेश किया गया हो अथवा कब्जे में ले लिया गया हो, उसे इस रूप में पुनः दिलाया जायगा मानो उसने उक्त प्रकार उसका परित्याग किया ही नहीं हो, बशर्ते कि उक्त भूमि क्षेत्र के जरिये, पुनःकब्जा दिये जाने की तारीख तक इसमें परित्याग अवधि सम्मिलित है-उसे देय सम्पूर्ण बकाया-लगान का भुगतान उसके द्वारा कर दिया जाय।

परन्तु शर्त यह है कि यदि भूमि-क्षेत्र या उसका  कोई भाग धारा 61 की उपधारा (4) के अन्तर्गत 7
(1) किसी अन्य आसामी को काश्त पर दे दिया गया हो तो उक्त अन्य आसामी से देय लगान की रकम उक्त बकाया लगान की रकम में से कम की जा सकेगी, अथवा
(2) भूमिधारी द्वारा स्वयं काश्त की गई हो तो उक्त काश्त की अवधि के बारे में कोई लगान देय नहीं होगा।

काश्तकारी अधिकारों  का अवसान
धारा 63 (1)
- एक आसामी का उसके भूमि-क्षेत्र या उसके किसी भाग जो भी हो में हित समाप्त हो जायेगा -
(1) जब वह ऐसा उत्तराधिकारी छोड़े बिना मर जाता है जो इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसरण में उत्तराधिकार प्राप्त करने का हकदार हो,
(2) जब वह अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार उसे समर्पण या परित्याग कर दे,
(3) जबकि उसकी भूमि राजस्थान भूमि अवाप्ति अधिनियम,1953 के अन्तर्गत अवाप्त कर ली गई हो,
(4) जबकि वह अधिपत्य से वंचित कर दिया गया हो और अधिपत्य पुनः लेने का उसका अधिकार अवधि बाधित हो गया हो,
(5) जब वह इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार बेदखल कर दिया गया,
(6) जब वह उसमें निहित भूमिधारी के समस्त अधिकारों को प्राप्त कर लेता है अथवा भूमिधारी उसे उत्तराधिकार में या अन्यथा प्राप्त कर लेता है,
(7) जब वह उसे इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार बेच दे या दान कर दे अथवा
(8) यदि वह कानून द्वारा मान्य परिपत्र प्राप्त किए बिना या कानूनी अधिकार बिना भारत से किसी विदेश को चला जावे।

स्पष्टीकरण - खण्ड (8) के प्रयोजन के लिए जो आसामी इण्डियन पासपोर्ट एक्ट, 1920 के अन्तर्गत कोई कानून द्वारा मान्य परिपत्र प्राप्त किए बिना या कानूनी अधिकार या किसी भी देश में प्रवेश करेगा वह भारत से विदेश गया हुआ माना जायेगा।



धारा 63 (2) - आसामी के हित का अवसान हो जाने पर उसके अधीन भूमि धारण करने वाले किसी शिकमी-आसामी का हित अवसायित हो जायगा।

परन्तु ऐसे प्रत्येक मामले में जो उपधारा (1) के खण्ड (3) में उल्लिखित मामला नहीं है, उक्त शिकमी आसामी जब तक वह स्वयं भी इस अधिनियम के किसी प्रावधान या उस समय प्रभाव में किसी विधि के अन्तर्गत बेदखल न कर दिया गया हो या बेदखल किये जाने योग्य न हो गया हो या होने को न हो या जब तक कि वह अपने भूमि-क्षेत्र पर विधि द्वारा निर्धारित तरीके से अधिकार प्राप्त करने का हकदार न होगा, उक्त भूमि-क्षेत्र में तथा उसके अन्तर्गत सुधारों में अपने मुख्य आगामी के अधिकारों की अवाप्ति के लिये धारा 23, 24 तथा 25 के अनुसार निश्चित किये जाने वाले मुआवजे का भुगतान करने पर, प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने का अधिकार होगा।

CASE LAW:-
श्री माला बनाम श्रीमति गुलाब कंवर (आर.आर.डी. 1974 पृष्ठ 280)
धारा 63 प्रक्रिया संबंधी प्रावधान नहीं है। यह अधिकारों से संबंधित कानून है तथा समस्त प्रकार की कृषि भूमि पर लागू होते है।

नन्दगिर बनाम राजस्व मण्डल (आर.आर.डी. 1963 पृष्ठ 250)
यदि पट्टे की अवधि समाप्त हो जाए तो आसामी के काश्तकारी के अधिकार समाप्त नहंी होते। ऐसे काश्तकार को नियमानुसार व विधिवत ही बेदखल किया जा सकता।

श्रीपार्वती बनाम श्री  जगन्नाथ (आर.आर.डी. 1962 पृष्ठ 185)
मुआफीदार की माफी समाप्ति पर काश्तकारी के अधिकार इस अधिनियम के तहत समाप्त हो जाते है।

गोमा बनाम चुन्नीलाल (आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 42)
बेदखली की मियाद उस दिन से मानी जायेगी जिस दिन खातेदार अतिक्रमी की भूमि खाली करने को कहे। जो व्यक्ति खातेदार की अनुक्रम से भूमि में प्रवेश करता है उसे धारा 63(1) क्लाज (4) का लाभ मिलता। इसका कारण यह है कि खातेदार को बलात् कब्जे से वंचित नहीं किया गया वरन् कब्जा अनुमति से है।

आर.डी. बग्गा  बनाम सुरेन्द्रसिंह (आर.आर.डी. 1991 पृष्ठ 1)
मुखालफाना कब्जे (एडवर्स पजेशन) क आधार पर काबिज काश्तकार को खातेदारी अधिकार मिल जाते हैं बशर्ते कि टीनेन्सी एक्ट की धारा 16 अथवा 42 का उल्लंघन  न हो।

अधिकार का अवसान होने पर भूमि खाली किया जाना
धारा 64
- सिवाय उसके जैसा कि इस अधिनियम में अन्यथा उपबन्धित है, जब किसी आसामी या शिकमी आसामी का हित समाप्त हो जाय तो वह अपने भूमि-क्षेत्र को खाली कर देगा परन्तु उसे किसी फसल को हटाने के संबंध में वही अधिकार प्राप्त होगा जो कि उसे इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार बेदखल किये जाने की दशा में होता।
उदमीराम बनाम श्रीरामदेव (आर.आर.डी. 1961 पृष्ठ 109)
जब किसी आसामी के अधिकार समाप्त हो तो उसे भूमि खाली करनी पड़ती है किन्तु फसल हटाने के बारे में उन्हीं सुविधाओं का अधिकार है जो अतिक्रमी की बेदखली की प्रक्रिया में प्राप्त है।

(सुधार)

सुधार करने का अधिकार
धारा 65 - राज्य सरकार अथवा कोई भू-स्वामी सम्पूर्ण राज्य के किसी भाग में या उस पर प्रभाव डालने वाला कोई सुधार कर सकती है।

सुधार करने का खातेदार आसामियों का अधिकार
धारा 66 (1)
- खातेदार आसामी अपने भूमि-क्षेत्र में कोई भी सुधार कर सकता है।
परन्तु राज्य सरकार समय समय पर
(क) ऐसे सुधार किया जाना जैसा कि धारा 5 के खण्ड (19) के उपखण्ड (क) में उल्लिखित है, उन क्षेत्रों में तो तदर्थ अधिसूचित किये जाएं, सार्वजनिक  हित में प्रतिबन्धित कर सकेगी, तथा
(ख) ऐसे क्षेत्रों में जो किसी उक्त अधिसूचना द्वारा प्रभावित नहीं होते हैं कोई ऐसे सुधार किये जाने का नियमन करने के लिये नियम बना सकेगी।

भूमिधारियों का सुधार करने का अधिकार
धारा 67
- राज्य सरकार से भिन्न कोई भूमिधारी अथवा भू-स्वामी तहसीलदार की अनुमति से जिसके लिए निर्धारित रीति से आवेदन किया गया हो तथा जो निर्धारित रीति से प्रदान की गई हो, अपने आसामियों के भूमि-क्षेत्र में अथवा उस पर प्रभाव डालने वाला सुधार कर सकेगा।

परन्तु शर्त यह है कि यदि ऐसे भूमि-क्षेत्र का आसामी एक गैर-खातेदार आसामी या खुदकाश्त का आसामी या शिकमी-आसामी है अथवा यदि वह सुधार जिसे उक्त भूमिधारी करना चाहता है, एक कुआ है तो ऐसी अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी।
परन्तु शर्त और है कि धारा 5 के खण्ड (19) के उपखण्ड (क) में वर्णित समस्त सुधार अथवा उनमें से कोई सुधार, ऐसे क्षेत्र में -जो भूमि-क्षेत्र के समूचे क्षेत्रफल के 1/50 भाग से अधिक नहीं हो-जैसा कि निर्धारित किया जाये, नहीं किये जायेंगे और विहित परिस्थितियों के अलावा भिन्न परिस्थितियों में अनुमति नहीं दी जावेगी।

CASE LAW:-
रामकिशोर बनाम नाहरसिंह (आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 99)
धारा 67 के प्रावधानों में तहसीलदार को स्वविवेक का अधिकार प्राप्त है किन्तु यह स्वविवेक न्यायिक सिद्धान्तों के अनुसार प्रयोग किया जाना चाहिए।

व्याख्या-
यह धारा भूमि धारियों को भूमि पर सुधार करने का अधिकार देती है परन्तु उक्त अधिकार का प्रयोग तहसीलदार की आज्ञा से किया जा सकता है। यदि तहसीलदार यह पावे कि-
(1) प्रस्तावित कार्य धारा 5 (19) के अर्थ में सुधार नहीं है,
(2) प्रयोजन के मुकाबले कार्य अधिका खर्चीला है,
(3) कार्य ऐसा है जिसे भूमिधारी को करने का अधिकार नहीं है या धारा 71 की रजाबन्दी नहीं ली गई है, तो सुधार करने की इजाजत देने से मना कर सकता है। सुधार के लिए भूमिधारी द्वारा आवेदन तहसीलदार केा करना होगा जो कि कभी भी किया जा सकता है। उक्त आवेदन पत्र पर 25 पैसे न्यायालय शुल्क लगेगा। तहसीलदार सुधार करने के लिये  एक अवधि निश्चित कर सकता है जो 1 वर्ष से अधिक नहीं होगी।

तहसीलदार द्वारा अनुमति कब दी जा सकेगी और कब अनुमति देने से इन्कार किया जा सकेगा
धारा 68
- तहसीलदार जिसे धारा 67 के प्रावधानों के अन्तर्गत आवेदन पत्र दिया जाय, पक्षकारों की सुनवाई करने और वैसी जाँच जैसी वह करना ठीक समझे करने के बाद उक्त सुधार करने की अनुमति ऐसे प्रतिबन्धों के साथ यदि कोई हो, जैसे वह उचित समझे दे सकेगा या देने से इन्कार कर देगा।

परन्तु तहसीलदार ऐसे सुधार के लिए अनुमति नहीं देगा जो
(1) ऐसा सुधार जैसा कि इस अधिनियम में परिभाषित है, नहीं है,
(2) इस प्रयोजन के लिये जिसके लिये वह अभिप्रेत है, बहुत मंहगा हे,
(3) ऐसा सुधार नही है, जिसे करने का आवेदक हक रखता है,
या
(4) धारा 70 के अन्तर्गत लिखित अनुमति की अपेक्षा रखता है, यदि उक्त अनुमति पहले प्राप्त नहीं की गई है।

भूमिधारी एवं आसामी दोनों की एक ही सुधार करने की इच्छा होने की दशा में प्रावधान
धारा 69 (1)
- यदि कोई खातेदार आसामी तथा उसका भूमिधारी-राज्य सरकार न हो, दोनों एक ही ऐसा सुधार करना चाहें जिसे वे इस अधिनियम के अन्तर्गत करने के हकदार हों तो तहसीलदार, आवेदन पत्र प्राप्त करने पर आसामी को निर्दिष्ट समय के अन्दर कार्य को पूरा करने की अनुमति देगा और यदि उचित कारण बताये जायें तो वह उक्त अवधि को समय समय पर बढ़ा सकेगा।
परन्तु ऐसी समयावधि बढ़ाये जाने का अधिकतम समय एक वर्ष से अधिक नहीं होगा।

धारा 69 (2) - यदि आसामी ऐसी अवधि या बढ़ाई गई अवधि के भीतर कार्य पूरा करने में विफल रहे तो भूमिधारी को इस सुधार कार्य को पूरा करने का अधिकार होगा।

अन्य आसामियों का सुधार करने का अधिकार
धारा 70
- कोई गैर-खातेदार आसामी या खुदकाश्त का आसामी अथवा शिकमी-आसामी, धारा 66 की उपधारा (1) के प्रथम तथा द्वितीय परन्तुकों द्वारा अधिरापित प्रतिबन्धों के अधीन रहते हुए, कोई भी सुधार कर सकता है परन्तु वह बेदखली होने पर मुआवजे का अधिकार नहीं होगा जब तक कि उसने उक्त सुधार करने के लिये पहले तहसीलदार की अनुमति या खुदकाश्तधारी या खातेदार आसामी जैसी भी स्थिति, की लिखित अनुमति प्राप्त न कर ली हो।

सुधार करने पर प्रतिबन्ध
धारा 71
- इस अध्याय की कोई बात किसी आसामी या भूमिधारी जो राज्य सरकार न हो अथवा भू-स्वामी को ऐसी भूमि जो उक्त सुधार से लाभान्वित होने वाले भूमि-क्षेत्र में सम्मिलित न हो, में
(क) कोई सुधार, या
(ख) उक्त भूमि को हानिकर कोई सुधार,
करने का अधिकार नहीं देगी या अधिकार नहीं देने वाली नहीं मानी जायगी जब तक कि उक्त आसामी या भूमिधारी ने उस भूमि के भूमिधारी या जैसी भी स्थिति राज्य सरकार की तथा आसामी की भी यदि कोई हो लिखित   अनुमति प्राप्त न कर ली हो।

सम्पूर्ण लगान का दायित्व
धारा 72
- कोई आसामी जो सुधार करे, लिखित विपरीत इकरारनामें के अभाव में भूमि-क्षेत्र का सम्पूर्ण लगान देने का उत्तरदायी बना रहेगा।
परन्तु जहाँ लगान जिन्स में देय हो और उपखण्ड अधिकारी का इस बात से समाधान हो जाय कि खुदकाश्त के आसामी या शिकमी आसामी द्वारा धारा 70 के अन्तर्गत किये गये सुधार के फलस्वरूप कृषि उपज में वृद्धि हुई है तो, उपखण्ड अधिकारी आसामी या शिकमी आसामी द्वारा आवेदन पत्र दिये जाने पर, धारा 118 व 119 के उपबन्धों के अनुसार लगान को नकद में अन्तवर्तित कर देगा।

हानि के लिये क्षतिपूर्ति
धारा 73 (1)
- कोई भूमिधारी जो किसी आसामी के भूमि-क्षेत्र में या उस पर प्रभाव डालने वाले कोई सुधार, धारा 67 के अन्तर्गत करता है तो वह आसामी को ऐसी किसी क्षति के लिये क्षति के लिये क्षतिपूर्ति देने का उत्तरदायी होगा जो वह सुधार करते समय आसामी को पहुँचावे।

धारा 73 (2) - यदि किसी उक्त भूमिधारी द्वारा किये गये सुधार के प्रभाव से किसी ऐसी भूमि की उत्पादन क्षमता को क्षति पहुँचाती है जो किसी आसामी ने उक्त भूमिधारी से लेकर धारण की हुई हो तो उक्त आसामी उपधारा (1) के अन्तर्गत उसे दिये जाने वाले क्षतिपूर्ति के अतिरिक्त, अपने लगान में ऐसी कमी का भी हकदार होगा जिसे न्यायालय उचित समझे।

सुधार के लिये क्षतिपूर्ति
धारा 74
- कोई आसामी जिसने इस अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत सुधार किया हो, निम्नलिखित परिस्थितियों में क्षतिपूर्ति पाने का हकदार होगा-
(1) जब उसकी बेदखली के लिये डिक्री या आज्ञा प्रदान की गई हो, या
(2) जब उसे विधि-विपरीत रीति से कब्जा विहीन कर दिया गया हो और उसे अपने भूमि-क्षेत्र का कब्जा वापस नहीं मिला हो,
(3) जब वह अपने पट्टे की अवधि समाप्त होने पर भूमि-क्षेत्र को खाली कर देता है, यदि सुधार धारा 70 के प्रावधानों के अन्तर्गत किया गया हो।

परन्तु
(क) आसामी द्वारा अपने स्वयं के रहने के लिये भूमि-क्षेत्र पर बनाये गये रिहायशी मकान, या उसके द्वारा अपने भूमि-क्षेत्र पर पशुशाला या गोदाम अथवा कृषि प्रयोजनार्थ बनाये गये या स्थापित किये गये किसी अन्य निर्माण की दशा के सिवाय, किसी ऐसे सुधार के लिए मुआवजा देय नहीं होगा जो उक्त बेदखली के लिए डिक्री या आज्ञा की तारीख से या उक्त कब्जा-विहीनता या खाली किये जाने से तीस वर्ष या अधिक पहले किया गया हो।

(ख) कोई आसामी जो, बेदखली के लिये डिक्री या आज्ञा के निष्पादन में या बेदखली के नोटिस के अनुसरण में, बेदखली किया गया हो, किसी ऐसे सुधार के लिये क्षतिपूर्ति पाने का हकदार नहीं होगा जो उसने डिक्री, आज्ञा या नोटिस की तारीख के बाद प्रारम्भ किया हो, और

(ग) मुआवजा किसी ऐसे सुधार के लिये नहीं दिया जायेगा जो सहायक कलक्टर की राय में, उस तारीख को व्यर्थ हो गया हो जिसको कि आसामी तदर्थ क्षतिपूर्ति का हकदार होता है।

क्षतिपूर्ति की रकम
धारा 75 (1)
- किसी सुधार के लिये या उसके कारण इस अधिनियम के किसी प्रावधान के अन्तर्गत देय क्षतिपूर्ति की रकम का निश्चय करने में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जावेगा-
(1) उस रकम का जिसकी, उस भूमि-क्षेत्र के मूल्य एवं उपज में उक्त सुधार के जरियेया उसके कारण बढ़ोतरी या कमी हुई,
(2) उक्त सुधार कार्य की दशा तथा उसके प्रभावों के कायम रहने की सम्भावित अवधि का, और
(3) उक्त सुधार कार्य के करने में लगाये गये श्रम तथा राशि का, जिसमें-
(क) लगान की किसी कमी या छूट या सुधार-कार्य के प्रतिफल स्वरूप आसामी को दिया गया कोई अन्य लाभ,
(ख) नकद, सामग्री या श्रम के रूप में आसामी को भूमिधारी द्वारा दी गई कोई सहायता, और
(ग) भूमि का पुनरुद्धार करने या असिंचित से सिंचित भमि में परिणित करने की दशा में, वह कालावधि जिसके दौरान उस पक्ष ने जो क्षतिपूर्ति का दावा करता हो, सुधार का लाभ उठाया हो, और
(4) ऐसी अन्य बातें जो निर्धारित की जायें।

धारा 75 (2) - जब आसामी द्वारा किये गये सुधार से-
(क) उस भूमि को जिससे, वह बेदखल अथवा कब्जाविहीन किया गया है, और
(ख) अन्य भूमियों को जो उसके कब्जे में हों, लाभ पहुँचता हो, मुआवजे का निश्चियन उस सीमा को ध्यान में रखते हुए किया जायेगा जिस सीमा तक खण्ड (क) में उल्लिखित भूमि उक्त सुधार से लाभान्वित हुई हो।

अन्य भूमियों को लाभ पहुँचाने वाले कार्य-
धारा 76 (1)
- यदि किसी आसामी के द्वारा ऐसी भूमि में सुधार किया हो जो लगान की बकाया के लिए डिक्री की इजराय में बेची जाय या जिससे उसे बेदखल किया जाये तो खरीददार अथवा भूमिधारी, यथास्थिति उस सुधार कार्य का स्वामी बन जायेगा किन्तु आसामी अपने पास शेष भूमि के विषय में ऐसे सुधार-कार्य का लाभ उसी प्रकार तथा उसी सीमा तक होगा जिस प्रकार तथा सीमा तक उस भूमि को उस कार्य से तत्पूर्व लाभ पहुँचता रहा हो।

धारा 76 (2) - यदि किसी आसामी ने ऐसी भूमि में सुधार किया हो जो उसके कब्जे में उसकी भूमि के किसी भाग के, लगान की बकाया के लिये डिक्री के इजराय में बेचे जाने या उसकी भूमि के किसी भाग से उसे बेदखल किये जाने के बाद शेष रहती है तो, खरीददार या भूमि धारी, यथास्थिति, उस भूमि के विषय में जो आसामी के अधिपत्य में नहीं रहती है,  उस सुधार कार्य का लाभ उसी सीमा तक उसी प्रकार होगा जिस सीमा तक जिस प्रकार उक्त भूमि को उस सुधार कार्य का लाभ पहुँचता रहा हो।

धारा 76 (3) - यदि किसी भूमिधारी ने कोई ऐसा सुधार कार्य किया हो जिसमें आसामी के भूमि क्षेत्र को लाभ पहुँचता हो और उक्त सम्पूर्ण भूमि क्षेत्र अथवा उसका कोई भाग लगान की बकाया के लिए डिक्री इजराय में विक्रय कर दिया जावे तो, क्रेता बेची गई भूमि के विषय में उस सुधार कार्य का उस सीमा तक उसी ्रपकार लाभ उठाने का हकदार होगा जिस सीमा तक तथा जिस प्रकार उस भूमि सुधार कार्य का लाभ तत्पूर्व पहुँचता रहा हो।

सुधार की लागत का रजिस्टेªशन
धारा 77 (1)
- यदि कोई भूमिधारी जो, राज्य सरकार से भिन्न हो या कोई आसामी यह चाहे कि किसी सुधार पर व्यय की गई रकम का निश्चय कर दिया जाना चाहिये तो, तहसीलदार इस प्रयोजनार्थ उसे प्रस्तुत किये गये आवेदन पत्र पर और दूसरे पक्ष को सुनवाई का उचित अवसर देने के बाद या ऐसी अन्य जाँच जिसे वह उचित समझे, करने के बाद, लगान की रकम तय करेगा और उसे एक रजिस्टर में जो निर्धारित प्रपत्र में रखा गया हो, अंकित करेगा।

धारा 77 (2) - आवेदन पत्र के पक्षकारों या उनके हित के उत्तराधिकारियों के बीच उक्त सुधार कार्य की लागत के विषय में बाद में किसी कार्यवाही में उक्त रजिस्टर में किया हुआ इन्द्राज, व्यय की रकम का निर्णायक सबूत होगा।

व्याख्या - विकास की लागत का प्रमाणीकरण कराने के लिये आवेदन पत्र तृतीय अनुसूची के भाग 2 के मद 44 के अन्तर्गत तहसीलदार को दिया जायेगा जिस पर 25 पैसे न्यायालय शुल्क लगेगा। उक्त आवेदन पत्र सुधार कार्य पूरा होने के 6 महीने के भीतर किया जाना चाहिए एवं उक्त आवेदन दिये जाने के पश्चात् तहसीलदार की आज्ञा के विरूद्ध अपील कलक्टर को की जा सकेगी। कलक्टर की आज्ञा के विरूद्ध दूसरी अपील नहीं की जा सकेगी परन्तु कलक्टर की आज्ञा का पुनरीक्षण राजस्व मण्डल द्वारा किया जा सकेगा।
 
सुधार के संबंध में विवाद
धारा 78
- यदि कोई प्रश्न-
(क) कोई सुधार करने के अधिकार के संबंध में, या
(ख) इस विषय में कि क्या कोई कार्य विशेष में सुधार है, या
(ग)  इस विषय में कि क्या कोई कार्य धारा 71 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, या
(घ) धारा 73 की उपधारा (1) के अन्तर्गत क्षतिपूर्ति की रकम के विषय में या उपधारा (2) के अन्तर्गत लगान की कमी के ंसबंध में, या
(ङ) इस विषय में कि क्या किसी सुधार के लिए क्षतिपूर्ति देय है, या
(च) उक्त सुधार की रकम के संबंध में, या
(छ) किसी सुधार से धारा 76़ के अन्तर्गत लाभ उठाने के अधिकार के संबंध में, उत्पन्न होता है, तो सहायक कलक्टर उस प्रश्न का निर्णय, आवेदन पत्र होने या अन्यथा, करेगा।

व्याख्या - यदि इस धारा में गिनाई गई बातों के विषय में कोई प्रश्न उत्पन्न हो तो पक्षकारों को सहायक कलक्टर को तृतीय अनुसूची के भाग 2 के मद संख्या 45 के अन्तर्गत आवेदन करना होगा, जिस पर 25 पैसा न्यायालय शुल्क लगेगा। सहायक कलक्टर की आज्ञा के विरूद्ध अपील राजस्व अपील प्राधिकारी को की जावेगी एवं अपील में दी गई आज्ञा का पुनरीक्षण राजस्व मण्डल करेगा।