गुरुवार, 9 अगस्त 2012

आसामियों के वर्ग

आसामियों की श्रेणियां
धारा 14

इस अधिनियम के प्रयोजनों के लिये आसामियों की निम्नलिखित श्रेणियां होंगी अर्थात
(क) खातेदार आसामी,
(कक) मालिक,
(ख) खुदकाश्त के आसामी, और
(ग) गैर-खातेदार आसामी।

CASE LAW:-
देवालाल बनाम लक्ष्मीनारायण (आर.आर.डी. 1968 पृष्ठ 485)
आसामी में राहिन भी शामिल है किन्तु उसके सीमित अधिकार उसे आसामी के पूर्ण स्वामित्व के अधिकार प्रदान नहीं कर सकते।
चेतनराम बनाम भंवरसिंह (आर.आर.डी. 1969 पृष्ठ 294)
धारा 14 में शिकमी काश्तकार नामक कोई वर्गीकरण नहीं है।

खातेदार आसामी
धारा 15
धारा 15 (1)
- धारा 16 तथा धारा 180 की उपधारा (1) के खण्ड (घ) के उपबन्धों के अधीन रहते हुए प्रत्येक व्यक्ति जो, इस अधिनियम के ंप्रारम्भ के समय भूमि के शिकमी आसामी या खुदकाश्त के आसामी के अलावा अन्य प्रकार का आसामी हो या जो, इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् शिकमी आसामी या खुदकाश्त के आसामी या (राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 101 के अन्तर्गत बनाये गये नियमों के अधीन तथा उनके अनुसरण में भूमि का आवंटिती) के अतिरिक्त आसामी की हैसियत से प्रविष्टि कर लिया जाय अथवा जो इस अधिनियम के या राजस्थान लैण्ड रिफाम्र्स एण्ड रिजम्पशन आफ जागीर्स एक्ट, 1952 के अथवा तत्समय प्रवृत अन्य किसी विधि के उपबन्धों के अनुसरण में भूमि में खातेदारी अधिकार अर्जित करता है, खातेदार आसामी  होगा और इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए इस अधिनियम द्वारा खातेदार आसामी को प्रदत्त समस्त अधिकारों का हकदार होगा तथा अरोपित समस्त दायित्वों के अधीन रहेगा।
परन्तु कोई खातेदारी अधिकार इस धारा के अन्तर्गत ऐसे किसी आसामी को अर्जित  नहीं होंगे जिसे गंग कनेाल, भाकरा, चम्बल अथवा जवाई प्रोजेक्ट क्षेत्र या इस संबंध में राज्य सरकार द्वारा अधिसूचित किसी अन्य क्षेत्र में अस्थायी तौर पर भूमि पट्टे पर दी जाय या दे दी गई है।

धारा 15 (2) - उपधारा (1) में किसी बात के अन्तर्वििष्ट होते हुए, तदन्तर्गत खातेदारी अधिकार ऐसे किसी व्यक्ति को प्रादभूत नहीं होंगे जिसे राज्य सरकार द्वारा इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व ‘‘अधिक अन्न उपजाओ आन्दोलन’’ को अग्रसर करते हुए या किसी विशेष आदेश के अन्तर्गत या किन्हीं निर्दिष्ट शर्तों के अधीन या किन्हीं वैधानिक या गैर वैधानिक नियमों के अनुसरण में भूमि किराये पर दी गई थी और जिसने उक्त प्रारम्भ के पूर्व, उक्त आन्दोलन के उद्देश्य की प्राप्ति में भूल की हो अथवा उक्त किसी अदेश, शर्त या नियम को भंग किया हो।

धारा 15 (3) - उपधारा (2) में उल्लिखित कोई व्यक्ति, इस अधिनियम के प्रारम्भ होने से तीन वर्ष के अन्दर और पच्चीस पैसा न्यायालय शुल्क भुगतान करने पर, अधिकारिता रखने वाले सहायक कलक्टर को यह घोषणा की जाने की प्रार्थना करते हुए आवेदन कर सकेगा कि उसने अपने द्वारा संघृत भूमि में उपधारा (1) के अधीन खातेदारी अधिकार अर्जित कर लिये हैं।

धारा 15 (4) - उक्त आवेदन पत्र निम्नलिखित किसी एक आधार पर प्रस्तुत किया जा सकता है, अर्थात् -
(क) कि उसके द्वारा संघृत भूमि उसे इस अधिनियम के प्रारम्भ के पश्चात् किराये पर दी गई थी,
(ख) कि उक्त भूमि उसे उपधारा (2) में निर्दिष्ट परिस्थितियों में से किसी के आधार पर नहीं दी गई थी,
(ग) कि उक्त भूमि जब उसे किराये पर दी गई थी तब उसे इन परिस्थितियों से अवगत नहीं कराया गया था,
(घ) कि उसने, उक्त प्रारम्भ के पूर्व, कोई भूल या भंग इस प्रकार की जैसी कि उपधारा (2) में निर्दिष्ट है, नहीं की थी।

धारा 15 (5) - सहायक कलक्टर, उपधारा (3) के अन्तर्गत आवेदन पत्र प्रस्तुत किया जाने पर, विहित रीति से जाँच करेगा और आवेदक को सुनवाई का युक्ति संगत अवसर प्रदान करेगा तथा, यदि वह आवेदन पत्र को अस्वीकार नहीं करता है तो, यह घोषणा करेगा कि आवेदक अपनी भूमि का, उपधारा (1) के उपबन्धों के अनुसरण में तथा उनके अधीन रहते हुए, खातेदार आसामी हो गया।

CASE LAW:-
रामसिंह बनाम ठाकरिया (आर.आर.डी. 1958 पृष्ठ 17)
यह धारा फौज में सेवारत कर्मचारियों की भूमि पर भी लागू होती है।

यादी बनाम मोहनलाल (आर.आर.डी. 1959 पृष्ठ 68)
टासामी धार 89 के अन्तर्गत वह जिस वर्ग का आसामी है उस हेतु घोषणात्मक वाद प्रस्तुत कर सकता है।

प्रभू बनाम रामदेव (ए.आई.आर. 1966 एस.सी. 1721)
जागीरदार की जो भूमि खुदकाश्त दर्ज नहीं है। उस पर आसामी खातेदारी अधिकार प्राप्त कर सकता है।
 
ठाकुर गजेन्द्रसिंह बनाम तहसीलदार बैर (आर.एल. डब्ल्यू. 1960 पृष्ठ 17)
धारा  15 के अन्तर्गत जिसे खातेदारी अधिकार प्राप्त हो जाते हैं उसे केवल राजस्थान काश्तकारी अधिनियम के अध्याय 11 के अन्तर्गत बेदखल किया जा सकता है।

हीरा बनाम फकरूद्दीन (आर.आर.डी. 1965 पृष्ठ 91)
जयपुर काश्तकारी अधिनियम के द्वारा जिसे गैर खातेदारी अधिकार प्रदत्त है, वह आसामी इस धारा के अन्तर्गत खातेदार हो सकता है।

किशनलाल बनाम राजस्थान सरकार (आर.आर.डी. 1963 पृष्ठ 71)
चम्बल क्षेत्र में अंकित ‘‘मुस्त्तकिल शिकमी, आसामी धारा 15 के तहत खातेदार है।

शंकरलाल बनाम किशना (आर.आर.डी. 1967 पृष्ठ 110)
खातेदारी अधिकार माफी के अधिकारों से भिन्न हैं।

कालवा बनाम राजस्व मण्डल (आर.आर.डी. 1962 एच.सी. 36)
धारा 15 उप आसामी को खातेदार अधिकार प्रदान नहीं करती है।

रामभूलसिंह बनाम राजस्थान सरकार (आर.आर.डी. 1962 पृष्ठ 254)
यदि कोई व्यक्ति 15-10-1955 को आसामी दर्ज नहीं है तो उसे धारा 15 के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार नहीं मिल सकते।

टेका बनाम दुलेसिंह (आर.आर.डी. 1964 पृष्ठ 220)
जो व्यक्ति किसी मसविदा के अन्तर्गत भूमि धारण करता है तथा दीवानी न्यायालय ने बेदखली की डिग्री के निस्पादन के आदेश पारित कर दिया है वह धारा 15 के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं कर सकता क्योंकि वह आसामी की परिभाषा मंे नहीं आता।

उमिया बनाम दुलेसिंह (आर.आर.डी. 1966 पृष्ठ 109)
उपकृषक को धारा 19 के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार मिल सकते हैं, धारा 15 के अन्तर्गत नहीं।

रतना बनाम राजस्थान सरकार (आर.आर.डी. 1963 पृष्ठ 65)
आराजी कमबूजा ठिकाना पर जागीरदार के काश्तकारों को धारा 15 के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं होते।

(आर.आर.डी. 1966 पृष्ठ 318)
यदि उपकृषक खातेदार की तरफ से लगान अदा करता है तो वह खातेदार नहीं बन सकता।

सुखराम बनाम राजस्थान राज्य (आर.आर.डी. 1961 पृष्ठ 248)
धारा 15 का परन्तुक उन परिस्थितियों का वर्णन करता है जिनसे खातेदारी अधिकार प्रदान नहीं होते।

दुल्ला बनाम राज्य (आर.आर.डी. 1967 पृष्ठ 44)
खातेदारी अधिकार भारतीय संविधान की धारा 31 के अन्तर्गत सम्पत्ति की परिभाषा में आते हैं तथा इनको बिना मुआवजा समाप्त नहीं किया जा सकता है।

मंगला बनाम भंवरलाल (आर.आर.डी. 1972 पृष्ठ 202)
यदि किसी काश्तकार को परियोजना क्षेत्रों में जिनका धारा 15 के परन्तुक में अंकन है, अस्थाई रूप से भूमि दी गई है तो उसे खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं होते।

राज्य बनाम पूर्णमल गुप्ता (आर.आर.डी. 1970 पृष्ठ 138)
धारा 15 के परन्तुक के प्रभावशील होने के लिए आवंटन का अस्थाई होना आवश्यक है।

सुरज मल बनाम श्रीहजारी (आर.आर.डी. 1972 पृष्ठ 334)
राजस्व मण्डल की विस्तृत पीठ ने राज्य सरकार की विज्ञप्ति दिनांक 11-9-1957 के द्वारा नामान्तकरण के अधिकार ग्राम पंचायतों को प्रदत्त किए जाने के फलस्वरूप पंचायत को धारा 19 के नामान्तकरण के लिए अधिकृत माना है।

राज्य बनाम घनश्यामदास (आर.आर.डी. 1972 पृष्ठ 334)
जब भूमि ‘‘अधिक अन्न उपजाओ’’ आन्दोलन के अन्तर्गत् दी गई तो ऐसी भूमि में धारा 156 के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार प्रदान करने का सहायक जिलाधीश का क्षेत्राधिकार है। ऐसे अधिकार संचालक उपनिवेशन को नहीं हैं।

सुगनाराम बनाम सांवतसिंह (आर.आर.डी. 1975 पृष्ठ 302)
धारा 15 के अन्तर्गत खुदकाश्त कृषक व उपकृषक को खातेदारी अधिकार प्रदान नहीं किये जा सकते।

श्रीकजोड बनाम श्रीगणेश (आर.आर.डी. 1976 पृष्ठ 317)
15-10-1955 को या इससे पूर्व मान्य कृषक न तो उपकृषक है न ही अतिक्रमी तथा उसे धारा 15 के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार प्राप्त होते हैं एवं ऐसा खातेदार धारा 183 के अन्तर्गत बेदखल वाद प्रस्तुत कर सकता है।

राज्य बनाम केदारदास व अन्य (आर.आर.डी. 1976 पृष्ठ 436)
सम्वत् 2012 के केवल कब्जा मात्र से धारा 15 के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं होते।

रामखलादी बनाम मिश्रीलाल (आर.आर.डी. 1976 पृष्ठ 439)
खसरा गिरदावरी में अंकन मात्र से कोई अधिकार नहीं मिलते। वादी को यह प्रमाणित करना पड़ता है कि वह खातेदार है।

राज्य बनाम बाबूलाल (आर.आर.डी. 1976 पृष्ठ 551)
धारा 15 के अन्तर्गत भू प्रबन्ध विभाग के द्वारा खातेदारी अधिकार का दिया जाना गौण है।

परमसुख बनाम स्टेट (आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 482)
पुराना कब्जा होने के आधार पर ही धारा 15 के अन्तर्गत खातेदारी नहीं मिल सकती है।

फूलसिंह बनाम मोतीलाल (आर.आर.डी. 1979 पृष्ठ 40)
वार्षिक अभिलेख सम्वत् 2012 में जिस व्यक्ति का नाम अंकित न हो वह खातेदार नहीं बन सकता है।

(आर.आर.डी. 1980 पृष्ठ 464)
कब्जे के आधार पर घोषणात्मक दावा लाया जा सकता है।

किसनराम बनाम गंगाराम (आर.आर.डी. 1981 पृष्ठ 714)
विधवा और नाबालिग की खुदकाश्त की भूमि में खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं।

चुन्नीराम बनाम राज्य (आर.आर.डी. 1982 पृष्ठ 123)
जहाँ कानून राज्य से संबंध रखता है वहाँ राज्य को पक्षकार बनाना आवश्यक है।

मालचन्द बनाम स्टेट (आर.आर.डी. 1983 पृष्ठ 240)
बन्धककत्र्ता को खातेदारी अधिकार प्राप्त होंगे।


श्रीमति नाथी बनाम रामसहाय (आर.आर.डी. 1985 पृष्ठ 190)
बन्धक अवधि समाप्त हो जाने के पाँच साल बाद भी काश्तकार के रूप में कब्जा बनाया रखने पर निर्धारित किया गया है कि ऐसा व्यक्ति धारा 5(43) (एच.) के अन्तर्गत अधिनियम के प्रभाव में आने के समय ऐसा व्यक्ति खातेदारी अधिकार प्राप्त करने का हकदार होता है।

नन्दसिंह बनाम जागीरसिंह (आर.आर.डी. 1987 पृष्ठ 373)
अधिनियम के प्रभाव में आने के समय केवल मात्र बन्धक ग्रहिता का भूमि पर कब्जा होने मात्र से उसे खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते।

राज्य बनाम जीवा (आर.आर.डी. 1988 पृष्ठ 14)
केवल मात्र कब्जा के आधार पर खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते हैं।

कजोड अलीयास बनाम मु. पन्नी (आर.आर.डी. 1989 पृष्ठ 56)
वादी काश्तकारी अधिनियम प्रभाव में आने के समय संवत् 2012 में अपनी खातेदारी स्थापित करने में असफल रहा है, उसे कानून के द्वारा खातेदार घोषित नहीं किया जा सकता है।

श्यामसिंह बनाम राजस्थान राज्य (आर.आर.डी. 1989 पृष्ठ 445)
अवैध नियमितिकरण के आधार पर धारा 15 के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार प्रदत्त नहीं किये जा सकते।

मंदिर मूर्ति ठाकुरजी महाराज बनाम बोर्ड आफ रेवेन्यू (आर.आर.डी. 1991 पृष्ठ
6 )
क्या मंदिर की भूमि पर खातेदारी अधिकार मिलते हैं? उत्तर-हाँ,, यदि भूमि सम्वत् 2009 में मंदिर की खुदकाश्त लिखी हुई नहीं हो।

इन्दिरा गाँधी नहर क्षेत्र में खातेदारी अधिकारों को प्रोद्भूत न  होना
धारा 15क (1)
- इस अधिनियम धारा 13 में या धारा 15 की उपधारा (1) में या तत्समय प्रवृत अन्य किसी विधि में , या किसी लीज, पट्टा, अन्य दस्तावेज में , किसी बात के अन्तर्विष्ट होते हुए इन्दिार गाँधी नहर क्षेत्र में भूमि, जो चाहे किन्हीं निर्बन्धनों पर लीज पर दी गई हो, इस अधिनियम की उपरोक्त धारा 15 की उपरोक्त उपधारा के परन्तुक अर्थ में अस्थायी रूप से लीज पर दी गई समझी जायेगी और किसी भी उक्त भूमि, जो उपरोक्त रीति से लीज दी गई हो, कोई खातेदारी अधिकार प्रोद्भूत नहीं होंगे अथवा कभी प्रोद्भूत हुए नहीं समझे जायेंगे।

परन्तु उपधारा (1) में कोई बात ऐसे व्यक्ति पर कोई प्रभाव डालेगी अथवा लागू नहीं होगी जिसे खातेदारी अधिकार, राजस्थान कोलोनाइजेशन एक्ट, 1954 की धारा 7 द्वारा प्रदत्त शक्ति के प्रयोग में निर्मित राजस्थान कोलोनाइजेशन (जनरल कालोनी) केण्डीशंस 1955, या किसी अन्य स्टेटमेण्ट आफ कण्डीशंस अथवा रूल्स आफ एलाटमेण्ट एण्ड सेल आफ गवर्नमेण्ट लैण्ड्स अथवा राजस्थान लैण्ड रिफाम्र्स एण्ड रिजम्पशन आफ जागीर्स एक्ट, 1952 के अन्तर्गत इन्दिरा गाँधी नहर क्षेत्र में काश्त के आवंटन के लिये निर्मित नियमों के उपबन्धों के अनुसार प्रोदभूत होंगे।

धारा 15क (2) - कोई व्यक्ति जो यह दावा करता हो कि वह उपधारा (1) में उल्लिखित किसी भूमि में खातेदारी अधिकार रखता है तथा उनका उपभोग करता है क्यांेकि वह भूमि उसे इस अधिनियम के प्रारम्भ के पूर्व स्थायी रूप में किराये पर दी गई थी, उक्त प्रारम्भ के चार वर्ष के भीतर तथा पचास नया पैसा न्यायालय शुल्क अदा करने  पर अधिकारिता रखने वाले सहायक कलक्टर को इस प्रकार की घोषणा की जाने की प्रार्थना करते हुए, आवेदन पत्र प्रस्तुत कर सकेगा और इस आवेदन पत्र के संबंध में धारा 15 की उपधारा (5) के उपबन्ध लागू होंगे।

चम्बल प्रोजेक्ट क्षेत्र में खातेदारी अधिकारों का कुछ मामलों में प्रोद्भूत न होना
धारा 15 कक (1)
- किसी लीज, कर-निर्धारण परचा, पट्टा या अन्य दस्तावेज में किसी बात के अन्तर्विष्ट होते हुए, चम्बल सिंचाई प्रोजेक्ट क्षेत्र में किसी व्यक्ति को जो कि भूमि धारण करता है, कभी भी खातेदारी अधिकार प्रोद्भूत नहीं समझे जायेंगे।

धारा 15 कक (2) - उपधारा (1) की कोई बात किसी ऐसे व्यक्ति को प्रभावित नहीं करेगी अथवा उस पर लागू नहीं होगी जिसे, इस अधिनियम के प्रारम्भ होने के पहले से ही, भूतपूर्व कोटा स्टेट या भूतपूर्व बूंदी स्टेट के टिनेंसी कानूनों के अन्तर्गत वंशानुगत तथा हस्तांतरणीय अधिकार प्राप्त थे अथवा जिसे इस अधिनियम की धारा 13 या धारा 19 के अन्तर्गत, अथवा राजस्थान कोलोनाइजेशन (चम्बल प्रोजेक्ट गवर्नमेण्ट लैण्ड्स अलाटमेण्ट एण्ड सेल) रूल्स, 1957 के अन्तर्गत तथा उनके अनुसरण में अथवा राजस्थान लैण्ड रिफाम्र्स एण्ड रिजम्पशन आफ जागीर्स एक्ट, 1952 या राजस्थान जमीनदारी तथा बिस्वेदारी उन्मूलन अधिनियम, 1959 के किसी उपबंध के अन्तर्गत तथा तदनुसरण में, खातेदारी अधिकार प्रोद्भूत हो गये हों।

इन्दिरा गाँधी नहर क्षेत्र में खातेदारी अधिकारों का प्राप्त होना
धारा 15ककक (1)
- धारा 15क में किसी बात के अन्तर्विष्ट होते हुए भी, कोई भी व्यक्ति जो, इस अधिनियम के प्रभाव में आने पर,
(क) खुद काश्तकार या अधिभोगी काश्तकार या मोरुसीदार या खातेदार काश्तकार या अन्तरणीय तथा दाय-योग्य अधिकारों सहित काश्तकार था और जिसे उस समय प्रचलित वार्षिक रजिस्टर में इस प्रकार दर्ज किया गया था, या
(ख) इस प्रकार दर्ज नहीं किया था किन्तु खुद काश्तकार या अधिभोगी काश्तकार या मोरुसीदार या खातेदार काश्तकार या अन्तरणीय तथा दाय-योग्य अधिकारों सहित काश्तकार था।

इस अधिनियम के प्रभाव में आने की तारीख से इस अधिनियम के अधीन खातेदार काश्तकार के सम्पूर्ण अधिकारों का हकदार और समस्त दायित्वों के अध्यधीन होगा।

धारा 15ककक (2) -  ऐसा दावा करने वाला प्रत्येक व्यक्ति कि उसे उपधारा (1) के खण्ड (ख) में उल्लिखित अधिकार प्राप्त हुए हैं, राजस्थान काश्तकारी (संशोधन) अधिनियम, 1979 के लागू होने से एक वर्ष के भीतर और पचास पैसे न्यायालय फीस का भुगतान करने पर क्षेत्राधिकार रखने वाले सहायक कलक्टर या समय समय पर राज्य सरकार द्वारा नियुक्त किसी भी अन्य प्राधिकारी को इस घोषणा के लिए आवेदन कर सकेगा कि उसने उसके द्वारा धारित भूमि में उपधारा (1) के खण्ड (ख) के अधीन खातेदारी अधिकार प्राप्त किये हैं और ऐसे आवेदन पर धारा 15 की उपधारा (5) के उपबन्ध लागू होंगे।

धारा 15ककक (2क) -  धारा 15क में किसी बात के होते हुए भी, कोई व्यक्ति जो इन्दिरा गाँधी नहर क्षेत्र के भीतर खुदकाश्त के उप अधिकारी या अभिधारी के रूप में भिन्न भूमि के खुदकाश्त का धारक था या भूमि का अभिधारी था, चाहे वह ऐसा इस अधिनियम के प्रारम्भ पर अभिलिखित था या राजस्थान भू-राजस्व अधिनियम, 1956 की धारा 106 और धारा 107 के अधीन संचालित सर्वेक्षण या पुनर्सर्वेक्षण और अभिलेख संक्रियाओं के दौरान तैयार किए गए अधिकारों के अभिलेख में बाद में दर्ज किया गया हो, समस्त अधिकारों का हकदार होगा और इस अधिनियम के अधीन उसके द्वारा धारित भूमि के ऐसे सम्पूर्ण भाग या अंश के संबंध में जो भूमि के उस अधिकतम क्षेत्र से अधिक न हो जिसका वह राजस्थान कृषि जोतों पर अधिकतम सीमा अधिरोपण अधिनियम, 1973 के उपबंधों के अनुसार धारित करने का हकदार होता, खातेदार अभिधारी के रूप में समस्त दायित्वों के अध्यधीन होगा।

धारा 15ककक (3) - धारा 15 क उपधारा (1) में कुछ भी समाविष्ट होने के बावजूद एवं उपधारा (1) में प्रावधित हुए को छोड़कर इस अधिनियम के प्रारम्भ पर एक व्यक्ति जो-
(क) किसी भूमि का एक आसामी या खुदकाश्त का आसामी नहीं होकर और तत्समय चालू वार्षिक पंजिकाओं में तदनुसार अभिलिखित किया गया था, या
(ख) तदनुसार अभिलिखित नहीं किया गया, परन्तु वह भूमि का आसामी था, उप आसामी या खुदकाश्त आसामी नहीं होकर और राजस्थान टीनेन्सी (संशोधित) अधिनियम, 1983 के प्रारम्भ होने की तारीख तक इस प्रकार के आसामी के रूप में भूमि पर लगातार काबिज या वहाँ क्षेत्राधिकार रखने वाले सहायक जिलाधीश या राज्य सरकार द्वारा इस हेतु अधिकृत प्राधिकारी या अधिकृति को एवं इस प्रकार से जैसा कि विहित किया जावे बनाते हुए राजस्थन टीनेन्सी (संशोधित) अधिनियम, 1983 के प्रभावी होने की तारीख से एक माह के अन्दर पेश करने पर उसे उनकी टीनेन्सी के संबंध में खातेदारी अधिकार इतने क्षेत्रफल की सीमा पर जो कृषि जोत क्षेत्र अधिकतम सीमा आरोपण अधिनियम, 1973 के प्रावधानों के अनुसार वह रख सकता है बशर्ते कि उसके द्वारा सिंचित क्षेत्र के लिये 25 बीघा से अधिक या असिंचित के लिये 50 बीघा से अधिक भूमि रखने पर और उपरोक्त सीमा तक धारा 7, राजस्थान उपनिवेशन अधिनियम, 1954 के साथ पठित करते हुए, में विहित या राजस्थान टीनेन्सी (संशोधित) अधिनियम, 1983 के प्रारम्भ होने की तारीख को प्रभावी दर से रक्षित मूल्य राज्य सरकार को भुगतान कर देता है।

धारा 15ककक (4) - राज्य सरकार द्वारा बनाये जाने वाले नियमों के अध्यधीन उप धारा (3) के अन्तर्गत देय रक्षित मूल्य आसामी द्वारा 16 समान किस्तों में भुगतान किया जा सकता है, जिसकी प्रथम किश्त कथित उप धारा के अन्तर्गत प्रार्थना पत्र के साथ दी जावेगी और शेष किश्तें तत्पश्चात् प्रत्येक परवर्ती वर्ष की जनवरी के प्रथम दिन एंव जुलाई के प्रथम दिन को जब तक रक्षित मूल्य की पूर्ण राशि चुकती नहीं हो जावे भुगतान की जा सकेगी।

परन्तु यह कि जहाँ इस राजस्थान टीनेन्सी (संशोधित) अधिनियम, 1984 के आरम्भ होने के पश्चात् राजस्थान नहर से ऐसी भूमि जहाँ उप खण्ड (3) के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार मंजूर किये गये हैं की सिंचाई हेतु प्रथम बार जल छोड़ा जाता है, वहाँ इस उप खण्ड के अन्तर्गत प्रार्थना पत्र के साथ रूपये 500 की प्रथम किश्त का भुगतान किया जावेगा और शेष राशि का भुगतान उस भूमि की सिंचाई के लिये छोड़े गये जल की तारीख से दो वर्षों के पश्चात् प्र्रत्येक परवर्ती वर्ष की जनवरी के प्रथम दिन और जुलाई के प्रथम दिन को 16 समान किश्तों में भुगतान किया जावेगा।

परन्तु आगे और यह  है कि इस उप धारा में कुछ भी उस आसामी को रक्षित मूल्य का पूर्ण या आंशिक भुगतान इस उप धारा में प्रावधित किये गये के पहले करने को रोका जा सकेगा।

धारा 15ककक (5) - इस उपधारा (3) में कुछ भी समाविष्ट होने के बावजूद जहाँ एक आसामी राज्य सरकार को रक्षित मूल्य की पूर्ण राशि एक मुश्त इस उपधारा के अन्तर्गत प्रार्थना पत्र के साथ अनुज्ञेय अवधि में भुगतान करता है वहाँ उसके द्वारा दये रक्षित मूल्य यहाँ प्रावधित राशि का 25 प्रतिशत कम माना जावेगा।

धारा 15ककक (6) - एक आसामी जो इस उपधारा (4) या उप धारा (5) के अनुसार रक्षित मूल्य का भुगतान करने में असफल होता है, वह उप धारा (3) के अन्तर्गत स्वीकृत खातेदारी हक प्राप्त करने का अधिकारी नहीं होगा।

धारा 15ककक (7) - उपधारा (2) में संदर्भित व्यक्ति को छोड़कर अन्य व्यक्तियों द्वारा राजस्थान टीनेन्सी (संशोधन) अधिनियम, 1983 प्रभावी होने के पूर्व दिये गये प्रार्थना पत्र परन्तु जो उप धारा (3) के क्षेत्र में आते हैं के संबंध में इस अधिनियम के प्रारम्भ होते समय एवं सहायक जिलाधीश या राज्य सरकार द्वारा उपधारा (2) के अन्तर्गत विहित अन्य अधिकृति के समक्ष विचाराधीन उसके द्वारा रखी गई भूमि पर खातेदारी अधिकार उत्पन्न होने या खातेदारी  अधिकार  मंजूर करने की घोषणा के लिये दिये गये प्रार्थना पत्र समझा जावेगा और उन्हें उप धारा (3) के अन्तर्गत दिये गये माना जावेगा और उप धारा (3) एवं उप धारा (8) में दिये गये प्रावधानों के अनुसार उस उपधारा में उल्लिखित अधिकारी द्वारा निर्णय किये जावेंगे।

धारा 15ककक (8) - जहाँ एक व्यक्ति स्वयं उप धारा (3) में संदर्भित एक आसामी होने का दावा पेश करता है, परन्तु जिसे इस अधिनियम के प्रारम्भ होते समय चालू पंजिकाओं में ऐसा अभिलिखित नहीं किया गया तो वह ऐसा आसामी था या नहीं यह प्रश्न उपलब्ध साक्ष्य जिसमें उस गाँव में निवास करने वाले बालिग व्यक्ति हों, जहाँ वह भूमि स्थित है से बनी ग्राम सभा के मतैक्य से तय किया जावेगा। यह साक्ष्य सहायक जिलाधीश या अधिकारी जो उक्त उप धारा के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार मंजूर करने हेतु सक्षमह ै, द्वारा लिखित में की जावेगी।


आबू, अजमेर तथा सुनेल क्षेत्रों में खातेदार आसामी
धारा 15 ख
- प्रत्येक व्यक्ति जो राजस्थान राजस्व विधियाँ (विस्तार) अधिनियम, 1957 के प्रारम्भ से पूर्व आबू, अजमेर तथा सुनेल क्षेत्रों में शिकमी आसामी या खुदकाश्त के आसामी को छोड़कर अन्यथा भूमि का आसामी है, उप धारा (1) के परन्तुक में तथा धारा 15 की उपधारा (2) से (5) तक में तथा धारा 15 क में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के अधीन रहते हुए और धारा 16 में  तथा धारा 180 की उपधारा (1) के खण्ड (ख) में अन्तर्विष्ट उपबन्धों के भी अधीन रहते हुए, खातेदार आसामी होगा तथा इस अधिनियम के उपबन्धों के अधीन रहते हुए, इस अधिनियम द्वारा खातेदार आसामी को प्रदत्त समस्त अधिकारों का हकदार होगा तथा उस पर आरोपित समस्त दायित्वों के अधीन रहेगा।

परन्तु यदि किसी उक्त व्यक्ति ने, इस अधिनियम द्वारा खातेदार आसामी को प्रदत्त अधिकारों से अधिक कोई मान (स्टेटस) या सम्पत्ति अथवा तदुपरि आरोपित दायित्व से अधिक कोई दायित्व उक्त प्रारम्भ के पूर्व विधिवत् उसे प्रदत्त अधिकार के अनुसरण में अथवा विधि के अनुसरण में अर्जित कर लिया हो तो वह इस अधिनियम में तत्विरूद्ध किसी बात के होते हुए भी उक्तरूपेण अर्जित मान (स्टेटस) या सम्पत्ति का धारण एवं उपभोग करता रहेगा और उक्तरूपेण आरोपित दायित्व के अधीन बना रहेगा।



भूमियाँ जिनमें खातेदारी अधिकार प्रोद्भूत नहीं होंगे
धारा 16
- इस अधिनियम में अथवा राज्य के किसी भाग में तत्समय प्रवृत किसी अन्य विधि या अधिनियमिति में किसी बात के होते हुए, खातेदारी अधिकार निम्नलिखित में प्रोद्भूत नहीं होंगे-
(1) गोचर भूमि,
(2) नदी तल अथवा तालाब की भूमि जो आकस्मिक या कभी कभी कृषि के लिए प्रयुक्त हो,
(3) सिंघाड़ा अथवा तत्सद्दश उपज पैदा करने के लिये प्रयुक्त जल-मग्न भूमि,
(4) भूमि जो, बदल बदल कर  की जाने वाली कृषि या अस्थायी कृषि के लिये प्रयोग में आती हो,
(5) भूमि जिसमें ऐसे बाग लगे हों जिनकी स्वामी सरकार हो तथा जिनकी देखभाल राज्य सरकार द्वारा की जाती हो,
(6) किसी सार्वजनिक अभिप्राय या सार्वजनिक हित के कार्य के लिये प्राप्त की गई या धारण की गई भूमि,
(7) भूमि जो इस अधिनियम के प्रारम्भ होने के समय या तत्पश्चात् किसी समय सैनिक पड़ाव स्थलों के लिये नियत कर दी जावे,
(8) किसी छावनीकी सीमाओं के भीतर स्थित भूमि,
(9) रेलवे अथवा नहर की सीमा-बंधों के भीतर स्थित भूमि,
(10) किसी सरकारी वन की सीमा-बंधों के भीतर स्थित भूमि,
(11) म्युनिसिपल खाइयों के स्थल,
(12) शिक्षण संस्थाओं द्वारा कृषि में शिक्षण के लिये तथा खेल के मैदानों के लिये धारण अथवा प्राप्त की गई भूमि,
(13) सरकार के किसी कृषि फार्म या घास के फार्म की सीमाओं के भीतर  स्थित भूमि,
(14) भूमि जो, किसी गाँव या आस पास के गाँवों के लिये पीने के पानी के जलाशय से या टांके में पानी जाने के लिए अलग रखी गई हो या कलक्टर की राय में तदर्थ आवश्यक है।

परन्तु राज्य सरकार शासकीय राजपत्र में अधिसूचना के द्वारा यह घोषणा कर सकती है कि ऐसी कोई भूमि जिसमें बदल बदल कर अथवा अस्थायी रूप से कृषि की जाती है उक्त कृषि के लिए उपलब्ध नहीं रहेगी और तदुपरान्त उक्त भूमि खातेदारी अधिकार प्रदान किये जाने के निमित्त उपलब्ध होगी और राज्य सरकार ऐसी ही अधिसूचना के द्वारा यह घोषणा कर सकती है कि किसी भूमि में जिसमें इस अधिनियम के प्रारम्भ के समय स्थान बदल बदल कर या अस्थासी रूप से कृषि नहीं की जाती थी, उक्त प्रारम्भ के पश्चात् किसी भ समय ऐसी तारीख से जो उक्त अधिसूचना में निर्दिष्ट की जाय, स्थान बदल बदल कर या अस्थायी कृषि के लिये रहेगी तदुपरान्त वह भूमि उक्त कृषि के लिये उपलब्ध होगी।

CASE LAW:-
लछमण बनाम पोकर (आर.आर.डी. 1970 पृष्ठ 168)
जो भूमि पानी के बहाव के प्रयोग में आती है उस पर खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते।
गोचर भूमि को ग्राम पंचायत अन्य कार्य के लिए प्रयोग नहीं कर सकती । इस प्रकार की भूमि को अन्य प्रयोग में लाने की अनुमति के लिए जिलाधीश सक्षम अधिकारी है।

राज्य बनाम अमरसिंह (आर.आर.डी. 1965 पृष्ठ 261)
यदि कोई भूमि भू-प्रबन्ध विभाग के अभिलेख में गोचर दर्ज नहीं की गई है तो उसे इस धारा के प्रयोजनार्थ गोचर भूमि नहीं माना जा सकता।

बन्सीलाल बनाम नाभानदास (आर.आर.डी. 1969 पृष्ठ 199)
जागीर पुर्नग्रहण के पश्चात् तालाब पेटे पर जागीरदार कब्जा अतिचारी की तरह नहीं माना जा सकता किन्तु उसे इस धारा के तहत खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते।

राज्य सरकार बनाम सोहन (आर.आर.डी. 1973 पृष्ठ 27)
यदि तालाब व नदी पेटे की भूमि का काश्त हेत आकस्मिक प्रयोग किया जाता है तो ऐसी भूमि पर धारा 16 के अन्तर्गत खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते।

भूरा बनाम भीमसिंह (आर.आर.डी. 1973 पृष्ठ 395)
यदि 13-1-1958 से पूर्व किसी को तालाब के पेटे में खातेदारी अधिकार मिल गए हैं तो वे अधिकार उक्त दिनांक को धारा 16 में ‘‘तालाब’’ शब्द के प्रतिस्थापन से समाप्त नहीं होते।

महबूब अली खान बनाम सरकार (आर.आर.डी. 1961 पृष्ठ 271)
जब किसी व्यक्ति ने बागान की भूमि को राज्य सरकार से ठेका पर लिया तो वह आसामी की परिभाषा में नहीं आता तथा उसे खातेदार आसामी नहीं माना जा सकता।

राज्य बनाम गोवर्धन (आर.आर.डी. 1975 पृष्ठ 271)
धारा 16 (1) के फलस्वरूप चारागाह भूमि पर कई वर्षों तक काश्त करते रहने के आधार पर खातेदारी अधिकार नहीं मिल सकते।

भागीरथ बनाम सरपंच मादरिया (आर.आर.डी. 1978 एन.ओ.सी. 136)
गोचर तथा जंगलात की भूमि पर किसी को खातेदारी अधिकार नहीं मिल सकता।

नगजीराम बनाम स्टेट (आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 259)
गोचर भूमि पर किया गया अतिक्रमण और ऐसा कब्जा नियमित नहीं मिल सकते।

कुंभाराम बनाम स्टेट (आर.आर.डी. 1979 एन.ओ.सी. 18)
जोहड़ पायतन भूमि में खातेदारी नहीं मिल सकती।

स्टेट बनाम अब्दुल करीम  (आर.आर.डी. 1979 पृष्ठ 475)
नगरपालिका की सीमा में आने वाली भूमि आवंटित नहीं की जा सकती।

श्रीलाल बनाम हनुमान (आर.आर.डी. 1982 पृष्ठ 479)
चारागाह भूमि आवंटन के काबिल नहीं होती।

श्री शिवराज चेला बनाम श्री मिसरू (आर.आर.डी. 1986 पृष्ठ 238)
सार्वजनिक उपयोग में आने वाली भूमि पर काश्तकार द्वारा खेती करने पर भी खातेदारी अधिकार प्राप्त नहीं हो सकते।

शिवराज बनाम श्रीमिसरू (आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 261)
यह प्रश्न कि क्या हिन्दु मूर्ति द्वारा धारित भूमि सार्वजनिक उपयोग के लिये है या व्यक्तिगत उपयोग के लिये है। यह प्रत्येक केस के तथ्यों पर निर्भर करता है।

रामचन्द्र बनाम रामेत (आर.आर.डी. 1988 पृष्ठ 476)
नदी और तालाब पेटे की भूमि पर कभी-कभी या आकस्मिक खेती करने पर उसमें खातेदारी अधिकार प्रदत्त नहीं किये जा सकते।

राजस्थान राज्य बनाम ईशाक मोहम्मद (आर.आर.डी. 1988 पृष्ठ 662)
राजस्थान भू-राजस्व (कृषि प्रयोजनार्थ भूमि का आवंटन) नियम 1970 के नियम 4 के अन्तर्गत भूमि का भू अभिलेख में गैर मुमकिन रास्ते के रूप में दर्ज होना तथा उसका सार्वजनिक प्रयोग में आना व सार्वजनिक उपयोग का कार्य होना तथा भूमि की किस्म का वर्गीकरण करने के पश्चात् ही ऐसी भूमि का आवंटन न होने से ऐसी भूमि के संबंध में अतिक्रमी के नियमन करने की कार्यवाही वैध नहीं है।

तिलोक चन्द बनाम स्टेट (आर.आर.डी. 1976 पृष्ठ 586)
धारा 16 में प्रमाणित भूमियों पर दिया गया कब्जा विनियमित नहीं किया जा सकता है।

खुदकाश्त के आसामी
धारा 16क
- प्रत्येक व्यक्ति जिसे इस अधिनियम के शुरू होने के समय या बा में किसी समय राज्य के किसी भाग में भू-सम्पत्ति धारक द्वारा खुदकाश्त विधिवत् पट्टे पर दे दी गई होया दे दी जाय उक्त व्यक्ति खुदकाश्त का आसामी होगा।

परन्तु भू-सम्पत्ति धारक के अपनी खुदकाश्त का धारा 13 के अन्तर्गत खातेदार आसामी बन जाने पर उपरोक्त खुदकाश्त का आसामी हो जायेगा जो उपरोक्त खातेदार आसामी के अन्तर्गत या उससे लेकर भूमि धारण  करेगा।

गैर खातेदार आसामी
धारा 17
- राज्य के किसी भाग में भूमि का प्रत्येक ऐसा आसामी जो खातेदार आसामी, खुदकाश्त आसामी अथवा शिकमी आसामी से अलग हो, गैर खातेदार आसामी होगा।

मालिक
धारा 17क
- प्रत्येक ऐसा जमींदार अथवा बिस्वेदार जिसकी भू-सम्पत्ति राजस्थान जमींदारी तथा बिस्वेदारी उन्मूलन अधिनियम, 1959 के अधीन राज्य सरकार में अन्र्तनिहित है, उस अधिनियम की धारा 29 के अर्थान्तर्गत उक्त निहित की तिथि को उसके अधिवास की खुदकाश्त भूमि के संबंध में मालिक होगा।

11 टिप्‍पणियां:

  1. मेरे गांव खाटां बरानी सन 1895 खसरा नंबर 1 आबादी भुमि खसरा नंबर 2 जोहड़ था जोहड़ का रकबा करीब 158 बीघा था 1977 सेंट्रलमेन्ट अधिकारीयों ने मात्र जोहड़ 18 बीघा रखा गया है 90 बीघा आंवटन की गई 50 बीघा पर कब्जा कास्त की जा रही है

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  2. कृषि भूमि के पुराना रिकॉर्ड सेंन्ट्रलमेट अधिकारी अपने साथ बीकानेर ले गए थे नियम के विरुद्ध हुई आंवटन 1977 से
    फर्जी आंवटन

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  3. जोहड़ पाईतन जोहड़ गांव खाटां बरानी मुरब्बा नंबर रकबा 53/25,व 54/25 व 55/10 व 86/25 व 87/25व 88/23 व 89/25

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  4. गांव खाटां आबादी भुमि पुराना खसरा नंबर 1 था चकबंदी मुरब्बा नंबर 89/2 व 90/25 व 91/25 व 128/28 व 129/28 कुल 102 बीघा

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  5. हरियाणा कास्तकर रामप्रताप पुत्र नानुराम जाति जाट भाम्भू गांव अबुबशहर तहसील डबवाली जिला सिरसा हरियाणा के मूल निवासी ने गांव खाटां बरानी मुरब्बा 171किला नंबर 1ता 25 आंवटन

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  6. तहसील रायसिंहनगर जिला श्री गंगानगर के ग्राम पंचायत खाटां के चक 33 पीएस मुरब्बा नंबर 63 के किला नंबर 14 ता 25 वह मुरब्बा नंबर 74 में किला नंबर 1/2,2,3,4,5,6,78,9/1,14,15, मोहनलाल पुत्र चेतराम गांव अबूबशहर तहसील डबवाली जिला सिरसा हरियाणा , आवंटन

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  7. तहसील रायसिंहनगर जिला श्री गंगानगर के ग्राम पंचायत खाटां के चक 33 पीएस मुरब्बा 13 के किला नंबर 12,1920,21,22, नहरी कृषी भूमि मोहनलाल पुत्र चेतराम गांव अबूबशहर तहसील डबवाली जिला सिरसा हरियाणा के नाम खरीद की गई
    तहसील रायसिंहनगर जिला श्री गंगानगर की ग्राम पंचायत खाटां के गांव खाटा बरानी के मुरब्बा नंबर 154 किला नंबर 1 ता 25 मोहनलाल पुत्र चेतराम गांव अबूबशहर तहसील डबवाली जिला सिरसा हरियाणा ,आवंटन

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  8. तहसील अनूपगढ़ जिला श्री गंगानगर के चक 14 पी मे मुरब्बा नंबर 33 किला नंबर 1 ता 25 व मुरब्बा नंबर 34 मे किला नंबर 3 ता 9, व 12 ता 19 व 21/2,22/1,23/2,24/2,25/1 कुल 45 किला मोहनलाल व देवीलाल पुत्रगण चेतराम गांव अबूबशहर तहसील डबवाली जिला सिरसा हरियाणा, आवंटन

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  9. तहसील रायसिंहनगर जिला गंगानगर के गांव खाटां बरानी के मुरब्बा नंबर 85 किला नंबर 1 ता 25 रामकुमार पुत्र सदासुख व मुरब्बा नंबर 89 में दस बीघा प्रेमसिंह पुत्र सदासुख जाति जाट गांव पचारवाली तहसील भादरा जिला हनुमानगढ़ के रहने वाले हैं दोनों भाई राजकिय सरकारी नौकरी होने के बावजूद असली तथ्य छुपाकर धोका मिथ्याविरुपन दस्तावेज से आवंटन

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  10. दो विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र मे नामावली वर्ष 1993-1998निर्वाचन अपराध कर फर्जी दस्तावेज बनाकर तहसील रायसिंहनगर जिला श्री गंगानगर के ग्राम पंचायत खाटां के चक 33 पीएस मुरब्बा नंबर 57 के किला नंबर 1 ता 25 गोरांदेवी पत्नी उदाराम गांव खैरुवाला तहसील सादूलशहर जिला श्री गंगानगर , आवंटन

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  11. सर नमस्कार मेरा प्रश्न यह है संवत 2015 की जमाबंदी मैं माफी मंदिर लिखा हुआ है जहां राज्य सरकार लिखा हुआ होना चाहिए वहां पर माफी मंदिर गोविंद देव जी लिखा हुआ है और काश्तकारों के नाम की जगह का सुधारों का नाम लिखा हुआ है संवत 2021 की जमाबंदी में राज्य सरकार कर दिया गया मंदिर माफी गोविंद देव जी को नाम को हटाकर हमारे पूरे गांव की जमीन पर ही ऐसा था फिर 2005 में राज्य सरकार ने काश्तकारों के खिलाफ रेफरेंस केस कर रखा है कि आपने माफी मंदिर गोविंद देव जी का नाम कैसे हटवाया कृपया बताएं हम क्या जवाब दें इसका

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