गुरुवार, 9 अगस्त 2012

समर्पण, परित्याग तथा अवसान

समर्पण
धारा 55
- किसी पट्टे या इकारानामें द्वारा आगामी वर्ष में अपने भूमि-क्षेत्र पर अधिपत्य बनाये रहने के लिये पाबन्द आसामी के अतिरिक्त अन्य कोई आसामी जो एक मई को या उससे पहले अपने भूमि-क्षेत्र को, चाहे वह शिकमी काश्त पर दिया हुआ अथवा बन्धक ग्रस्त हो या नहीं, कब्जा छोड़ते हुए एक लेख पत्र जो अधिकारिता रखने वाले तहसीलदार द्वारा या म्यूनिसिपल बोर्ड के सभापति द्वारा प्रमाणीकृत हो- के द्वारा समर्पित कर सकता है।

CASE LAW:-
हरनारायण बनाम राजस्व मण्डल (आर.आर.डी. 1966 पृष्ठ 31)
दुली बनाम थावरा (आर.आर.डी. 1966 पृष्ठ 198)
यह निर्णित किया गया कि भूमि को भूमिधारी को सौंप दिया जावे तो परित्याग कानूनन होगा चाहे धारा 55 के अनुसार लिखित दस्तावेज तैयार न किया गया हो।

(आर.आर.डी. 1966 पृष्ठ 37),(आर.आर.डी. 1969 पृष्ठ 133), (आर.आर.डी. 1971 पृष्ठ 161),(आर.आर.डी. 1972 पृष्ठ 116)
लिखित दस्तावेज का कानूनी प्रभाव होने के लिए उसका विधिवत प्रमाणीकरण आवश्यक है, प्रमाणीकरण तहसीलदार द्वारा जिसके क्षेत्राधिकार में भूमि स्थित है किया जा सकता है।

दुली बनाम थावर (आर.आर.डी. 1966 पृष्ठ 198)
जब किसी आसामी को खातेदारी अधिकार प्राप्त हो जाते हैं तो भूमि का परित्याग केवल राज्य सरकार के हक में ही किया जा सकता है।

गाँधीलाल बनाम भूरा (आर.आर.डी. 1979 पृष्ठ 373)
भूमि का परित्याग जब ही माना जायेगा जब परित्याग तहसीलदार द्वारा प्रमाणित हो तथा कब्जा दे दिया हो। भूमिधारी को बिना कब्जा दिए परित्याग नहीं हो सकता है।

गेन्दीलाल बनाम स्टेट (आर.आर.डी. 1979 पृष्ठ 332)
परित्याग का प्रमाणीकरण उपखण्ड अधिकारी भी कर सकता है। धारा 218 (11) द्वारा वह सक्षम है।

फूलसिंह बनाम मोतीलाल (आर.आर.डी. 1979 पृष्ठ 401)
परित्याग केवल भूमिधारी के पक्ष में हो सकताहै। किसी अन्य के पक्ष मे नहीं तथा परित्याग विलेख तहसीलदार द्वार प्रमाणित हो।

खूमा बनाम मन्दिर पारस नाथजी (आर.आर.डी. 1983 पृष्ठ 539)
समर्पण साबित होने के लिये कब्जा सम्भलाना ही काफी है।


भूमिधारी को नोटिस
धारा 56 (1)
- धारा 55 के अन्तर्गत कोई भी समर्पण किये जाने के पहले इस प्रकार समर्पण करने वाला आसामी अपने इस आशय कि वह समर्पण करेगा, एक रजिस्टर्ड नोटिस अपने भूमिधारी को एक मई से कम से कम तीस दिन पहले देगा और जब तक कि नोटिस भेज नहीं दिया जाय वह आसामी समर्पण की तारीख से आसामी कृषि-वर्ष  का लगान अपने भूमि-क्षेत्र के विषय में, अपने भूमिधारी को देने का भागी होगा।

परन्तु शर्त यह है कि आसामी इस प्रकार उस अवधि का लगान देन का  भागी नहीं होगा जिसमें भूमि-क्षेत्र किसी अन्य आसामी को पट्टे पर दे दिया गया हो या भूमि-धारी द्वारा स्वयं अपने निजी प्रयोग में या कृषि के लिये काम में लिया गया हो।

धारा 56 (2) - इस धारा की कोई बात किसी ऐसी अवस्था पर प्रभाव नहीं डालेगी जिसमें कोई आसामी और उसका भूमिधारी सम्पूर्ण भूमि-क्षेत्र या उसके किसी भाग के समर्पण के लिये सहमत हों।

परन्तु शर्त यह है कि उक्त सहमति धारा 55 में उल्लिखित रीति से प्रमाणीकृत की जाय।

CASE LAW:-
रामेश्वर लाल बनाम झूंथा (आर.आर.डी. 1959 पृष्ठ 177)
सह उपकृषकों में से किसी एक सह कृषक द्वारा भूमिधारी को परित्याग का नोटिस जानी नहीं किया जा सकता।

प्रकरण (आर.आर.डी. 1992 पृष्ठ 648)
धारा 55 व धारा 56 के अन्तर्गत खातेदार सम्पत्ति में अपने अधिकार भूमि धारी अर्थात राज्य को सपर्पित कर सकता है, खातेदार द्वारा किसी व्यक्ति के पक्ष में समर्पण नहीं किया जा सकता है।

समर्पण रद्द करने के लिये दावा
धारा 58 (1)
- कोई भूमिधारी जिसे धारा 56 या 57 के अन्तर्गत नोटिस दिया गया हो, ऐसे नोटिस को अमान्य घोषित किये जाने के लिए दावा दायर कर सकता है।

धारा 58 (2) - यदि ऐसा कोई दावा दायर नहीं किया जाय तो समर्पण के लिए भूमिधारी की स्वीकृति समझली जायगी।

समर्पित भूमि-क्षेत्र का कब्जा लेना
धारा 59
- भूमिधारी इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसरण में समर्पित किये गये भूमि-क्षेत्र में प्रवेश करके उसे अपने कब्जे में ले सकता है।

काश्तकारी अधिकारों का परित्याग

धारा 60 (1) - उपधारा (2) तथा (3) के प्रावधानों के अधीन रहते हुए, कोई आसामी जो कृषि करना बन्द कर दे और पड़ौस को छोड़ देता है अपने भूमि-क्षेत्र मंे अपना हित उस अवस्था में नहीं खोयेगा जबकि वह अपने भूमि-क्षेत्र को ऐसे व्यक्ति को सुपुर्द करता है जो लगान के देय होने पर उसके भुगतान  का जिम्मेदार हो तथा इस प्रबन्ध की भूमिधारी को लिखित सूचना दे दी गई हो।

धारा 60 (2) - यदि वह व्यक्ति जिसे ऐसी सुपुर्दगी की गई हो, ऐसा व्यक्ति हो -
(क) जिसको, आसामी की मृत्य हो जाने की दशा में आसामी के हित प्राप्त होते हो, या
(ख) जिसे भूमि-क्षेत्र का प्रबन्ध उस व्यक्ति के लाभ के लिय करना है जिसको,  आसामी की मृत्यु हो जाने की अवस्था में आसामी का हित प्राप्त हो जायेगा।

तो आसामी, सात वर्ष की अवधि समाप्त हो जाने पर, अपने भूमि-क्षेत्र में अपना हित खो बैठेगा जब तक कि वह, उक्त समय के अन्दर अपने भूमि-क्षेत्र में दुबारा कृषि करना शुरू न कर दे, और उस हित, उस व्यक्ति को प्राप्त हो जायेगा जिसे आसामी का हित, आसामी की मृत्यु हो जाने की अवस्था में प्रापत होता।

धारा 60 (3) - यदि वह व्यक्ति जिसे उक्त प्रकार सुपुर्दगी की गई हो,उप धारा (2) में उल्लिखित व्यक्ति नहंी है तो उस अवधि के समाप्त होने पर जिसके लिये आसामी शिकमी-काश्त पर दे सकता था, यह अनुमान लगाया जायेगा कि आसामी ने अपना भूमि-क्षेत्र, परित्याग कर दिया है जब तक कि वह उक्त अवधि के अन्दर अपने भूमि-क्षेत्र में दुबारा कृषि करना शुरू न कर दे।

धारा 60 (4) - वह आसामी जो कृषि करना बन्द कर पड़ौस का त्याग उपधारा (2) के प्रावधानों का अनुसरण न करते हुए अन्य प्रकार से करता है, उसके बारे में यह अनुमान लगाया जायेगा कि उसने अपने भूमि-क्षेत्र का परित्याग कर दिया है।

व्याख्या -
यह धारा काश्तकार द्वारा जोत के छोड़े जाने से संबंध रखती है। किसी भूमि का परित्याग करने के लिये यह जरूरी है कि निम्न बातें साबित हो जायें-
(1) यह कि काश्तकार या आसामी ने जोत पर खेती करना बन्द कर दिया है।
(2) यह कि काश्तकार या आसामी अपना भूमि-क्षेत्र छोड़कर अन्यत्र चला गया है एवं किसी ऐसे व्यक्ति को चार्ज में नहीं छोड़ा गया है जो लगान की अदायगी के लिए जिम्मेदार हो, एवं
(3) यह कि जोत अनाधिवासित है यानि आसामी बिना भूमि धारी को लिखित नोटिस दिये चला गया है एवं उक्त भूमि के लिये लगान दिये जाने का कोई भी जिम्मेदार व्यक्ति नहीं है।

प्रक्रिया - परित्याग की घोषणा करने के लिये आसामी या काश्तकार को आवेदन पत्र अनुसूची तृतीय के द्वितीय भाग के मद संख्या 40 के तहत देना पड़ेगा जिस पर 15 पैसे न्यायालय शुल्क लगेगा।

परित्यक्त समझी गई भूमि का अधिपत्य लेने के पहले की कार्य प्रणाली
धारा 61 (1)
- जब आसामी के बारे में यह समझ लिया जाये कि उसने अपनी भूमि का पत्यिाग कर दिया है वह तहसीलदार स्वतः ही या भूमिधारी द्वारा आवेदन पत्र प्रस्तुत किये जाने पर यथास्थिति एक घोषणा निर्धारित तरीके से जारी एवं तामली कराने की या प्रकाशित कराने की व्यवस्था करेगा जिसमें यह उल्लिखित होगा कि उक्त आसामी के भूमि-़क्षेत्र को परित्यक्त माने जाने तथा उसमें प्रवेश किये जाने एवं उसके अनुसार उसे कब्जे में लिये जाने का विचार है जब तक कि इसके विपरीत कारण न बताये जायें।

धारा 61 (2) - तहसीलदार या भूमिधारी जैसी भी स्थिति  में भूमि-क्षेत्र में प्रवेश पा सकता है तथा उसका कब्जा ले सकता है यदि घोषणा के जवाब में-
(1) घोषणा की तामील या प्रकाशन की तारीख से साठ दिन के अन्दर या तो वह आसामी जिसके बारे में यह माना गया है कि उसने अपना भूमि-क्षेत्र परित्याग कर दिया है या उस आसामी की ओर से या स्वयं अपनी ओर से कोई व्यक्ति उपस्थित नहीं होता है, या
(2) ऐसी प्रविष्टि और कब्जे के बारे में उक्त अवधि के भीतर आपत्ति दायर की जाती है और वह अस्वीकार कर दी जाती है।

धारा 61 (3) - यदि इस धारा के प्रावधानों का उल्लंघन करते हुए किसी भूमि क्षेत्र का प्रवेश किया जाय तथा उसे कब्जे में लिया जाय तो उसका आसामी धारा 186 के अर्थ में कानून की रीति के अतिरिक्त अन्य प्रकार से अथवा इस अधिनियम के प्रावधानों के उल्लंघन में बेदखल किया गया समझा जायगा।

धारा 61 (4) - जब किसी भूमि-क्षेत्र में उपधारा (2) के अन्तर्गत प्रवेश एवं उस पर कब्जा किया जाय तो वह भूमि-क्षेत्र धारा 62 के प्रावधानों के अधीन रहते हुए किसी अन्य आसामी को काश्त पर उठायी जा सकती है या भूमिधारी द्वारा व्यक्तिगत रूप से उसमें काश्त की जा सकती है।

CASE LAW:-
राज्य बनाम मोतीबाई (आर.आर.डी. 1982 पृष्ठ 519)
पुनः कब्जा प्राप्त करने के लिये उचित उपाय धारा 175 के अन्तर्गत है न कि धारा 61 में।

उन आसामियों के अधिकार जिनके बारे में यह अनुमान कर लिया गया कि उन्होने अपने भूमि-क्षेत्र का परित्याग कर दिये हैं
धारा 62 (1)
- किसी व्यापक विपत्ति जैसे अनावृष्टि, अकाल, व्यापक रोग या उन्हीं के सदृश्य अन्य आपाल तथा किसी अन्य युक्तियुक्त कारण से जो आसामी कृषि करना बन्द कर दे तथा पड़ौस छोड़ दे तो धारा 60 तथा 61 में उल्लिखित कोई बात उप धारा (2) में उल्लिखित रीति उसमें दिये गये समय तथा निर्दिष्ट शर्तों के अधीन रहते हुए, अपने भूमि-क्षेत्र का कब्जा दुबारा प्राप्त करने के अधिकार पर कोई भी प्रभाव नहीं डालेगी।

धारा 62 (2) - धारा 60 की उपधारा (1) के तहत ाजरी की गई घोषणा  की तामील या प्रकाशन की तारीख से एक वर्ष के अन्दर कोई ऐसा आसामी अपनी बहाली के लिए एवं अपना भूमि-क्षेत्र पुनः दिलाये जाने के लिए प्रार्थना पत्र निर्धारित रीति से तहसीलदार को पेश कर सकता है, और यदि वह तहसीलदार का इस बात से समाधान कर देता है कि उसने उपधारा (1) में निर्दिष्ट किसी आधार पर या कारण से पड़ौस को छोड़ा था तो उस भूमि-क्षेत्र का कब्जा जिस पर धारा 61 की उपधारा (2) के अन्तर्गत प्रवेश किया गया हो अथवा कब्जे में ले लिया गया हो, उसे इस रूप में पुनः दिलाया जायगा मानो उसने उक्त प्रकार उसका परित्याग किया ही नहीं हो, बशर्ते कि उक्त भूमि क्षेत्र के जरिये, पुनःकब्जा दिये जाने की तारीख तक इसमें परित्याग अवधि सम्मिलित है-उसे देय सम्पूर्ण बकाया-लगान का भुगतान उसके द्वारा कर दिया जाय।

परन्तु शर्त यह है कि यदि भूमि-क्षेत्र या उसका  कोई भाग धारा 61 की उपधारा (4) के अन्तर्गत 7
(1) किसी अन्य आसामी को काश्त पर दे दिया गया हो तो उक्त अन्य आसामी से देय लगान की रकम उक्त बकाया लगान की रकम में से कम की जा सकेगी, अथवा
(2) भूमिधारी द्वारा स्वयं काश्त की गई हो तो उक्त काश्त की अवधि के बारे में कोई लगान देय नहीं होगा।

काश्तकारी अधिकारों  का अवसान
धारा 63 (1)
- एक आसामी का उसके भूमि-क्षेत्र या उसके किसी भाग जो भी हो में हित समाप्त हो जायेगा -
(1) जब वह ऐसा उत्तराधिकारी छोड़े बिना मर जाता है जो इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसरण में उत्तराधिकार प्राप्त करने का हकदार हो,
(2) जब वह अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार उसे समर्पण या परित्याग कर दे,
(3) जबकि उसकी भूमि राजस्थान भूमि अवाप्ति अधिनियम,1953 के अन्तर्गत अवाप्त कर ली गई हो,
(4) जबकि वह अधिपत्य से वंचित कर दिया गया हो और अधिपत्य पुनः लेने का उसका अधिकार अवधि बाधित हो गया हो,
(5) जब वह इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार बेदखल कर दिया गया,
(6) जब वह उसमें निहित भूमिधारी के समस्त अधिकारों को प्राप्त कर लेता है अथवा भूमिधारी उसे उत्तराधिकार में या अन्यथा प्राप्त कर लेता है,
(7) जब वह उसे इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार बेच दे या दान कर दे अथवा
(8) यदि वह कानून द्वारा मान्य परिपत्र प्राप्त किए बिना या कानूनी अधिकार बिना भारत से किसी विदेश को चला जावे।

स्पष्टीकरण - खण्ड (8) के प्रयोजन के लिए जो आसामी इण्डियन पासपोर्ट एक्ट, 1920 के अन्तर्गत कोई कानून द्वारा मान्य परिपत्र प्राप्त किए बिना या कानूनी अधिकार या किसी भी देश में प्रवेश करेगा वह भारत से विदेश गया हुआ माना जायेगा।



धारा 63 (2) - आसामी के हित का अवसान हो जाने पर उसके अधीन भूमि धारण करने वाले किसी शिकमी-आसामी का हित अवसायित हो जायगा।

परन्तु ऐसे प्रत्येक मामले में जो उपधारा (1) के खण्ड (3) में उल्लिखित मामला नहीं है, उक्त शिकमी आसामी जब तक वह स्वयं भी इस अधिनियम के किसी प्रावधान या उस समय प्रभाव में किसी विधि के अन्तर्गत बेदखल न कर दिया गया हो या बेदखल किये जाने योग्य न हो गया हो या होने को न हो या जब तक कि वह अपने भूमि-क्षेत्र पर विधि द्वारा निर्धारित तरीके से अधिकार प्राप्त करने का हकदार न होगा, उक्त भूमि-क्षेत्र में तथा उसके अन्तर्गत सुधारों में अपने मुख्य आगामी के अधिकारों की अवाप्ति के लिये धारा 23, 24 तथा 25 के अनुसार निश्चित किये जाने वाले मुआवजे का भुगतान करने पर, प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करने का अधिकार होगा।

CASE LAW:-
श्री माला बनाम श्रीमति गुलाब कंवर (आर.आर.डी. 1974 पृष्ठ 280)
धारा 63 प्रक्रिया संबंधी प्रावधान नहीं है। यह अधिकारों से संबंधित कानून है तथा समस्त प्रकार की कृषि भूमि पर लागू होते है।

नन्दगिर बनाम राजस्व मण्डल (आर.आर.डी. 1963 पृष्ठ 250)
यदि पट्टे की अवधि समाप्त हो जाए तो आसामी के काश्तकारी के अधिकार समाप्त नहंी होते। ऐसे काश्तकार को नियमानुसार व विधिवत ही बेदखल किया जा सकता।

श्रीपार्वती बनाम श्री  जगन्नाथ (आर.आर.डी. 1962 पृष्ठ 185)
मुआफीदार की माफी समाप्ति पर काश्तकारी के अधिकार इस अधिनियम के तहत समाप्त हो जाते है।

गोमा बनाम चुन्नीलाल (आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 42)
बेदखली की मियाद उस दिन से मानी जायेगी जिस दिन खातेदार अतिक्रमी की भूमि खाली करने को कहे। जो व्यक्ति खातेदार की अनुक्रम से भूमि में प्रवेश करता है उसे धारा 63(1) क्लाज (4) का लाभ मिलता। इसका कारण यह है कि खातेदार को बलात् कब्जे से वंचित नहीं किया गया वरन् कब्जा अनुमति से है।

आर.डी. बग्गा  बनाम सुरेन्द्रसिंह (आर.आर.डी. 1991 पृष्ठ 1)
मुखालफाना कब्जे (एडवर्स पजेशन) क आधार पर काबिज काश्तकार को खातेदारी अधिकार मिल जाते हैं बशर्ते कि टीनेन्सी एक्ट की धारा 16 अथवा 42 का उल्लंघन  न हो।

अधिकार का अवसान होने पर भूमि खाली किया जाना
धारा 64
- सिवाय उसके जैसा कि इस अधिनियम में अन्यथा उपबन्धित है, जब किसी आसामी या शिकमी आसामी का हित समाप्त हो जाय तो वह अपने भूमि-क्षेत्र को खाली कर देगा परन्तु उसे किसी फसल को हटाने के संबंध में वही अधिकार प्राप्त होगा जो कि उसे इस अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार बेदखल किये जाने की दशा में होता।
उदमीराम बनाम श्रीरामदेव (आर.आर.डी. 1961 पृष्ठ 109)
जब किसी आसामी के अधिकार समाप्त हो तो उसे भूमि खाली करनी पड़ती है किन्तु फसल हटाने के बारे में उन्हीं सुविधाओं का अधिकार है जो अतिक्रमी की बेदखली की प्रक्रिया में प्राप्त है।

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