गुरुवार, 9 अगस्त 2012

(सुधार)

सुधार करने का अधिकार
धारा 65 - राज्य सरकार अथवा कोई भू-स्वामी सम्पूर्ण राज्य के किसी भाग में या उस पर प्रभाव डालने वाला कोई सुधार कर सकती है।

सुधार करने का खातेदार आसामियों का अधिकार
धारा 66 (1)
- खातेदार आसामी अपने भूमि-क्षेत्र में कोई भी सुधार कर सकता है।
परन्तु राज्य सरकार समय समय पर
(क) ऐसे सुधार किया जाना जैसा कि धारा 5 के खण्ड (19) के उपखण्ड (क) में उल्लिखित है, उन क्षेत्रों में तो तदर्थ अधिसूचित किये जाएं, सार्वजनिक  हित में प्रतिबन्धित कर सकेगी, तथा
(ख) ऐसे क्षेत्रों में जो किसी उक्त अधिसूचना द्वारा प्रभावित नहीं होते हैं कोई ऐसे सुधार किये जाने का नियमन करने के लिये नियम बना सकेगी।

भूमिधारियों का सुधार करने का अधिकार
धारा 67
- राज्य सरकार से भिन्न कोई भूमिधारी अथवा भू-स्वामी तहसीलदार की अनुमति से जिसके लिए निर्धारित रीति से आवेदन किया गया हो तथा जो निर्धारित रीति से प्रदान की गई हो, अपने आसामियों के भूमि-क्षेत्र में अथवा उस पर प्रभाव डालने वाला सुधार कर सकेगा।

परन्तु शर्त यह है कि यदि ऐसे भूमि-क्षेत्र का आसामी एक गैर-खातेदार आसामी या खुदकाश्त का आसामी या शिकमी-आसामी है अथवा यदि वह सुधार जिसे उक्त भूमिधारी करना चाहता है, एक कुआ है तो ऐसी अनुमति की आवश्यकता नहीं होगी।
परन्तु शर्त और है कि धारा 5 के खण्ड (19) के उपखण्ड (क) में वर्णित समस्त सुधार अथवा उनमें से कोई सुधार, ऐसे क्षेत्र में -जो भूमि-क्षेत्र के समूचे क्षेत्रफल के 1/50 भाग से अधिक नहीं हो-जैसा कि निर्धारित किया जाये, नहीं किये जायेंगे और विहित परिस्थितियों के अलावा भिन्न परिस्थितियों में अनुमति नहीं दी जावेगी।

CASE LAW:-
रामकिशोर बनाम नाहरसिंह (आर.आर.डी. 1978 पृष्ठ 99)
धारा 67 के प्रावधानों में तहसीलदार को स्वविवेक का अधिकार प्राप्त है किन्तु यह स्वविवेक न्यायिक सिद्धान्तों के अनुसार प्रयोग किया जाना चाहिए।

व्याख्या-
यह धारा भूमि धारियों को भूमि पर सुधार करने का अधिकार देती है परन्तु उक्त अधिकार का प्रयोग तहसीलदार की आज्ञा से किया जा सकता है। यदि तहसीलदार यह पावे कि-
(1) प्रस्तावित कार्य धारा 5 (19) के अर्थ में सुधार नहीं है,
(2) प्रयोजन के मुकाबले कार्य अधिका खर्चीला है,
(3) कार्य ऐसा है जिसे भूमिधारी को करने का अधिकार नहीं है या धारा 71 की रजाबन्दी नहीं ली गई है, तो सुधार करने की इजाजत देने से मना कर सकता है। सुधार के लिए भूमिधारी द्वारा आवेदन तहसीलदार केा करना होगा जो कि कभी भी किया जा सकता है। उक्त आवेदन पत्र पर 25 पैसे न्यायालय शुल्क लगेगा। तहसीलदार सुधार करने के लिये  एक अवधि निश्चित कर सकता है जो 1 वर्ष से अधिक नहीं होगी।

तहसीलदार द्वारा अनुमति कब दी जा सकेगी और कब अनुमति देने से इन्कार किया जा सकेगा
धारा 68
- तहसीलदार जिसे धारा 67 के प्रावधानों के अन्तर्गत आवेदन पत्र दिया जाय, पक्षकारों की सुनवाई करने और वैसी जाँच जैसी वह करना ठीक समझे करने के बाद उक्त सुधार करने की अनुमति ऐसे प्रतिबन्धों के साथ यदि कोई हो, जैसे वह उचित समझे दे सकेगा या देने से इन्कार कर देगा।

परन्तु तहसीलदार ऐसे सुधार के लिए अनुमति नहीं देगा जो
(1) ऐसा सुधार जैसा कि इस अधिनियम में परिभाषित है, नहीं है,
(2) इस प्रयोजन के लिये जिसके लिये वह अभिप्रेत है, बहुत मंहगा हे,
(3) ऐसा सुधार नही है, जिसे करने का आवेदक हक रखता है,
या
(4) धारा 70 के अन्तर्गत लिखित अनुमति की अपेक्षा रखता है, यदि उक्त अनुमति पहले प्राप्त नहीं की गई है।

भूमिधारी एवं आसामी दोनों की एक ही सुधार करने की इच्छा होने की दशा में प्रावधान
धारा 69 (1)
- यदि कोई खातेदार आसामी तथा उसका भूमिधारी-राज्य सरकार न हो, दोनों एक ही ऐसा सुधार करना चाहें जिसे वे इस अधिनियम के अन्तर्गत करने के हकदार हों तो तहसीलदार, आवेदन पत्र प्राप्त करने पर आसामी को निर्दिष्ट समय के अन्दर कार्य को पूरा करने की अनुमति देगा और यदि उचित कारण बताये जायें तो वह उक्त अवधि को समय समय पर बढ़ा सकेगा।
परन्तु ऐसी समयावधि बढ़ाये जाने का अधिकतम समय एक वर्ष से अधिक नहीं होगा।

धारा 69 (2) - यदि आसामी ऐसी अवधि या बढ़ाई गई अवधि के भीतर कार्य पूरा करने में विफल रहे तो भूमिधारी को इस सुधार कार्य को पूरा करने का अधिकार होगा।

अन्य आसामियों का सुधार करने का अधिकार
धारा 70
- कोई गैर-खातेदार आसामी या खुदकाश्त का आसामी अथवा शिकमी-आसामी, धारा 66 की उपधारा (1) के प्रथम तथा द्वितीय परन्तुकों द्वारा अधिरापित प्रतिबन्धों के अधीन रहते हुए, कोई भी सुधार कर सकता है परन्तु वह बेदखली होने पर मुआवजे का अधिकार नहीं होगा जब तक कि उसने उक्त सुधार करने के लिये पहले तहसीलदार की अनुमति या खुदकाश्तधारी या खातेदार आसामी जैसी भी स्थिति, की लिखित अनुमति प्राप्त न कर ली हो।

सुधार करने पर प्रतिबन्ध
धारा 71
- इस अध्याय की कोई बात किसी आसामी या भूमिधारी जो राज्य सरकार न हो अथवा भू-स्वामी को ऐसी भूमि जो उक्त सुधार से लाभान्वित होने वाले भूमि-क्षेत्र में सम्मिलित न हो, में
(क) कोई सुधार, या
(ख) उक्त भूमि को हानिकर कोई सुधार,
करने का अधिकार नहीं देगी या अधिकार नहीं देने वाली नहीं मानी जायगी जब तक कि उक्त आसामी या भूमिधारी ने उस भूमि के भूमिधारी या जैसी भी स्थिति राज्य सरकार की तथा आसामी की भी यदि कोई हो लिखित   अनुमति प्राप्त न कर ली हो।

सम्पूर्ण लगान का दायित्व
धारा 72
- कोई आसामी जो सुधार करे, लिखित विपरीत इकरारनामें के अभाव में भूमि-क्षेत्र का सम्पूर्ण लगान देने का उत्तरदायी बना रहेगा।
परन्तु जहाँ लगान जिन्स में देय हो और उपखण्ड अधिकारी का इस बात से समाधान हो जाय कि खुदकाश्त के आसामी या शिकमी आसामी द्वारा धारा 70 के अन्तर्गत किये गये सुधार के फलस्वरूप कृषि उपज में वृद्धि हुई है तो, उपखण्ड अधिकारी आसामी या शिकमी आसामी द्वारा आवेदन पत्र दिये जाने पर, धारा 118 व 119 के उपबन्धों के अनुसार लगान को नकद में अन्तवर्तित कर देगा।

हानि के लिये क्षतिपूर्ति
धारा 73 (1)
- कोई भूमिधारी जो किसी आसामी के भूमि-क्षेत्र में या उस पर प्रभाव डालने वाले कोई सुधार, धारा 67 के अन्तर्गत करता है तो वह आसामी को ऐसी किसी क्षति के लिये क्षति के लिये क्षतिपूर्ति देने का उत्तरदायी होगा जो वह सुधार करते समय आसामी को पहुँचावे।

धारा 73 (2) - यदि किसी उक्त भूमिधारी द्वारा किये गये सुधार के प्रभाव से किसी ऐसी भूमि की उत्पादन क्षमता को क्षति पहुँचाती है जो किसी आसामी ने उक्त भूमिधारी से लेकर धारण की हुई हो तो उक्त आसामी उपधारा (1) के अन्तर्गत उसे दिये जाने वाले क्षतिपूर्ति के अतिरिक्त, अपने लगान में ऐसी कमी का भी हकदार होगा जिसे न्यायालय उचित समझे।

सुधार के लिये क्षतिपूर्ति
धारा 74
- कोई आसामी जिसने इस अधिनियम के प्रावधानों के अन्तर्गत सुधार किया हो, निम्नलिखित परिस्थितियों में क्षतिपूर्ति पाने का हकदार होगा-
(1) जब उसकी बेदखली के लिये डिक्री या आज्ञा प्रदान की गई हो, या
(2) जब उसे विधि-विपरीत रीति से कब्जा विहीन कर दिया गया हो और उसे अपने भूमि-क्षेत्र का कब्जा वापस नहीं मिला हो,
(3) जब वह अपने पट्टे की अवधि समाप्त होने पर भूमि-क्षेत्र को खाली कर देता है, यदि सुधार धारा 70 के प्रावधानों के अन्तर्गत किया गया हो।

परन्तु
(क) आसामी द्वारा अपने स्वयं के रहने के लिये भूमि-क्षेत्र पर बनाये गये रिहायशी मकान, या उसके द्वारा अपने भूमि-क्षेत्र पर पशुशाला या गोदाम अथवा कृषि प्रयोजनार्थ बनाये गये या स्थापित किये गये किसी अन्य निर्माण की दशा के सिवाय, किसी ऐसे सुधार के लिए मुआवजा देय नहीं होगा जो उक्त बेदखली के लिए डिक्री या आज्ञा की तारीख से या उक्त कब्जा-विहीनता या खाली किये जाने से तीस वर्ष या अधिक पहले किया गया हो।

(ख) कोई आसामी जो, बेदखली के लिये डिक्री या आज्ञा के निष्पादन में या बेदखली के नोटिस के अनुसरण में, बेदखली किया गया हो, किसी ऐसे सुधार के लिये क्षतिपूर्ति पाने का हकदार नहीं होगा जो उसने डिक्री, आज्ञा या नोटिस की तारीख के बाद प्रारम्भ किया हो, और

(ग) मुआवजा किसी ऐसे सुधार के लिये नहीं दिया जायेगा जो सहायक कलक्टर की राय में, उस तारीख को व्यर्थ हो गया हो जिसको कि आसामी तदर्थ क्षतिपूर्ति का हकदार होता है।

क्षतिपूर्ति की रकम
धारा 75 (1)
- किसी सुधार के लिये या उसके कारण इस अधिनियम के किसी प्रावधान के अन्तर्गत देय क्षतिपूर्ति की रकम का निश्चय करने में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखा जावेगा-
(1) उस रकम का जिसकी, उस भूमि-क्षेत्र के मूल्य एवं उपज में उक्त सुधार के जरियेया उसके कारण बढ़ोतरी या कमी हुई,
(2) उक्त सुधार कार्य की दशा तथा उसके प्रभावों के कायम रहने की सम्भावित अवधि का, और
(3) उक्त सुधार कार्य के करने में लगाये गये श्रम तथा राशि का, जिसमें-
(क) लगान की किसी कमी या छूट या सुधार-कार्य के प्रतिफल स्वरूप आसामी को दिया गया कोई अन्य लाभ,
(ख) नकद, सामग्री या श्रम के रूप में आसामी को भूमिधारी द्वारा दी गई कोई सहायता, और
(ग) भूमि का पुनरुद्धार करने या असिंचित से सिंचित भमि में परिणित करने की दशा में, वह कालावधि जिसके दौरान उस पक्ष ने जो क्षतिपूर्ति का दावा करता हो, सुधार का लाभ उठाया हो, और
(4) ऐसी अन्य बातें जो निर्धारित की जायें।

धारा 75 (2) - जब आसामी द्वारा किये गये सुधार से-
(क) उस भूमि को जिससे, वह बेदखल अथवा कब्जाविहीन किया गया है, और
(ख) अन्य भूमियों को जो उसके कब्जे में हों, लाभ पहुँचता हो, मुआवजे का निश्चियन उस सीमा को ध्यान में रखते हुए किया जायेगा जिस सीमा तक खण्ड (क) में उल्लिखित भूमि उक्त सुधार से लाभान्वित हुई हो।

अन्य भूमियों को लाभ पहुँचाने वाले कार्य-
धारा 76 (1)
- यदि किसी आसामी के द्वारा ऐसी भूमि में सुधार किया हो जो लगान की बकाया के लिए डिक्री की इजराय में बेची जाय या जिससे उसे बेदखल किया जाये तो खरीददार अथवा भूमिधारी, यथास्थिति उस सुधार कार्य का स्वामी बन जायेगा किन्तु आसामी अपने पास शेष भूमि के विषय में ऐसे सुधार-कार्य का लाभ उसी प्रकार तथा उसी सीमा तक होगा जिस प्रकार तथा सीमा तक उस भूमि को उस कार्य से तत्पूर्व लाभ पहुँचता रहा हो।

धारा 76 (2) - यदि किसी आसामी ने ऐसी भूमि में सुधार किया हो जो उसके कब्जे में उसकी भूमि के किसी भाग के, लगान की बकाया के लिये डिक्री के इजराय में बेचे जाने या उसकी भूमि के किसी भाग से उसे बेदखल किये जाने के बाद शेष रहती है तो, खरीददार या भूमि धारी, यथास्थिति, उस भूमि के विषय में जो आसामी के अधिपत्य में नहीं रहती है,  उस सुधार कार्य का लाभ उसी सीमा तक उसी प्रकार होगा जिस सीमा तक जिस प्रकार उक्त भूमि को उस सुधार कार्य का लाभ पहुँचता रहा हो।

धारा 76 (3) - यदि किसी भूमिधारी ने कोई ऐसा सुधार कार्य किया हो जिसमें आसामी के भूमि क्षेत्र को लाभ पहुँचता हो और उक्त सम्पूर्ण भूमि क्षेत्र अथवा उसका कोई भाग लगान की बकाया के लिए डिक्री इजराय में विक्रय कर दिया जावे तो, क्रेता बेची गई भूमि के विषय में उस सुधार कार्य का उस सीमा तक उसी ्रपकार लाभ उठाने का हकदार होगा जिस सीमा तक तथा जिस प्रकार उस भूमि सुधार कार्य का लाभ तत्पूर्व पहुँचता रहा हो।

सुधार की लागत का रजिस्टेªशन
धारा 77 (1)
- यदि कोई भूमिधारी जो, राज्य सरकार से भिन्न हो या कोई आसामी यह चाहे कि किसी सुधार पर व्यय की गई रकम का निश्चय कर दिया जाना चाहिये तो, तहसीलदार इस प्रयोजनार्थ उसे प्रस्तुत किये गये आवेदन पत्र पर और दूसरे पक्ष को सुनवाई का उचित अवसर देने के बाद या ऐसी अन्य जाँच जिसे वह उचित समझे, करने के बाद, लगान की रकम तय करेगा और उसे एक रजिस्टर में जो निर्धारित प्रपत्र में रखा गया हो, अंकित करेगा।

धारा 77 (2) - आवेदन पत्र के पक्षकारों या उनके हित के उत्तराधिकारियों के बीच उक्त सुधार कार्य की लागत के विषय में बाद में किसी कार्यवाही में उक्त रजिस्टर में किया हुआ इन्द्राज, व्यय की रकम का निर्णायक सबूत होगा।

व्याख्या - विकास की लागत का प्रमाणीकरण कराने के लिये आवेदन पत्र तृतीय अनुसूची के भाग 2 के मद 44 के अन्तर्गत तहसीलदार को दिया जायेगा जिस पर 25 पैसे न्यायालय शुल्क लगेगा। उक्त आवेदन पत्र सुधार कार्य पूरा होने के 6 महीने के भीतर किया जाना चाहिए एवं उक्त आवेदन दिये जाने के पश्चात् तहसीलदार की आज्ञा के विरूद्ध अपील कलक्टर को की जा सकेगी। कलक्टर की आज्ञा के विरूद्ध दूसरी अपील नहीं की जा सकेगी परन्तु कलक्टर की आज्ञा का पुनरीक्षण राजस्व मण्डल द्वारा किया जा सकेगा।
 
सुधार के संबंध में विवाद
धारा 78
- यदि कोई प्रश्न-
(क) कोई सुधार करने के अधिकार के संबंध में, या
(ख) इस विषय में कि क्या कोई कार्य विशेष में सुधार है, या
(ग)  इस विषय में कि क्या कोई कार्य धारा 71 के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, या
(घ) धारा 73 की उपधारा (1) के अन्तर्गत क्षतिपूर्ति की रकम के विषय में या उपधारा (2) के अन्तर्गत लगान की कमी के ंसबंध में, या
(ङ) इस विषय में कि क्या किसी सुधार के लिए क्षतिपूर्ति देय है, या
(च) उक्त सुधार की रकम के संबंध में, या
(छ) किसी सुधार से धारा 76़ के अन्तर्गत लाभ उठाने के अधिकार के संबंध में, उत्पन्न होता है, तो सहायक कलक्टर उस प्रश्न का निर्णय, आवेदन पत्र होने या अन्यथा, करेगा।

व्याख्या - यदि इस धारा में गिनाई गई बातों के विषय में कोई प्रश्न उत्पन्न हो तो पक्षकारों को सहायक कलक्टर को तृतीय अनुसूची के भाग 2 के मद संख्या 45 के अन्तर्गत आवेदन करना होगा, जिस पर 25 पैसा न्यायालय शुल्क लगेगा। सहायक कलक्टर की आज्ञा के विरूद्ध अपील राजस्व अपील प्राधिकारी को की जावेगी एवं अपील में दी गई आज्ञा का पुनरीक्षण राजस्व मण्डल करेगा।

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